चोर को मिला चोर एक मजेदार हिंदी कहानी Chor Ko Mila Chor Hindi Kahani
चोर को मिला चोर हिंदी कहानी
एक शहर में लच्छू नामक एक ठग रहा करता था। वह बहुत चालाक ठग था, ठगी के नए नए तरीके अपनाया करता था। एक दिन वह भेष बदलकर एक सेठ के पास गया। उसने सेठ को अत्यंत कीमती हीरे दिखाए।
उन हीरों को देखकर सेठ की आँखें फट गई उसने इतनी कीमती हीरे बहुत कम देखे थे। लेकिन सेठ बहुत पारखी था। उसने हीरों को उलट-पुलट कर देखा, गौर से परखा फिर वह लच्छू से बोला कि, “यह हीरे नकली है।” उसकी बात सुनकर ठग नाराज होते हुए बोला, “यह हीरे असली है। संसार में इससे कीमती हीरे आपको कहीं नहीं मिलेंगे। आपकी परख सही नहीं है।”
सेठ उसकी बात नहीं माना। ठग भी अपनी बात पर अड़ा रहा। दोनों में कुछ ही देर में तनातनी हो गई। सेठ ने ताव में आकार ठग को अपने असली हीरे दिखा दिए। बस फिर क्या था ठग ने उसी समय योजना बना ली कि किस प्रकार उन हीरों को पार करना है। लेकिन सेठ भी कम चालाक नहीं था। उसने उन हीरों को फिर से छुपा दिया। ठग वहां से चल दिया।
अगले दिन लच्छु भेष बदलकर सेठ के पास पहुंचा। वह आवाज बदलकर सेठ से बोला, “सेठ जी मैं आपको सावधान करने आया हूँ।” सेठ बोला, “लेकिन किस लिए?” लच्छू बोला, “आपके हीरे कल चोरी हो गए हैं।” सेठ बोला, “कैसे?” वह बोला, “कल जो आदमी आपके पास आया था वह मशहूर ठग लच्छू था।”
लच्छू का नाम सुनकर सेठ का तो दम ही निकल गया, फिर भी स्वयं को संभालते हुए वह बोला, “कैसे हो सकता है? मैंने अपने हीरों की पेटी तो संभालकर रखी है।”
सेठ के इतना कहने पर ठग ने सेठ को एक पेटी दिखाई। यह पेटी सेठ की हीरों की पेटी से हूबहू मिलती थी। उसे देखकर सेठ के होश ही गुम हो गए। वह बोला, “यह खाली पेटि मुझे ठग ने दी है और कहा है कि सेठ को बता देना।”
सेठ के शरीर से पसीने छूटने लगे। वह लपकर भीतर गया तथा तुरंत ही अपनी असली हीरों की पेटी को संभाल कर लाया और ठग को बोला, “देखो यह रही मेरी पेटी।”
लच्छू ठग ने उस पेटी को देखा। उसके बाद उसने अपनी पेटि को देखा और मन ही मन बोला कि कमाल है यह दोनों आपस में कितनी मिलती है। इतने में ठग ने चुपके से अपनी जेब से एक चूहा निकाला और ऐसा उछाला कि सेठ चौक पड़ा। पालक झपकते ही लच्छू ने वह हीरों की पेटी बदल दी। सेठ एक बार ठहर गया, फिर अपनी पेटी लेकर भीतर गया और वापस आकर बोला, “श्रीमान आपको ठग ने चकमा दे दिया है।” इतना सुनकर वह बड़बड़ाता हुआ चला जाता है।
अब वह बहुत प्रसन्न था, उसने पास लाखों रूपए के हीरे मौजूत थे। वह इन हीरों को लेकर एक दूसरे सुनार के पास गया। वह हमेशा उसी सुनार को अपना माल बेचा करता था। सुनार जानता था कि यह ठगी का माल बेचता है, इसी कारण वह लच्छू को रूपए का आधा देता था। कभी-कभी तो एक रूपए की पावली भी दे देता था। सुनार ने उस दिन भी ऐसा ही किया। उसने हीरों के बहुत ही कम दाम लगाए, किन्तु इतने दामों में सौदा करने को ठग राजी नहीं हुआ।
सुनार ने कुछ कम-ज्यादा किया, किन्तु लच्छू फिर भी नहीं माना। वह वहां से चला गया। उन्ही दिनों एक शहर में एक चोर आया हुआ था। उसे पता चला कि लच्छू के पास बहुत से हीरे है। वह आपने धंधे में लच्छू का भी बाप था। वह चोरी की कला में उससे भी दो हाथ आगे था। उसने सोचा कई किसी भी प्रकार इन हीरों को चुराना होगा।
लच्छू भी बहुत होशियार था। अपने हीरों के सुरक्षा के लिए एक ठाकुर के डेरे में विश्राम किया। डेरा मजबूत लाल पत्थरों का बना हुआ था। उसकी दीवारे बहुत ऊँची थी। उसके अंदर घुसना सरल नहीं था। हीरे चुराने के लिए लोग अपने घर से ठीक पौने बारह बजह निकला। उसने अपने साथ। बड़ी -बड़ी बारह किले तथा एक हतोड़ा लिया। किले बहुत मजबूत थी। वह पत्थर की जोड़ों में आसानी से गड़ जाती थी।
थोड़ी देर बाद घड़ी ने बारह बजाए। इसके साथ ही डेरे के घंटे की टंकार शुरू हो गई। चोर ने हर टंकार के साथ दीवार में एक-एक कील गाड़नी शुरू कर दी और उन पर चढ़ता चला गया। बारह टंकारो के साथ उसने बारह किले गाड़ दी। टंकार की आवाज में किले गाड़ने की आवाज किसी को भी सुनाई नहीं पड़ी। वह किलों पर चढ़कर डेरे के अंदर कूद गया।
ठग भी कम चतुर नहीं था। वह हीरों की पेटी को अपने सिर के निचे रखकर सो रहा था जिससे कोई उसे निकाल न सके। सबसे पहले चोर ने ठग के कमरे का पता लगाया। इसके पश्चात वह खिड़की के रास्ते कमरे में घुसा। चन्द्रमा उग रहा था, वह धीरे-धीरे आकाश की ओर बढ़ रहा था।
चोर चन्द्रमा की रौशनी का इंतजार कर रहा था, जिससे कमरे में उजाला हो सके। थोड़ी देर बाद चन्द्रमा खिड़की के पास आ गया। चोर ने उसके उजाले में हीरे के पेटी को देखा। पेटी को ठग ने अपने गर्दन के निचे छुपा रखा था। चोर मन ही मन बड़बड़ाया, “बड़ा ही उस्ताद है, लेकिन मैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली है। उसे बताता हूँ।”
वह धीरे-धीरे ठग के पास गया। उसने एक बार फिर से चारो ओर देखा। वहां पर सन्नाटा छाया हुआ था। सिर्फ ठग के खर्राटे की आवाज गूंज रही थी। चोर ने तुरंत ही इधर-उधर देखा। उसे वहां पर एक ईंट दिखी। ईंट पर उसने चादर लपेट दी और उसे लेकर ठग के पास पहुंचा। उसने अपनी जेब से तंबाकू की डिबिया निकाली। उसमें से थोड़ा सा तंबाकू निकलाकर ठग के नाक के आगे रखा। ठग को तुरंत छींक आई। छींक के साथ गर्दन ऊपर उठी। चोर ने तुरंत पेटी निकाल ली और उसकी जगह पर वह ईंट निकाल दी। फिर पलक झपकते ही वह वहां से चंपत हो गया।
सुबह जब ठग की आँखें खुली तो उसने अपनी हीरों की पेटी को वहां से गायब पाया। उधर जिस सुनार को वह ठग चोरी का माल बेचता था उसने सोचा कि हीरे बहुत मूल्यवान है, हजारों को लेकर लाखों में बेच सकते हैं। इसलिए कुछ कम ज्यादा पैसों में ठग के साथ सौदा कर लेना चाहिए। इसलिए वह ठग के पास पहुंचा।
ठग सिर पकड़े बैठा था। सुनार उसको नमस्कार करके बोला, “वह हीरो की पेटी कहाँ है? मैं उसको और अधिक दाम देने के लिए तैयार हूँ। दोबारा हीरे देखना चाहता हूँ।”
ठग भला क्या जवाब देता। उसने सोचा कि अगर सुनार को पता चल गया कि मेरे हीरे चोर चुरा कर ले गया, तो मेरी बहुत ही बेज्जती होगी। इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए बोला, “सेठ जी! उन हीरों को तो मैंने बेच दिया है।” सेठजी बोला, “लेकिन किस भाव में बेचा है?” ठग बोला, “जिस भाव से लाया था उसी भाव में बेचा है न नफा और न ही नुकसान।” सुनार वहां से अपना सा मुँह लेकर चल दिया।
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