चोर और सेठ की कहानी Chor Aur Seth Ki Kahani
चोर और सेठ की कहानी
एक बार एक चोर एक सेठ के घर चोरी करने के लिए घुसा। काफी रात हो गई थी। परन्तु सेठ और सेठानी जाग रहे थे। उनके बात करने के आवाजे आ रही थी। चोर उनके सोने की प्रतीक्षा करने लगा और उनकी बातें सुनने लगा। सेठ कह रहा था, “हमारे पास जो धन है, उसने हमें दुख ही दिया है। राजा और मंत्री धन ऐंठने के लिए नए-नए बहाने छूते रहते हैं। जाने कब किसी झूठे आरोप में फंसा दे। चोर डाकुओं का भय तो हर दम बना ही रहता है। सगे-संबंधी हमें मरवाने के लिए षड़यंत्र रचते रहते हैं ताकि हमारी संपत्ति हड़प सके। मन की शांति नष्ट हो गई है।”
सेठानी बोली, “ठीक कहते हो। मेरा भी धन भंग हो गया है। चलो, यह सब छोड़कर काशी चलते हैं और बाकि जीवन सत्संग में गुजारेंगे।” सेठ ने कहा, “पर अपनी धन-दौलत का क्या करे? किसे दें?” सेठानी बोली, “ऐसा करते हैं कि कल नगर के गुरुकुल में चलते हैं। वहां जो विद्यार्थी सबसे पहले खड़ा मिले, उसी को संपत्ति सौंप देंगे।” सेठ सहमत हो गया। फिर वे दोनों सो गए।
चोर ने सोचा कि वह चोरी क्यों करें? सेठ-सेठानी वैसे भी अपना धन देने वाले हैं। कल विद्यार्थी का वेष बनाकर सबसे आगे जाकर खड़ा और सारी संपत्ति का मालिक बन जाऊँगा। ऐसा सोचकर वह चोर बिना चोरी किये वहां से चला गया।
दूसरे दिन विद्यार्थी बनकर वह गुरुकुल के द्वार पर सबसे पहले खड़ा हो गया। उसके बाद और विद्यार्थी आए, वे उसके पीछे खड़े होते। गए दस-पंद्रह विद्यार्थियों पंक्ति हो गई। तभी सेठ और सेठानी वहां आ पहुंचे। उन्होंने उलटी ओर से विद्यार्थियों से पूछना चूरू किया। चोर ने माथा पिट लिया। इस प्रकार वह सबसे अंतिम बन गया था।
सेठ-सेठानी ने पहले विद्यार्थी का नाम पूछा और अपना परिचय दिया। फिर सेठ बोला, “बेटा, मैं अपनी सारी संपत्ति तुम्हें देना चाहता हूँ।” विद्यार्थी ने पूछा, “आप अपनी संपत्ति मुझे क्यों दें रहें हैं?” सेठानी ने उत्तर दिया, “हम दोनों अब अपना शेष जीवन भजन-साधना में गुजारना चाहते हैं। हमें महसूस हो गया है की धन-दौलत मुसीबतों की जड़ है।” विद्यार्थी ने चिढ़कर कहा, “तो आप मुसीबतों का जड़ मेरे गले में क्यों डालना चाहते हैं। मैं ही आपको बेवकूफ नजर आया क्या?”
सेठ-सेठानी को सभी विद्यार्थी वही उत्तर देते चले गए। जब चोर की बारी आई तो उसने सेठ से कहा, “सेठजी, अगर आपने अपनी संपत्ति सबसे पहले मुझे देने का प्रयत्न किया होता तो मैंने स्वीकार कर लिया होता। पर अब मैं भी नहीं लूंगा। अब मुझे समझ आ गई है। मैं भी मुसीबत अपने सर पर क्यों लूँ?” चोर ने चोरी छोड़ दिया और उसी गुरुकुल में भर्ती हो गया।
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