लक्ष्मी जी गणेश जी की कहानी – लक्ष्मी जी की कथा Diwali ki Kahani
नमस्कार दोस्तों, आज के हमारे इस लेख में हम आप सभी के लिए दिवाली की हार्दिक सुभकामनाओं के साथ गणेश जी महाराज और माता लक्ष्मी की एक बहुत सुंदर कहानी लेकर आए हैं , उम्मीद करते हैं आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी।
लक्ष्मी जी गणेश जी की कहानी
एक समय की बात है, किसी नगर में एक ब्राह्मण और एक ब्राह्मणी रहती थी। दोनों ने घर के मंदिर में गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित कर रखे थे। ब्राह्मण प्रदिदिन उनकी सेवा पूजा करता था और ब्राह्मणी भोजन बनाती उनको भोग लगाती थी। ब्राह्मण के घर बस एक ही कमी थी, वह दोनों आपस में छोटी छोटी बातों को लेकर झगड़ते थे।
ब्राह्मणी भोजन बनाती तो ब्राह्मण को कहती, “भोग लगा दो।”
ब्रह्मण कहता, “तुम लगा दो। मैंने पूजा कर दी है।”
जब भगवान को सुलाने का समय होता, आरती का समय होता तो ब्राह्मण कहता, “तुम कर दो।”
और ब्राह्मणी कहती, “तुम कर दो।”
परन्तु नोकझोक के साथ दोनों का गुजारा हो रहा था। कार्तिक का महीना था और दीपावली का दिन था। ब्राह्मणी ने भोजन बनाया और ब्राह्मण को कहा, “भोग लगा दो।”
इस बात से फिर दोनों में नोकझोक शुरू हो गई।
गणेश जी महाराज लक्ष्मी जी से बोले ,”यह दोनों तो बहुत लड़ते हैं। हम किसी और के घर जाकर आसान ग्रहण करते हैं।”
वे दोनों ब्राह्मण के घर से चल दिए। कुछ ही दूर पर एक घर में पहुंचे तो देवरानी जेठानी आपस में लड़ रही हैं। घर का आंगन गंदा पड़ा है। झूठे बर्तन इधर उधर बिखरे पड़े हैं। भोजन, पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
लक्ष्मी जी बोली, “यहाँ तो मैं बिलकुल नहीं रहूंगी।”
दूसरे घर गए तो देखा बहु अपने सास से लड़ रही थी। वहां भी बर्तन सब ऐसे ही पड़ा था। भोजन, पानी का कहीं कोई नाम नहीं था। तीसरे घर गए वहां ननद भावी लड़ रही थी। चौथे घर गए , वहां भाई-भाई आपस में लड़ रहे थे। असेही जिसके भी घर में जाते, कुछ न कुछ बुरा वहां उन्हें मिलता था।
फिर लक्ष्मी जी बोली, “गणेश जी, घूमते घूमते बहुत समय बीत गया कहीं भी भोजन पानी नहीं मिला। चलो ब्राह्मण के घर वापस चलते हैं। वे दोनों ब्राह्मण के घर पहुंचे। अंदर से पकवानों की खुशबू आ रही थी। द्वार खटखटाया। अंदर से ब्राह्मणी बोली, “मैं नहीं खोलती द्वार। पहले तो तुम चले गए अब क्यों आए हो?”
वे बोले, “ब्राह्मणी अब नहीं जाएंगे।”
ब्राह्मणी बड़ी होशियार थी, बोली, “मैं नहीं मानती कि अब दोबारा आप नहीं जाओगे। पहले मुझे वचन दो तभी मैं द्वार खोलूंगी।”
लक्ष्मी जी बोली, “मांग बब्राह्मणी क्या मांगती है।”
तब ब्राह्मणी बोली, “अन्न दो, धन दो, पूत-पालन दो,सोने का अखाड़ दो, कुल आई बहु दो, हाथी-घोड़े दो. लाभ-लस्कर दो, बारह बर्ष की मेरी काया हो जाए, बारह वर्ष की मेरी ब्राह्मण की काया हो जाए ऐसा वचन दो।”
लक्ष्मी जी बोली, “जा ब्राह्मणी तुझे यह सब प्राप्त होगा।”
ब्राह्मणी ने द्वार खोला। गणेश जी और लक्ष्मी जी ने अंदर प्रवेश किया और ब्राह्मणी से बोले, “ब्राह्मणी, तूने तो हमें ठग लिया पर जा तुझे यह सब प्राप्त होगा। लेकिन एक बात याद रखना की आज के दिन यानि दीपावली की रात को अपने आंगन में चौक पुरकर एक चौमुखी दिया सारी रात जलाना। मैं तेरी सात पीढ़ियों तक विराजमान रहूंगी।” ऐसा कहकर गणेश जी और लक्ष्मी जी ब्राह्मण के घर वापस विराजमान हो गए। और उनकी कृपा से ब्राह्मण के घर सब सुख ही सुख हो गया।
“लक्ष्मी जी गणेश जी की कहानी – लक्ष्मी जी की कथा | Diwali ki Kahani” कैसी लगी आपको यह कहानी उम्मीद करते हैं जरूर पंसद आई होगी अगर पसंद आए तो अपने दोस्तों को भी शेयर करे।
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