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मेहनत की कमाई | Mehanat Ki Kamai Story in Hindi

मेहनत की कमाई | Mehanat Ki Kamai Story in Hindi

Posted on October 30, 2021

मेहनत की कमाई  Mehanat Ki Kamai Story in Hindi

मेहनत की कमाई

एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन गुजरता और भगवान की पूजा में लगा रहता था। वह उतनी ही भिक्षा मांगता था जिससे उसका और उसके परिवार का पेट भर सके। उस नगर का राजा बहुत धनवान और ब्राह्मणों का आदर करने वाला था। राजा की भी ब्राह्मण को अपने महल से खाली हाथ नहीं जाने देता था। दूर दूर से ब्राह्मण राजा के पास आते और मुँह माँगा दान लेकर आशीर्वाद देते हुए चले जाते।

एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से कहा, “कि दूर दूर के ब्राह्मण राजा से मनचाहा दान लेकर चले जाते हैं और तुम यहाँ के यहाँ एक दिन भी राजा के पास नहीं गए। जन्म भर कंगाली कहाँ तक झेलू। आज तुम जाओ और राजा से कुछ मांगकर लाओ।

ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, “तू तो बाबरी है, हमें धन की क्या जरुरत। हमें इतना तो मिल ही जाता है जिससे हम अपना पेट भर सके और राजा का धन अच्छा नहीं होता, वह हमें नहीं लेना चाहिए।”

ब्राह्मण  की पत्नी जिद पर अड़ गई और बोली, “मैं तुम्हारी एक भी बात सुनने वाली नहीं हूँ। कब तक हम कंगाली में जीते रहेंगे। तुम तो रोज माला लेकर बैठ जाते हो। अपने बच्चों को क्या खिलाए और क्या पहनाएं। जब बच्चे दूसरे बच्चों को पहनते, ओढ़ते और खाते पीते देखते हैं तो उनका मन भी ललचाता है। आज तुम राजा के पास जाओ। राजा बहुत भला व्यक्ति है वो हमें जरूर मुँह माँगा दान देगा।”

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मजबूर होकर ब्राह्मण राजा के महल की और चल दिया पर राजा उस समय महल में नहीं था। ब्राह्मण को वापस लौटना पड़ा। दूसरे दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण को फिर से महल भेजा परन्तु राजा फिर से महल में नहीं मिला। तीसरे दिन राजा महल में मिल गया और उसने ब्राह्मण का स्वागत किया और उसे आसन पर बैठाया। और दो दिन न मिल पाने के लिए क्षमा भी मांगी।

राजा ने कहा, “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?” ब्राह्मण ने कहा, “जो मैं मांगू वह आप दे सकेंगे।” राजा ने कहा, “हाँ हाँ कहीए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।” ब्राह्मण ने निवेदन किया, “महाराज मैं कुछ और नहीं चाहता बस आप मुझे अपनी मेहनत की कमाई से चार पैसे दान में दे दीजिए।”

ब्राह्मण की बात सुनकर राजा चौंक गया और सोचने लगा, खजाने में बहुत सारा धन पड़ा है पर मेहनत की एक कोड़ी भी नहीं है। राजा ने ब्राह्मण से कहा, “आप मुझे एक दिन का समय दें मैं कल आपको आपका मुँह माँगा दाम दे दूंगा।” ब्राह्मण को खाली हाथ देखकर पत्नी बोली, “क्या हुआ राजा ने कुछ नहीं दिया।” ब्राह्मण बोला, “राजा ने कल देने के लिए कहा है।”

ब्राह्मण की पत्नी सोचने लगी, शायद इन्होने बहुत सारा धन माँगा होगा और राजा को इसकी व्यवस्था करने में समय लग रहा होगा इसलिए कल बुलाया है। दूसरी ओर राज ने अपने राजसी कपडे बदलकर फ़टे पुराने कपडे पहने और मजदुर जैसा भेष बना लिया। जब राजा की पत्नी ने देखा और कारण पूछा तो राजा ने सब कुछ बताया। रानी बोली, “मैं भी आपके साथ चलूंगी।”

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राजा के हाँ कहने पर रानी भी पुराणी साड़ी पहनकर आ गई। इस प्रकार राजा रानी मजदूरी की तलाश में शहर निकले। लुहारों की मौहल्ले में जाकर राजा ने आवाज लगाई, “किसी को मजदुर चाहिए मजदुर।” आखिर एक लुहार ने उन्हें बुला लिया  पहिएं पर हाल चढाने की तैयारी कर रहा था। उसने राजा से कहा, “देखो तुम्हें पहले खलात धौकनी पड़ेगी और जब आग आ जाए उसके बाद घन पीटना होगा।” फिर रानी की ओर देखकर कहा ,”तुम्हें कुएं से पानी लेकर होदी भरनी पड़ेगी। और कोयले वाले घर से कोयला लेकर भट्टी में डालना होगा। तुम दोनों को दिन भर में दो दो आने मिलेंगे। अगर काम पसंद हो तो बोलो नहीं तो अपना रास्ता नापो।”

राजा-रानी लुहार के बताए काम को करने लगे। राजा खलात धौकने लगा पर उससे काम ठीक से  हो पा रहा था। लुहार नाराज होकर राजा को ठीक से काम करने के लिए कहता। राजा जैसे तैसे अपना काम करने लगा। रानी भी कुएं से पानी भरकर लाने लगी। रानी क हाथ में फफोले पड़ गए। किसी तरह बड़ी कठिनाइयों से उसने पानी का हौज भरा। उसके बाद रानी कोयला लाकर भट्टी में डालने लगी। कोयला भरने से रानी के गोरे हाथ और कपडे काले पड़ गए।

भट्टी में आग आने पर लुहार ने पाँत भट्टी में से निकालकर पहियें पर जमाई और एक घन अपने हाथ में लेकर और एक राजा के हाथ में देकर कहा, “देखो बारी बारी से घन इस पर पटकना। हाथ इधर उधर न होने पाए।”

राजा जोर जोर से घन पटकने लगा लेकिन उसका निशाना ठीक नहीं बैठता था। कभी घन हाल पर गिरता तो कभी पहियें पर। मजदुर का हाल देखकर लुहारिन बड़बड़ाती हुई आई और लुहार से कहने लगी ,”तुमने कहाँ से यह नौसिखिए मजदुर काम पर लगाएं हैं। इनसे काम नहीं होगा। यह सस्ते मजदुर तुम्हारा हर काम बिगाड़ देंगे।

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राजा रानी उन दोनों की फटकर सुनते सुनते अपना काम मन लगाकर करते रहे। घन पटकते पटकते राजा का शरीर पसीने से तर हो गया और जोर जोर से साँस चलने लगी। रानी भी पानी भरते भरते और कोयला झोकते झोकते थक कर चूर हो गई। दोनों ने पुरे दिन बहुत मेहनत की। लुहार ने राजा रानी को दो दो पैसे दिए जिसे वह बड़ी ख़ुशी ख़ुशी लेकर महल आ गए। आज उन्हें पता चला की मेहनत की कमाई कैसी होती है।

राजा ने चार पैसे अलग रख दिए और अगले दिन ब्राह्मण को बुलाकर उसे दे दिए। ब्राह्मण राजा को आशीर्वाद देकर घर लौटा और ब्राह्मणी से कहा, “लो मैं राजा के यहाँ से दक्षिणा ले आया हूँ। ब्राह्मणी खुश होकर दौड़ती हुई आई। पर जब उसने चार पैसे देखे तो वह ठिठक कर रह गई और उन्हें दूर फेंक दिया। वह जलभुनकर ब्राह्मण से बोली, “तुम जैसे दरिद्र से राजा के यहाँ जाकर भी कुछ न माँगा गया। शर्म भी नहीं आती।” कहकर रूठ कर चली गई और बहुत देर तक बड़बड़ करती रही।

ब्राह्मण ने उन पैसों को उठाकर तुलसी घर के पास रख दिए और सोचा जब ब्राह्मणी शांत हो जाएगी तो जरुरत पड़ने पर उठा लगी। परन्तु कई दिनों तक पैसे वही रखे रहे और फूल बेलपत्र ऊपर से गिरकर मिटटी में दब गए। ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों ही उन सिक्को के बारे में भूल गए।

कुछ दिनों बाद तुलसी घर में चार पौधे उगे। चारों पौधे बहुत सुन्दर थे। यह देख ब्राह्मणी रोज उनमें पानी डाल देती। चार महीने बाद वह पौधे बढ़े हो गए और उनमें फूल उगने लगे। फूल सूखने पर इनसे मोती झरने लगे। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने कभी मोती नहीं देखे थे। वह समझे की कोई बीज है। हर रोज कई फूल झरते और बहुत सारे मोती पुरे तुलसी घर में बिखर जाते। ब्राह्मणी उन मोतियों को समेटकर घर के एक कोने में डाल देती।

इस तरह वहां मोतियों का ढेर लग गया। एक दिन एक सब्जी वाली आई। ब्राह्मणी को सब्जी लेनी थी पर उसके पास पैसे नहीं थे। उसने सब्जी वाली से कहा क्या तुम इन चमकदार बीजों के बदले सब्जी दे सकती हो। सब्जी वाली ने देखा तो वह तो पहचान गई कि यह तो मोती है। उसने ख़ुशी ख़ुशी ब्राह्मणी को उन मोतियों के बदले उसकी मनपसंद सब्जी दे दी।

अब से हर रोज ऐसाही होने लगा। ब्राह्मणी और सब्जी वाली दोनों खुश थे। सब्जी वाली यह सोचकर खुश थी कि मुझे एक पैसे की तरकारी के बदले हजारों का माल मिलता है और ब्राह्मणी यह सोचकर खुश थी कि इस बीजों के बदले सब्जी मिल जाती है। इस प्रकार कई महीने बीत गए। उधर राजमहल में कई हंस थे  जो मोती चुगते थे। राजा का यह नियम था कि जब राजहंस चुग लेते थे उसके बाद ही राजा और उसका परिवार भोजन करता था।

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एक समय बाद राजा का सारा उन मोतियों और दान देने में खर्च हो गया। अब रजा को मोती खरीदने तक पैसे नहीं बचे। यह खबर पुरे नगर में फैल गई। ब्राह्मण और ब्रब्राह्मणी को जब यह पता चला तो उन्होंने यही विचार किया की राजा बहुत दानी और नेकदिल है। उसने अपना सब कुछ दान कर दिया। यहाँ तक की शायद उनके पास खाने को भी कुछ नहीं है। ऐसे हालत में हमें उन लोगों की सहायता करनी चाहिए।

ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा, “अगर तू कहे तो इसमें से कुछ बीज राजा को दे दूँ। तू कहती है इससे सब्जी और खाने की चीजें मिल जाती है।” ब्राह्मणी ने कहा, “हाँ मैं रोज इसके बदले सौदा लिया करती हूँ।”  ऐसा कहकर ब्राह्मणी एक टोकरी  बीज भर लाई। ब्राह्मण राजा के पास पहुंचा और उसे वह मोती दिए और राजा को सारी बात बताई। राजा उन मोतियों को देखकर चौंक गया। उसने मोती राजहंस को दिए। राजहंस उन्हें चुगने लगे।’

यह देख राज ने ब्राह्मण से कहा, “एक-एक मोती सैकड़ों रूपए का है! सच बताएं, आपके पास इतने मोती कहाँ से आए।” ब्राह्मण बोला, “महाराज ऐसे बीज तो हमारे घर में बहुत है और राजा को पूरी बात बताई।” राजा अपने मंत्रियों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंचे और उन चारों पेड़ों को देखा। पूछताछ में उन सिक्कों वाली बात सामने आ गई। जब पेड़ों को  देखा तो उन जड़ो के पास वही सिक्के चिपके हुए थे। आज ब्राह्मण-ब्राह्मणी को मालूम हुआ कि जिसे वह साधारण बीज समझते थे वह लाखों करोड़ो की दौलत है।

ब्राह्मण ने सोचा कि मेरे लिए यह धन किस काम का। ऐसा सोच ब्राह्मण ने सारे मोती राजा को दान में दे दिए। राजा के आंखे भी खुल गई। मेहनत की धन की कीमत उन्हें मालूम पड़ गई। उस दिन राजा ने प्रण कर लिया कि मैं खजाने के पैसे से एक भी पैसा अपने खर्च में नहीं लगाऊंगा। अपना खर्चा मेहनत करके चलाऊंगा।

खजाने और ब्राह्मण के दान से राजा ने जनता के हित में कई धर्म कर्म के काम शुरू कर दिए। जैसे ब्राह्मण और राजा ने धर्म का पालन किया भगवान करे सब ऐसा ही करे।

इस कहानी को पढ़ें के लिए धन्यवाद।

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