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Poem on Nature in Hindi

11+ Best Poem on Nature in Hindi | प्रकृति पर कविताएं

Posted on April 17, 2022

Best Poem on Nature in Hindi:- प्रकृति मनुष्य के लिए जितना जरुरी उतना ही पशु-पक्षी और जानवरों के लिए भी जरुरी है। प्रकृति पर्यावरण का एक हिस्सा है जो हमारे आसपास है। मनुष्य का पूरा जीवन इस प्रकृति पर अवलंबन है। हमारे जीवन की अत्यंत उपयोगी और मूल्यवान चीजें प्रकृति ने हमें प्रदान की है। मनुष्य को प्रकृति से बहुत सारे संसाधने मिलती है। दोस्तों, आज हम इसी प्रकृति के बारे में कुछ ऐसी कविताएं आप सबके साथ शेयर करेंगे जो कि आप सबको बेहद पसंद आएगी। हम उम्मीद करते हैं कि आप प्रकृति पर इस कविता को (Poem on Nature in Hindi) पुरे आनंद के साथ उपभोग करेंगे। यह सभी कविताएं जो आप इस लेख में पढ़ने वाले हैं यह सभी क्लॉस 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए भी बहुत उपयोगी होने वाली है।

धरती पर जीवन जीने के लिए हमें बहुमूल्य और कीमती उपहार के रूप में यह प्रकृति मिली है।  प्रकृति सभी के जीवन का एक महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। दैनिक जीवन के लिए उपलब्ध सभी संसाधनों के द्वारा प्रकृति हमारे जीवन को आसान बना देती है। प्रकृति पर कविता (Poem on Nature in Hindi) जानने से पहले हम प्रकृति को अच्छे से समझ लेते हैं।

प्रकृति व्यापकतम अर्थ में प्राकृतिक, भौतिक जगत या ब्रह्मांड है। प्रकृति दो शब्दों प्र और कृति से मिलकर बनी है। प्र अर्थात श्रेष्ठ / उत्तम और कृति अर्थात रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। अर्थात बहु मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहना का तात्पर्य, प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्मांड की रचना की गई है।

इस प्रकृति ने हमें कई प्रकार के फूल , फल, पक्षी, जानवर, आकाश, भूमि, नदियां, पहाड़, समुद्र आदि दिए हैं। जो कि मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण अंग है। प्रकृति हमें चारों तरफ एक सूरक्षात्मक  कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है। प्रकृति के माध्यम से ही हमें सर्दी, गर्मी, बरसात जैसे मौसम प्राप्त होते हैं। प्रकृति के द्वारा ही मनुष्य को अपना जीवन जीने के लिए सूर्य, जल,हवा, पेड़, पौधे आदि प्राप्त हुए हैं।

हम जो भी करते हैं वह प्रकृति पर निर्भर है। वास्तव में प्रकृति के कारण ही हमारा जीवन संभव है। हम अपने अस्तित्व के लिए हवा, पानी, आग पर निर्भर है। हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है। वर्तमान समय में हमारे द्वारा प्रकृति का काफी शोषण किया जा रहे है। हम लगातार प्रकृति का दुरूपयोग कर रहे हैं और इसके परिणामों के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं।

 

Contents

  • 1 प्रकृति पर कविताएं – Best Poem on Nature in Hindi
    • 1.1 (1) प्रकृति की लीला न्यारी – Prakriti Ki Leela Nyari Nature Poem in Hindi
    • 1.2 (2) काली घटा – Kaali Ghata Nature Poem in Hindi
    • 1.3 (3) हरी हरी खेतों में बरस रही है बुँदे –  Hindi Kavita on Nature
    • 1.4 (4) हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी – Hey Prakrti Kaise Batau Tu Kitni Pyari Nature Poem
    • 1.5 (5) मान लेना वसंत आ गया – Nature Poem in Hindi
    • 1.6 (6) माँ की तरह – Maa Ki Tarah Prakrti Poem in Hindi
    • 1.7 (7) प्रकृति से प्रेम – Prakriti Se Prem Poem in Hindi
    • 1.8 (8) विधाता – Vidhata Nature Poem in Hindi For Class 7
    • 1.9 (9) महका हुआ गुलाब – Mahka Huya Gulab Best Poem in Hindi
    • 1.10 (10) लाली है हरियाली है – Nature Poem in Hindi
    • 1.11 (11) आसमान की बाहों में – Prakriti Par Kavita in Hindi
    • 1.12 यह भी पढ़े: –

प्रकृति पर कविताएं – Best Poem on Nature in Hindi

Best Poem on Nature in Hindi
Best Poem on Nature in Hindi

 

(1) प्रकृति की लीला न्यारी – Prakriti Ki Leela Nyari Nature Poem in Hindi

प्रकृति की लीला न्यारी,

कहीं बरसता पानी, बहती नदियाँ,

कहीं उफनता समुद्र है,

तो कहीं शांत सरोवर है।

 

प्रकृति का रूप अनोखा कभी,

कभी चलती साए-साए हवा,

तो कभी मौन हो जाती,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

 

कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता है,

तो कभी काले-सफ़ेद बादलों से घिर जाता है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

 

कभी सूरज रौशनी से जग रौशन करता है,

तो कभी अंधियारी रात में चाँद तारे टीम टिमाते है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

 

कभी सुखी धरा धूल उड़ती है,

तो कभी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

 

कहीं सूरज एक कोने में छुपता है,

तो दूसरे कोने से निकलकर चौंका देता है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

 – नरेंद्र वर्मा 

 

(2) काली घटा – Kaali Ghata Nature Poem in Hindi

काली घटा छाई है

लेकर साथ अपने यह

ढेर सारी खुशियां लाई है

ठंडी ठंडी सी हव यह

बहती कहती चली आ रही है

काली घटा छाई है

कोई आज बरसों बाद खुश हुआ

तो कोई आज खुशी से पकवान बना रहा

बच्चों की टोली यह

कभी छत तो कभी गलियों में

किलकारियां सिटी लगा रहे

काली घटा छाई है

जो गिरी धरती पर पहली बूंद

देख ईसको किसान मुस्कुराया

संग जग भी झूम रहा

जब चली हवाएं और तेज

आंधी का यह रूप ले रही

लगता ऐसा कोई क्रांति अब शुरू हो रही

छुपा जो झूठ अमीरों का

कहीं गली में गढ़ा तो कहीं

बड़ी बड़ी ईमारत यूँ ड़ह रही

अंकुर जो भूमि में सोए हुए थे

महसूस इस वातावरण को

वो भी अब फूटने लगे

देख बगीचे का माली यह

खुशी से झूम रहा

और कहता काली घटा छाई है

साथ यह अपने ढेर सारी खुशियां लाई है

 – अज्ञात 

 

 

(3) हरी हरी खेतों में बरस रही है बुँदे –  Hindi Kavita on Nature

हरी हरी खेतों में बरस रही है बूंदे,

खुशी खुशी से आया है सावन,

भर गया खुशियों से मेरा आंगन।

 

ऐसा लग रहा है जैसे मन की कलियां खिल गई,

ऐसा आया है वसंत,

लेकर फूलों की महक का जशन।

 

धुप से प्यासे मेरे तन को,

बूंदों ने भी ऐसी अंगड़ाई,

उछल कूद रहा है मेरा तन मन,

लगता है मैं हूँ एक दामन।

 

यह संसार है कितना सुंदर,

लेकिन लोग नहीं है उतने अकलमंद,

यही है एक निवेदन,

मत करो प्रकृति का शोषण।

 – अज्ञात

 

(4) हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी – Hey Prakrti Kaise Batau Tu Kitni Pyari Nature Poem

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

हर दिन तेरी लीला न्यारी,

तू कर देती है मन मोहित,

जब सुबह होती प्यारी।

 

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

सुबह होती तो गगन में छा जाती लाली माँ,

छोड़ घोसला पंछी उड़,

हर दिन नई राग सुनते।

 

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

कहीं धुप तो कहीं छाव लाती,

हर दिन आशा की नई किरण लाती,

हर दिन तू नया रंग दिखलाती।

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

कहीं ओढ़ लेती हो धानी चुनर,

तो कहीं सफ़ेद चादर ओढ़ लेती,

रंग भतेरे हर दिन तू दिखलाती।

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

कभी शीत तो कभी बसंत ,

कभी गर्मी तो कभी ठंडी,

हर ऋतू तू दिखलाती।

 

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

कहीं चलती तेज हवा सी,

कहीं रूठ कर बैठ जाती,

अपने रूप अनेक दिखलाती।

 

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

कभी देख तुझे मोर नाचता,

तो कभी चिड़िया चहचाती,

जंगल का राजा सिंह भी दहाड़ लगाता।

 

हे प्रकृति कैसे बताऊँ तू कितनी प्यारी,

हम सब को तू जीवन देती,

जल और ऊर्जा का तू भंडार देती,

परोपकार का तू शिक्षा देती,

हे प्रकृति तू सबसे प्यारी।

 – नरेंद्र वर्मा 

 

(5) मान लेना वसंत आ गया – Nature Poem in Hindi

बागों में जब बहार आने लगे

कोयल अपना गीत सुनाने लगे

कलियों में निखार छाने लगे

भँवरे जब उन पर मंडराने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

खेतों में फसल पकने लगे

खेत खलिहान लहलाने लगे

डाली पे फूल मुस्कुराने लगे

चारों और खुशबु फैलाने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

आमों पर बौर जब आने लगे

पुष्प मधु से भर जाने लगे

भीनी भीनी सुगंध आने लगे

तितलियाँ उन पर मंडराने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

सरसों पर पिले पुष्प दिखने लगे

बृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे

प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे

वायु भी सुहानी जब बहने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

धुप जब मीठी लगने लगे

सर्दी कुछ कम लगने लगे

मौसम में बहार आने लगे

ऋतू दिल को लुभाने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

चाँद भी जब खिड़की से झाँकने लगे

यौवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे

चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे

मान लेना वसंत आ गया…रंग बसंती छा गया !!

 – डी. के. निवातिया 

 

 

(6) माँ की तरह – Maa Ki Tarah Prakrti Poem in Hindi

माँ की तरह हम पर प्यार लुटाती है प्रकृति,

बिना मांगे हमें कितना कुछ देती जाती है प्रकृति….

दिन में सूरज की रौशनी देती है प्रकृति,

रात में शीतल चांदनी लाती है प्रकृति….

भूमिगत जल से हमारी प्यास बुझाती है प्रकृति,

और बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति….

दिन-रात प्राणदायिनी हवा चलाती है प्रकृति,

मुफ्त में हमें ढेरों साधन उपलब्ध कराती है प्रकृति….

कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ बिछा रखे हैं  इसने,

कहीं पर्वत खड़े किए तो कहीं नदी बहा रखी है इसने….

कहीं गहरे खाई खोदे तो कहीं बंजर जमीन बना रखे हैं इसने,

कहीं फूलों की बादीयां बसाई तो कहीं हरियाली की चादर बिछाई है इसने….

मानव इसका उपयोग करे इससे इसे कोई एतराज नहीं,

लेकिन मानव इसकी सीमाओं को तोड़े यह इसको मंजूर नहीं….

जब-जब मानव उदंडता करता है, तब-तब चेतावनी देती है यह,

जब-जब इसकी चेतावनी नजरअंदाज की जाती है, तब-तब सजा देती है यह….

विकाश की दौड़ में प्रकृति को नजरअंदाज करना बुद्धिमानी नहीं है,

क्यों की सवाल है हमारे भविष्य का, यह कोई खेल-कहानी नहीं है….

मानव प्रकृति के अनुसार चले यही मानव के हित में है,

प्रकृति का सम्मान करे सब, यही हमारे हित में है….

 

(7) प्रकृति से प्रेम – Prakriti Se Prem Poem in Hindi

आओ आओ प्रकृति से प्रेम करे,

भूमि मेरी माता है,

और पृथ्वी का में पुत्र हूँ।

मैदान, झीलें, नदियां, पहाड़, समुंद्र,

सब मेरे भाई-बहन है,

इनकी रक्षा ही मेरा पहला धर्म है।

अब होगी अति तो हम न सहन करेंगे,

खनन-हनन व पॉलीथिन को अब दूर करेंगे,

प्रकृति का अब हम ख्याल रखेंगे।

हम सबका जीवन है सीमित,

आओ सब मिलकर जीवन में उमंग भरे ,

आओ आओ प्रकृति से प्रेम करे।

प्रकृति से हम है प्रकृति हम से नहीं,

सब कुछ इसमें ही बसता,

इसके बिना सब कुछ मिट जाता।

आओ आओ प्रकृति से प्रेम करे।

 – नरेंद्र वर्मा 

 

(8) विधाता – Vidhata Nature Poem in Hindi For Class 7

कौन से साँचो में तू है बनाता, बनाता है ऐसा तराश-तराश के.

कोई न  बना सके तू ऐसा बनाता, बनाता है उनमें जान डाल के!

सितारों से भरा ब्रह्माण्ड रचाया, न जाने उसमें क्या-क्या है समाया,

ग्रहों को आकाश में सजाया, न जाने कैसा अटल है घुमाया,

जो नित नियम गति से अपनी दिशा में चलते हैं,

अटूट प्रेम में घूम-घूम के, पल-पल आगे बढ़ते हैं!

सूर्य को है ऐसा बनाया, जिसने पूरी सृष्टि को चमकाया,

जो कभी नहीं बुझ पाया, न जाने किस ईंधन से जगता है,

कभी एक शोर, कभी दूसरे शोर से,

धरती को अभिनंदन करता है!

तारों की फौज ले के, चाँद धरा पे आया,

कभी आधा, कभी पूरा है चमकाया,

कभी-कभी सुबह शाम को दिखाया,

कभी छिप छिप के निगरानी करता है।

 

(9) महका हुआ गुलाब – Mahka Huya Gulab Best Poem in Hindi

हे महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंबल है,

हर दिल में है उमंगें

हर लब पर ग़ज़ल है,

ठंडी-शीतल बहे ब्यार

मौसम गया बदल है,

हर डाल ओढ़ा नई चादर

हर कली गई मचल है,

प्रकृति भी हर्षित हुआ जो

हुआ बसंत का आगमन है,

चूजों ने भरी उड़ान जो

गये पर नए निकल है,

है हर गांव में कौतुहल

हर दिल गया मचल है,

चखेंगे स्वाद नए अनाज का

पक गए जो फसल है,

त्यौहारों का है मौसम

शादियों का अब लगन है,

लिए पिया मिलन की आस

सज रही ‘दुल्हन’ है,

है महका हुआ गुलाव

खिला हुआ कंबल है…!!

– इंदर भोले नाथ 

 

(10) लाली है हरियाली है – Nature Poem in Hindi

लाली है, हरियाली है,

रूप बहारों वाली यह प्रकृति,

मुझको जग से प्यारी है।

हरे-भरे वन उपवन

बहती झील, नदियां,

मन को करती है मन मोहित।

प्रकृति फल, फूल, जल, हवा,

सब कुछ न्योछावर करती,

ऐसे जैसे माँ हो हमारी।

हर पल रंग बदलकर मन बहलाती,

ठंडी पवन चलाकर हमें सुलाती,

बेचैन होती है तो उग्र हो जाती।

कहीं सूखा ले आती, तो कहीं बाढ़,

कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती,

इस तरह अपनी नाराजगी जताती।

सहेज लो इस प्रकृति को कहीं गुम न हो जाए,

हरी-भरा छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल,

कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का।

 – नरेंद्र वर्मा

 

(11) आसमान की बाहों में – Prakriti Par Kavita in Hindi

आसमान की बाहों में,

 प्यारा सा वो चाँद,

न जाने मुझे क्यों मेरे,

साथी सा लग रहा है,

खामोश है वो भी,

खामोश हूँ में भी,

सहमा है वो भी,

सहमी हूँ में भी,

कुछ दाग उसके सीने पर,

कुछ दाग मेरे सीने पर,

जल रहा है वो भी,

जल रही हूँ में भी,

कुछ बादल उसे ढंके हुए,

और कुछ मुझे भी,

सारी रात वो जागा है,

और साथ में मैं भी,

मेरे अस्तित्व में शामिल है वो,

सुख में और दुःख में भी,

फिर भी वो आसमां का चाँद है,

और मैं…जमीं की हया!

 

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यह भी पढ़े: –

देशभक्ति पर सर्वश्रेष्ठ कविताएं

 

 

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