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हर सवाल का जवाब | Har Sawal ka Jawab Hindi Kahani

हर सवाल का जवाब | Har Sawal ka Jawab Hindi Kahani

Posted on December 11, 2021

हर सवाल का जवाब  Har Sawal ka Jawab Hindi Kahani

 

हर सवाल का जवाब – Hindi Kahani 

पहाड़ों के बीच बसा हुआ एक छोटा सा गाँव अनंतपुर, इसी गाँव में रहने जमींदार गोपालदास अपनी पत्नी के साथ रहते थे। जमींदार गोपालदास एक भले व्यक्ति थे। पुरे गाँव में उनका बहुत मान-सम्मान था। जो भी मजदुर गोपालदास के खेत में काम करते थे वह बहुत बहुत ही खुश रहते थे क्यों कि गोपालदास उनका बहुत ख्याल रखते थे।  किसी भी मजदुर के साथ वह भेदभाव नहीं करते थे। और उनकी मेहनत का पूरा पैसा देते थे। बल्कि  अगर किसी मजदुर को जरुरत पड़े तो बिना किसी दिक्कत के उधार पैसा दे देते थे।

यूँ तो गोपालदास के पास सुख-सुविधाओं की कोई कमी न थी। बस एक ही कमी थी उनके जीवन में और वह थी संतान की कमी। उनके मन में कई बार आया कि इतनी धन संपत्ति  का उनके बाद बाइरस कौन होगा। दोनों पति-पत्नी ने बच्चे को गोद लेने का मन बनाया लेकिन उन्हें हर बार कोई न कोई लालची ही टकरा जाता था। उनके कई रिश्ते-नाते भले उन्हें अपना बच्चा देने को तैयार थे लेकिन गोपालदास जानते थे कि वे सब सिर्फ उनके धन-संपत्ति के लालच में ही ऐसा कर रहे हैं। इसलिए वे किसी ऐसे को गोद लेना चाहते थे जो अनाथ हो और साथ ही साथ इतना लायक भी हो कि इतनी धन-संपत्ति को संभाल सके।

जमींदार गोपालदास के सारे कामो को देखने का काम उनका मुंसी धरोहर करता था। खेतो में काम करने वाले मजदूरों का हिसाब किताब करना, किसको काम पर कहाँ लगाना है यह सब देखना मुंसी जी का ही काम था।

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एक दिन जमींदार गोपाल “दास अपने खेतो का मोयना करने के लिए अपने घोड़े पर बैठकर निकले। कि तभी हवा में उड़ते-उड़ते एक टोपी उनके घोड़े के मुँह पर आ टकराई। अचानक टोपी लगने से घोडा बिदक गया और अपनी पिछली टांगो पर खड़ा हो गया।

घोड़े के अगले पैर उठ जाने से घोड़े पर बैठे जमीदार खेत में गिर गए। जमीदार गोपालदास को बहुत गुसा आया। वह अपने कपड़े झाड़कर खड़े हुए  और चिल्लाकर बोए, “कौन मुर्ख है जिसने यह टोपी मेरे घोड़े के मुँह पर मारी है। ” तभी जमींदार ने देखा कि उनके सामने एक 13 -14 साल का लड़का खड़ा था।

जमींदार ने चिल्लाकर उस लड़के से कहा, “ए लड़के तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है, तुमने मेरे घोड़े को डरा दिया और मुझे गिरा दिया।”

वह लड़का दिखने में बहुत मासूम सा लग रहा था। जमीदार की रोपदर और कड़क आवाज सुनकर मानो उसकी टांगे कांपने लगी। लड़के ने डरते-डरते कहा, “हुजूर, यह टोपी तो मैंने ख़ुशी-ख़ुशी उछाली थी, मुझे क्या पता था कि घोड़े के मुँह [ार जाकर टकराएगी और आप गिर जाएंगे।

जमींदार ने कहा, “ऐसी क्या ख़ुशी मिल गई तुम्हें जरा हमें भी तो बताओ।”

लड़के का मासूम सा चेहरा देखकर जमींदार का गुस्सा अब शांत हो चूका था।

लड़के ने कहा, “हुजूर, मुंसी जी ने का; मुझसे एक सवाल पूछा था और कहा था अगर मैं उसका सही जवाब दूंगा तो वह  मजदूरी में आठ आने ज्यादा देंगे। बस उस सवाल का जवाब मुझे मिल गया। इसी ख़ुशी में मैंने अपनी टोपी उछाल दी थी।

जमींदार गोपालदास ने उत्सुकता से पूछा, “ऐसा कौन सा सवाल था?”

लड़के ने कहा, “हुजूर, सवाल यह था , जो आदमी से भी ऊँची है लेकिन मुर्गी से भी छोटी होती है।”

जमींदार ने हैरत से पूछा, “भला ऐसी कौन सी चीज हो सकती है!”

लड़के ने तपाक से कहा, “तो क्या आपको भी इसका उत्तर नहीं मालूम?”

जमींदार ने झूठ ही बोला, “मालूम तो है लेकिन तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ।

लड़का बोला, “वह चीज है टोपी। जिस आदमी के सिर पर रहती है उस आदमी से ऊँची रहती है परन्तु अगर जमीन पर रख दो तो यह मुर्गी से भी ज्यादा छोटी हो जाती है।”

लड़के की बात सुनकर गोपालदास खुश हुए। उन्होंने लड़के से पूछा, “बड़े ही होशियार हो। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं और कहा रहते हैं?”

यह सुनकर लड़के का खिलखिलाता हुआ चेहरा एकदम मुरझा सा गया। उसने, “कहा हुजूर, अनाथ हूँ। जब मैं दस साल का था तब पहाड़ो से आई बाढ़ में मेरे माँ-बाप बह गए थे। तब से मैं अकेला ही हूँ और मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पाल लेता हूँ। ”

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लड़के की बात सुनकर गोपालदास को बहुत दुःख हुआ। जमींदार ने पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा बेटा?”

लड़के ने कहा, “हुजूर, माँ-बाप ने तो बड़े प्यार से दामोदर रखा था पर सब लोग मुझे दामू कहकर ही पुकारते हैं। ”

वह लड़का दामू, जमींदार गोपालदास के मन को भा गया। जमींदार ने कहा, “ततुम्हें आठ आने नहीं बल्कि षोला आने ज्यादा मिलेंगे मजदूरी में।” और यह कहकर वह वहां से वापस चल दिए।

वापस चलते-चलते उनके मन में दामू को गोद लेने का ख्याल आया। वह अनाथ भी था और होशियार भी और उसकी मेहनत तो जमींदार देख ही चुके थे। शाम ढलते-ढलते वह अपने घर पर पहुंचकर अपनी पत्नी को सब कुछ बताते हैं और यह भी कहते हैं कि वह दामू को अपना बेटा बनाना चाहते हैं।

यह बात उनकी पत्नी को जच गई। उसने कहा कि आप दो दिन बाद दामू को घर पर बुलाये मैं भी उससे मिलना चाहती हूँ। फिर उसके बाद हम कोई अंतिम फैसला लेंगे। इन दो दिनों में आप गाँव में उसके बारे में सब कुछ पूछताछकर लीजिये कि वह जो कह रहा है वह सच है या नहीं।

गोपालदास ने अगले दो दिन तक उस लड़के की सारी जानकारी निकलवाई। वह सब कुछ सच कह रहा था। और दो दिन बाद रामु जमींदार के घर पर आया। जमींदार और उनकी पत्नी दोनों ही घर पर थे।

जमींदार की पत्नी ने दामू को बैठने का इशारा करते हुए कहा, “दामू, सुना है तुम्हारे पास सब सवालों का जवाब होता है। बहुत ही होशियार हो तुम।”

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दामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “मालकिन वह तो मैं असेही मजाक मस्ती में कर लेता हूँ।”

जमींदार की पत्नी ने कह, “ठीक है। मेरे पास भी तुम्हारे लिए कुछ सावल है तुम्हे उसका सही उत्तर देना होगा। यह सवाल उन फलों के बारे में होंगे जो मैं तुम्हें अभी खिलने वाली हूँ। तो बबताओ, जिसके पेट में दांत है।”

दामू ने कुछ सोचा और बोला, “आप मुझे अनार खिलाने वाली है मालकिन।”

मालकिन ने अगला सवाल पूछा, “जिसके पेट में मुछे हैं।”

दामू एक पल रुका और बोला, “आम का फल।”

मालकिन ने तीसरा सवाल किया, ” जिसके पेट में पानी है।”

दामू तपाक से बोल पड़ा, “नारियल का फल।”

दोनों पति-पत्नी दामू की बुद्धिमानी से बहुत खुश थे। उन दोनों ने दामू से कहा , “आज से तुम अनाथ नहीं हो, हम दोनों आज से तुम्हारे माँ-बाप हैं और तुम हमारे बेटे हो।”

यह सुनते ही दामू की आँखों में आंसू टपकने लगे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस जैसे गरीब और अनाथ का जीवन इस तरह से बदल जायेगा। उसने झुककर दोनों को प्रणाम किया और उन गले लग गया।

इस तरह से एक निःसंतान जमींदार को दामोदर जैसा होशियार लड़का बेटे के रूप में मिल गया।

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