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सोने के पत्ते | Sone Ke Patte Story in Hindi

सोने के पत्ते | Sone Ke Patte Story in Hindi

Posted on September 12, 2021

सोने के पत्ते Sone Ke Patte Story in Hindi

 

सोने के पत्ते

एक गाँव में एक पत्नी अपने पुत्र के साथ रहती थी। पुत्र का नाम नारायण था। माँ-बेटे दोनों बहुत मेहनती और ईमानदार थे। उनके घर के पास ही एक पेड़ था। नारायण का रोज का एक अटूट नियम था। काम पर जाने से पहले वह पेड़ को एक-दो लोटे पानी अवश्य देता था। बचपन से ही उसे पेड़ों से बहुत लगाव था।

 

एक बार नारायण बीमार पड़ा। कई दिन बीमारी नहीं टूटी। बीमारी में भी उसने खाट से उठकर पेड़ को पानी देना न छोड़ा। एक दिन नारायण पेड़ को पानी देने लगा तो पेड़ ने कहा, “मैं तेरी सेवा से बहुत प्रसन्न हुआ। तू कोई वर मांग।” नारायण बोला, “हे वृक्षदेव, मैंने तो केवल अपना फर्ज ही निभाया है। हम तो पहले से ही आपके उपकारों से दबे पड़े हैं। मेरी माँ मुझे एक ही तो शिक्षा दी है कि पेड़ मनुष्य के सच्चे साथी हैं। शुद्ध वायु, छाया और फल तो देते ही हैं, इनके अलावा मनुष्य के जीवन का आधार लकड़ी भी देते हैं।”

 

वृक्षदेव नहीं माने। उन्होंने वर मांगने पर जोर दिया तो नारायण बोला, “आपकी यही इच्छा है तो मुझे निचे गिरे पत्ते ले जाने की आज्ञा दीजिये। सफाई भी हो जाया करेगी।” नारायण पेड़ के पत्ते इकट्ठे करके ले गया और अपने घर के एक कोने  में उसने ढेर लगा दिया। उसने सोचा कि पत्ते जब काफी सारे इकट्ठे हो जायेंगे और सुख जायेंगे तो बूढी माँ का बिछोना उस पर बिछो दूंगा। नरम रहेगा। पर तब माँ -बेटे के आश्चर्य  ठिकाना न रहा। जब उन्होंने पत्तों का रंग बदलते देखा। सुबह तक वे पिली धातु में बदलकर चमक रहे थे।

 

नारायण बोला कि कहीं यह सोने के तो नहीं बन गए। माँ उन पत्तों को लेकर बनिए के पास गई। वह पत्ते देखकर चौंका। जांचा तो उसने खरा सोना पाया। उसने बुढ़िया को ठगने के लिए कहा, “यह तो पीतल के पत्ते हैं, चाहो तो इसके बदले कुछ राशन ले जाओ।”

 

बुढ़िया क्या जाने छल। वह बेचारी उन्हें पीतल का ही मांगकर कुछ राशन ले आई। अब रोज दिन यही होने लगा। नारायण पत्ते इकट्ठे कर लाता। वह सुबह तक सोने के पत्तों में बदल जाते और बुढ़िया माँ जाकर उससे राशन ले आती।

 

एक दिन बनिए के दिल में आया कि देखना चाहिए कि बुढ़िया के पास सोने के पत्ते कहाँ से आते हैं। उसने नारायण का पीछा किया और सारा माजरा जान लिया।

 

दूसरे दिन जब नारायण और बुढ़िया काम पर चले गए तो उसने जाकर दो-तीन पत्ते उठा लिया। बाकि पत्ते को नारायण पहले ही उठा चूका था। बनिए ने पेड़ पर चढ़कर खूब पत्ते उखाड़े। कई पत्तों में लगी टहनिया भी तोड़ डाली। इस प्रकार वह बोरी भरकर ले आया और अपने कमरे मे ढेर लगाकर उनके सोने में बदलने ला इंतजार करने लगा। पर वह पत्तियां और टहनिया सोने की नहीं बानी। वे तो कुछ और ही रूप धारण करने लगी। पत्तियां बिच्छुओं में बदल गई और टहनियाँ काले सांपो में।

 

बनिया दौड़ते हुए। बनिया भयभीत होकर बाहर होगा। उसके पीछे भागी सांपो की टोलिया। बनिया दौड़ता हुआ उसी पेड़ के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर कहने लगा। वृक्ष देवता ने कहा, “दोस्त यह सांप और बिच्छू तेरे पीछे तब तक लगे रहेंगे जब तक कि नारायण की माँ से जितने सोने के पत्ते लिए हैं उनकी पूरी कीमत नहीं चुकाता।”

 

बनिया दौड़ता हुआ लौटा। उसने सोने के पत्ते बेचकर जितने पैसे कमाए थे वे ले जाकर नारायण के माँ को सौंप दिए और अपने किए के लिए क्षमा मांगी। नारायण ने उस धन से जमीन खरीदी और उसमे पेड़ लगाए। पेड़ों के घने वन में वह सुख से रहने लगा। उसका विवाह भी एक सुंदर कन्या से हो गया।

 

कई वर्ष बाद पड़ोस के राज्य में सूखा पड़ा। पानी बरसा ही नहीं। नारायण की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी। वह लोगों से पहले ही कहा करता था कि पेड़ नहीं होंगे तो सूखा पड़ेगा। पडोसी राजा ने नारायण को निमंत्रण देकर अपने यहाँ बुलाया और उससे सलाह मांगी। नारायणं ने राजा को परामर्श दिया, “राजा आपके राज्य में पेड़ों को काटा गया है। वनो का सफाया कर दिया गया है। यही तो सूखे का कारण है। पेड़ ही तो बादलो से वर्षा करवाती है। फिर से वन लगवाइए। याद रखिए पेड़ ही हमारे सच्चे साथी हैं। पेड़ ही जन्म से लेकर मृत्यु तक लड़की बनकर हमारी देखभाल करते हैं। बचपन में लकड़ी का पालना बनकर हमें सुलाता है, फिर गिल्ली-डंडा बन हमें खिलाता है। लकड़ी की तख्ती बनकर हमें लिखना -पढ़ना सिखाता है। विवाहमंडप की अग्नि बनकर फेरे डलवाकर गृहस्त जीवन का आरंभ करवाता है। चकला-बेलेन बन हमें रोटी खिलाता है। बीमार पड़ने पर हमें खाट बनकर संभालता है। बुढ़ापे में लाठी बनकर हमें सहारा देता है। मृत्यु होने पर दो डंडे बन लादकर शमशान घाट ले जाता है और चिता बनकर हमारी अंतिम क्रिया करता है।”

 

नारायण की बात सुन राजा की आँखें खुल गई। उसने अपने राज्य में पेड़ लगवाए। पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया और फिर से वह राज्य एक सुखी राज्य बन गया।

 

दोस्तों पेड़ों की रक्षा करना हमारी नैतिक कर्तव्य है, क्यों कि  हमारे सच्चे जीवन साथी हैं।

 

आपको यह कहानी कैसी लगी हमें निचे कमेंट करके जरूर बताएं और अगर अच्छा लगे तो अपने दोस्तों  और परिवारजनों के साथ भी इस कहानी को जरूर शेयर करें। इस कहानी को पढ़ने के लिए और आपका मूल्यवान समय देने के लिए धन्यवाद।

 

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