गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | Gautam Buddha Motivational Story in Hindi
Gautam Buddha Motivational Story in Hindi
एक दिन सुबह सुबह भिक्षुओं की सभा में बुद्ध पधरी। सभा में उनकी प्रतीक्षा कर रहे उनके शिष्य यह देखकर बहुत ही चकित हुए कि बुद्ध पहली बार अपनी हाथ में कुछ लेकर आये हैं। उनके हाथ में एक रुमाल था। बुद्ध के हाथों में रुमाल देखकर सभी समझ गए की इसका कुछ न कुछ विशेष प्रयोजन जरूर होगा।
बुद्ध अपने आसन पर विराजे और उन्होंने किसी से कुछ भी ना कहा। उन्होने रुमाल लिया और उसमें कुछ दुरी पर पांच गाठे लगा दी। यह सब देखकर शिष्य मन में सोच रहे थे कि अब बुद्ध क्या करेंगे, क्या कहेंगे। बुद्ध ने उनसे पूछा, “कोई मुझे यह बता सकता है कि क्या यह वही रुमाल है जो गाठे लगाने से पहले था।
बुद्ध के एक शिष्य ने कहा, “इसका उत्तर देना कठिन है। एक तरह से देखे तो रुमाल वही है क्यों कि इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। दूसरी दृष्टि से देखे तो पहले इसमें पांच गाठे नहीं लगी थी अतः यह रुमाल पहले जैसा नहीं रहा है क्यों कि इसमें अब पांच गाठे हैं। और जहाँ तक इसकी मूल प्रकृति का प्रश्न है यह परिवर्तित है। यह पहले भी एक रुमाल था और अभी भी एक रुमाल है। इस रुमाल का केवल वाह्य रूप बदला है लेकिन इसका जो पदार्थ है वह वही का वही है और उसकी मात्रा भी वही है।”
बुद्ध ने कहा , ‘”तुमने सही कहा। अब मैं इन गाठों को खोल देता हूँ।”
यह कहकर बुद्ध रुमाल के दोनों तरफों को एक दूसरे के बीच में खींचने लगे।
बुद्ध ने शिष्य से पूछा, “तुम्हे क्या लगता है इस प्रकार से खींचने पर क्या मैं इन गाठों को कभी खोल पाऊंगा।”
शिष्य ने कहा, “नहीं गुरूजी। इस प्रकार तो आप इन गाठों को और अधिक मजबूत बना देंगे और यह कभी नहीं खुलेगी।”
बुद्ध ने कहा, “ठीक है अब तुम मेरे अंतिम प्रश्न का उत्तर दो कि इन गांठों को खोलने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”
शिष्य बोला, “तथागत इसके लिए मुझे निकटता से यह देखना होगा कि यह गाठे कैसे लग गए हैं। इसका ज्ञान किये बिना मैं इन्हे कभी भी नहीं खोल पाऊँगा।’
बुद्ध बोले, “तुम सत्य कहते हो। तुम धन्य हो। क्यों कि यही जानना सबसे ज्यादा आवश्यक है और यह एक मूल भुत प्रश्न है जिसकी समस्या में तुम अभी पड़े हो। उससे बाहर निकलने के लिए यह जरुरी है कि तुम यह जानो कि तुम उससे ग्रसित क्यों हुए हो। यदि तुम यह परिक्षण नहीं करोगे तो जायेगा। इस संकट को दूर करने के लिए यह आवश्यक है तुम अपने अंदर झांको और देखो कि तुम्हारे मन में जो गांठे लगी है उन गांठों को तुम कैसे निकाल सकते हो। उसके लिए तुम्हें अपने मन की गांठों को खोलना होगा और उसे ध्यानपूर्वक देखना और समझना होगा। लेकिन विश्व में सभी ऐसा ही कर रहे हैं। सभी पूछते हैं हम काम से, क्रोध से, लोभ से, मोह से, अहंकार से और पता नहीं किस किस चीज से, कैसी-कैसी वृत्तियों से कैसे बाहर निकले। लेकिन वह कभी यह नहीं पूछते कि हम वृत्तियों में, इन प्रवर्तियों में कैसे पड़ गए हैं। जब तक हम यह नहीं जानेंगे कि हम इन वृत्तियों में कैसे पड़े हैं तब तक हम यह नहीं पाएंगे कि हम उनसे कैसे बाहर निकले। तो सबसे पहले जरुरी यह है कि हम यह जाने कि हम इन सब में कैसे पड़े हैं। तभी हम इन गांठों को खोल पाएंगे और फिर रुमाल की तरह फैलकर अपने आकार को प्राप्त करेंगे।”
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