नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा Why Did Nathuram Godse Killed Mahatma Gandhi in Hindi
तो दोस्तों आइए जानते हैं कि आखिर नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा था? आज हम आपसे शेयर करने जा रहे हैं एक ऐसी ही सम्पूर्ण जानकारी। 60 साल तक भारत में ऐसे ही प्रतिबंधित रहा था नाथूराम का अंतिम भाषण कि आखिर उन्होंने गांधी को क्यों मारा? 30 जनुअरी 1948 को नाथूराम ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोडसे इस घटना के बाद घटनास्थल से फरार नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। नाथूराम गोडसे समेत 17 अभयुक्तों को गांधीजी के हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई न्यायमूर्ति खोसला ने नाथूराम से अपना वक्तव्य पढ़कर सुनाने को कहा। जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया। हालाँकि सरकार ने नाथूराम से इस व्यक्तव पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधीजी के हत्या किए सहयोगी गोपाल गोडसे ने 60 साल की लंबी, क़ानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया। नाथूराम गोडसे ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीले न्यायलय की समक्ष प्रस्तुत की। तो दोस्तो आज हम हम आपको बताने जा रहे हैं उसी वक्तव्य से से कुछ मुख्य अंश।
नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा – Why Did Nathuram Godse Killed Mahatma Gandhi
नाथूराम का विचार था कि गांधीजी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। कानपूर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था। महात्मा गांधी भी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलना और वलिदान करने के बातें करते थे। नाथूराम गोडसे को भय था कि गांधी जी की अहिंसा वाली नीति लोगों को कमजोर बना देगी और वह अपना अधिकार प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश उफान हो गया था। भारतीय जनता इस नरसंघार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंचा को लेकर गांधी जी के पास गई लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों की इस आग्रह को समर्थन न देने का साफ-साफ कह दिया। महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीती में साम्प्रदायिक का जहर घोल दिया। महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे। वह केरल के मोघला मुसलमानों द्वारा वहां के 1500 हिन्दुओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाएं जाने घटना का विरोध तक नहीं कर सके।
कांग्रेस की त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बहुमत से कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया। किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमैया का समर्थन दे दिया। गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफा देने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और और राजगुरु को फांसी दे दी गई।
गांधी जी ने कश्मीर के हिन्दू राजा हरी सिंह से कहा कि कश्मीर मुसलिम बहुत क्षेत्र है अतः वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए अतः राजा हरी सिंह को शासन छोड़कर काशी जाकर प्रायश्चित करना क्यों कि हैदराबाद के निजाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुत क्षेत्र था। गांधी जी की नीतियां धर्म के साथ बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के बाद सरदार पटेल ने सशक्त बलों की सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का काम किया। गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता।
पाकिस्तान में हुए भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मसजिद में जब आश्रय स्थायी रूप से लिया तो मुसलमानो ने मसजिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी जी नतमस्तक हो गए। और गांधी जी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को, जिनमें बूढ़े, स्त्रियां और बालक अधिक थे, मसजिदों से खदेड़ दिया। बाहर ठिठुरते सर्दियों में रात बिताने पर उन्हें मजबूर किया गया।
महात्मा गांधी ने दिल्ली में स्तिथ अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पड़ी। इस पर मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को तरकिनार कर दिया। महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके।
लाहौर कांग्रेस में बल्लभभाई पटेल का वहोमत से विजय प्राप्त कर गए लेकिन गांधी जी अपने जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरू को दे गए। गांधी जी अपने मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वह नीति-अनीति का लेश मात्र भी विचार नहीं करते थे।
14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी जी ने वहां पहुंचकर प्रस्ताव का समर्थन रखा, यह भी तब जबकि गांधी जी ने स्वयं यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों क कतल खुले आम भी हुआ। गांधी जी ने कुछ नहीं किया। धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुसलमान तुष्टिकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गांधी ही थे। जब मुसलमानो ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का विरोध किया तब महात्मा गांधी ने इसे स्वीकार कर लिया, हिंदी की जगह हिंदुस्तानी को बढ़ाबा देने लगे।
बादशाह राम और बेगम सीता शब्दों का चलन शुरू हुआ। कुछ एक मुस्लमान द्वारा बंदेमातरम गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गए और इस प्रताव को भारत का राष्ट्रगान नहीं बनने दिया। गांधी जी ने अनेक अवसरों परशिवाजी, महाराणा प्रताप और गुरु गोविन्द सिंह जी की पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
वहीं दूसरी ओर गांधी जी ने मोहम्मद अली जिन्ना को कैद-ई-आजम कहकर पुकारा। कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज बनाए जाने के लिए एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने सर्वसम्मिति से चरखा और भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्रध्वज के डिज़ाइन को मान्यता दी। किंतु गांधी जी के जिद केकारण उसमें एक तिरंगा बनाया गया।
जब सरदार बल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मंदिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण करने का प्रसार प्रारित किया गे, तब गांधी जी जो मंत्रीमंडल के सदस्य भी नहीं थे, सोमनाथ मंदिर पर सरकारी व्यय पर प्रताव को निरस्तर कर दिया और 13 जनुअरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली के मस्जिदों का सरकारी खर्च से पुनर्निर्माण करने का दबाव डालने लगे।
भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 70 करोड़ रूपए देने थे। भारत ने 20 करोड़ रूपए दे भी दिए थे। लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आक्रमण से शुब्द होकर क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि ना देने का निर्णय ले लिया था जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान को दी।
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर एक कदम पर पाकिस्तान के पक्ष पर खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज़। गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की। इन घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोडसे ने महात्मा की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया। नाथूराम ने न्ययालय में स्वीकार किया कि महात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निःस्वार्थभाव से देश की सेवा की, मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के एक संप्रदाय से साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ। गांधी जी की हत्या के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था।
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