सौ रुपये की भीख Sou Rupay ki Bhikh Hindi Story
सौ रुपये की भीख
सेठ रतनलाल प्रीतमपुर गाँव के जाने माने व्यापारी थे। व्यापार के सिलसिले में सेठ जी को आसपास के कई गाँव में जाना पड़ता था। सेठ जी का स्वभाव बहुत ही नरम दिल और दयालु था। इतनी धन-सम्पत्ति होते हुए भी उन्होंने कभी घमंड को अपने सिर पर चढ़ने नहीं दिया।
पूरा गाँव उनकी सज्जनता और उनके मिलनसा स्वभाव को जानता था। सेठ रतनलाल जब भी किसी नगर में वयापार के सिलसिले में जाते तो वहां के प्रसिद्ध मंदिर में जरूर माथा टेकते थे। धार्मिक कामों में सेठ जी की बहुत आस्था थी।
एक बार सेठ रतनलाल को व्यापार के लिए दूसरे गाँव में जाना पड़ा। वहां पर सेठ जी ने वहां के प्रसिद्ध मंदिर के बारे में सुना तो वहां माथा टेकने पहुंच गए। जब सेठ जी मंदिर में जा रहे थे तो मंदिर की सीढ़ियों पर एक भिखारी बैठा था।
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उस भिखारी ने अपने सामने दो चीजें रखी हुई थी, एक कटोरा जिसमे कुछ सिक्के थे और साथ ही में एक कपडे पर कुछ फूल रखे हुए थे। जब भी कोई उस भिखारी के कटोरे में सिक्का डालता तो एक फूल उठा लेता था। कुछ लोग बिना फूल उठाये भी उसके कटोरे में भीख डाल देते। सेठ रतनलाल ने भी अपने दयालु स्वभाव के कारण उस भिखारी के कटोरे में सौ का एक नोट डाल दिया। और मंदिर की सीढ़िया चढ़ने लगे।
अभी सेठ जी ने पांच-सात सीढ़िया चढ़ी ही थी कि वापस भिखारी की तरफ आए और उन्होंने भिखारी के सामने रखे फूलों में कुछ फूल उठाये और भिखारी से कहा, “मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं लेकिन बदले में कुछ फूल लेना भूल गया। अब मैं यह फूल ले रहा हूँ। आखिर मैं भी एक व्यापारी हूँ और तुम भी एक व्यापारी हो। हिसाब बराबर रहना चाहिए।” इतना कहकर सेठ जी जल्दबाजी में मंदिर में चले गए।
रोज मंदिर में बैठकर कुछ सिक्के इकट्ठा करने वाला वह भिखारी, उसके लिए सौ रूपये का नोट एक बड़ी रकम थी। इसके बाद सेठ रतनलाल मंदिर में भगवान के दर्शन करके वापस चले गए और अपने व्यापार का काम पूरा करने के बाद अपने गाँव लौट गए।
अपने गाँव वापस पहुंचकर सेठ जी पहले की तरह अपने काम धंदे में व्यस्त हो गए। धीरे-धीरे एक साल बीत गया। सेठ रतनलाल को एक बार फिर उसी गाँव में जाना पड़ा, लेकिन इस बार व्यापार के लिए नहीं बल्कि एक शादी के समारोह में हिस्सा लेने के लिए। सेठ जी एक बार फिर उस गाँव में पहुंचे। पहले उन्होंने मंदिर में भगवान के दर्शन किये, उसके बाद वह शादी में पहुंच गए। काफी बड़ा शादी का समारोह था और बहुत ही अच्छी सजावट की गई थी। खासतौर पर फूलों की सजावट तो देखने लायक थी। सेठ जी भी इतनी शानदार सजावट को देखकर हैरान थे।
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अभी सेठ रतनलाल वहां की सजावट को देख ही रहे थे कि तभी एक आवाज उन्हें सुनाई दी। कोई उनसे कह रहा था, ‘नमस्कार सेठ जी, कैसे हैं आप?” सेठ जी ने घूमकर उस आदमी की तरफ देखा। एक बहुत ही अच्छी पोशाक पहने हुए, एक आदमी जो शायद कोई अमीर व्यापारी जान पड़ता था।
सेठ जी ने विनम्रता से कहा, “माफ कीजिये पर मैंने आपको पहचाना नहीं। कौन है आप?”
उस आदमी ने कहा, “सेठ जी हम पहले भी मिल चुके हैं।”
सेठ जी ने हैरानी भरे स्वर में कहा, “मुझे याद नहीं आ रहा।”
वो आदमी बोला, “सेठ जी, एक साल पहले इसी नगर की मंदिर की सीढ़ियों पर आपने एक भिखारी को सौ रुपये दिए थे और कहा था तुम भी एक व्यापारी हो और मैं भी एक व्यापारी हूँ।”
सेठ जी ने दिमाग पर थोड़ा जोर डालते हुए कहा, “अरे हाँ याद आया। उस भिखारी के बारे में तुम कैसे जानते हो?”
वो आदमी बोला, “सेठ जी मैं ही वह भिखारी हूँ।”
यह सुनकर सेठ हैरान भी थे और खुश भी और वह बोले, “अच्छा लेकिन आज तो तुम बिलकुल बदले हुए हो। वह कैसे?”
उस आदमी ने जवाब दिया, “सेठ जी, जब अपने मेरे सामने से फूल उठाये और मुझसे कहा कि मैं एक व्यापारी हूँ और तुम भी एक व्यापारी हो, तो न जाने क्यों यह बात मेरे दिल में घर कर गई। आज तक सभी ने मुझे भिखारी ही कहा और भिखारी ही माना है। लेकिन जब आप ने मुझे एक व्यापारी कहा तो आपने मुझे इतना सम्मान दिया और मेरा सोया हुआ आत्मसम्मान एक बार फिरसे जाग गया। मैं उस पूरी रात को सो ही नहीं पाया। आपके कहे शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे। अगले ही दिन मैंने भीख मांगना बंद कर दिया और आपके दिए हुए सौ रुपये से मैंने फूलों का व्यापार शुरू कर दिया। शुरू-शुरू में मंदिर के बाहर ही फूल मालाएं बेचता रहा और धीरे-धीरे मेरा फूलों का वव्यापार इतना अच्छा चल पड़ा कि अब मैं व्याह शादियों में भी फूलों की सजावट करता हूँ और इस समारोह में भी फूलों की सजावट जो आप देख रहे हैं वो मैंने ही करवाई है।”
उस आदमी ने आगे कहा, “आपके कहे हुए शब्दों ने मेरी पूरी जिंदगी ही बदल दी। मैं एक भिखारी से एक व्यापारी बन गया। यह सब आपकी ही मेहरबानी है।”
सेठ जी ने उस व्यक्ति से कहा, “यह मेरी नहीं तुम्हारी ही मेहनत का नतीजा है। मैंने तो तुम्हे एक रास्ता दिखाया था उस रास्ते पर तुम अपने मेहनत से आगे बढे हो और अपनी कबिलियत को भी साबित किया। इसी तरह आगे बढ़ते रहना और किसी न किसी जरूरतमन्द की सहायता करते रहना।” ऐसा कहकर वो दोनों शादी के समारोह का आंनद लेने लगे।
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