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ईर्षा का फल | Irsha Ka Fal Story in Hindi

ईर्षा का फल | Irsha Ka Fal Story in Hindi

Posted on September 22, 2021

ईर्षा का फल  Irsha Ka Fal Story in Hindi

 

ईर्षा का फल हिंदी कहानी 

दूर इलाके के एक गाँव में एक जुलाहा रहता था। उसके दो पत्नियां थी। दोनों पत्नियों को एक-एक बेटी थी। बड़ी वाली की बेटी का नाम था सुक्खू और छोटी वाली की बेटी का नाम था दुक्खू। बड़ी वाली बहुत चालाक थी इसलिए वह घर पर राज करती थी। वह और उसकी बेटी सुख से रहते सैर करते। बेचारी छोटी वाली बहुत ही विनम्र और सीधी थी। इसलिए घर का सारा काम उसे करना पड़ता। माँ के साथ-साथ दुक्खू को भी खूब खटना पड़ता था। जुलाहा भी उन दोनों पर कोई ध्यान नहीं देता था।

 

एक दिन जुलाहे की अकस्मात् में मृत्यु हो गई। बड़ी वाली ने चालाकी से सारी संपत्ति हड़प ली और छोटी तथा दुक्खू को घर से निकाल दिया। बड़ी अपनी बेटी के साथ शान से रहने लगी। छोटी वाली सूत कातकर कपडे बुनकर बेचने पर जो मिलता, उसी से रूखी-सुखी खाती।

 

एक दिन दुक्खू की माँ ने रुई सुखाने डाल दी और दुक्खू को ख्याल रखने के लिए स्वयं पानी लाने चली गई। उसके जाते ही हवा का एक झोका रुई उड़ाकर ले गया। दुक्खू ने रुई पकड़ने की बहुत कोशिश की पर रुई हाथ न आई। वह रोने लगी। उसे रोते देख पवनदेव ने कहा, “मेरे पीछे आ। मैं रुई दिला दूंगा।” दुक्खू पवनदेव के पीछे के पीछे-पीछे चल दिए।

 

कुछ आगे जाने पर एक गाय मिली। गाय बोली, “बेटी मेरी चारों ओर गोबर पड़ा है। जरा इसे साफ कर दो।” मेहनत और दूसरों की सेवा करने की आदि दुक्खू स्वभावबश ही गोबर साफ करने लगी। सफाई करके उसने एक घास का पुला भी गाय के आगे डाल दिया और पानी की बाल्टी पास में ही रख दी। और आगे बढ़ने पर एक केले के पेड़ के आग्रह पर दुक्खू ने उसके निचे गिरे पत्ते हटाए। वहां की सफाई की और फिर आगे बढ़ी।

 

आगे एक घोड़ा बंधा मिला। घोड़े ने कहा, “मैं कई दिन तक भूखा-प्यासा हूँ। मुझे कुछ खाने को दो।” दुक्खू ने उसे घास काटकर दी और पानी लाकर पिलाया। आगे एक चांदी से सफेद बालों वाली बुढ़िया सूत कात रही थी। वह चाँद की माँ थी। पवनदेव ने इशारा किया कि इनसे अपनी रुई मांग। दुक्खू ने बुढ़िया के चरण छूकर अपनी रुई मांगी।

 

बुढ़िया बोली, “रुई मिलेगी। पर पहले अंदर जाकर बालों में तेल लगाकर ताल में नहा। फिर नई साड़ी पहनकर खाना खा कर आ।” दुक्खू भीतर गई। बालों में तेल लगाकर उसने ताल में डुबकी लगाई, चमकतार हुआ। वह परी सी सुंदर बन गई। दूसरी डुबकी लगाई तो उसका शरीर गहनों से लद गया। तीसरी डुबकी लगाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसने कक्ष में आकर कीमती साड़ीयां छोड़कर सादी-सी साड़ी चुनकर पहनी और भोजन कक्ष में गई, जहाँ मेज पर पकवान सजे थे। दुक्खू ने केवल रोटी और सब्जी चुनकर खाए और बुढ़िया के पास आ गई। बुढ़िया ने उसे रुई लौटा दी। साथ ही बुढ़िया ने अपने पास रखी डिब्बों में से एक चुनकर उपहार स्वरुप उसे ले जाने के लिए कहा।

 

दुक्खू ने छोटे वाले डिब्बा उठाया। रास्ते से लौटते समय घोड़े ने उसे सोने की अशर्फियों भरा घड़ा दिया। केले के पेड़ ने सोने के केलों का एक गुच्छा पकड़ाया। गाय ने उसे एक बछिया दी, जो जब चाहो दूध देती थी। ये सब नायाब उपहार लेकर दुक्खू घर लौटी। माँ बहुत प्रसन्न हुई। उनके दुःख के दिन फिर गए थे। रात को दुक्खू ने उपहार में मिला डिब्बा खोला तो उसमें से एक सुंदर राजकुमार निकला। उसने दुक्खू से विवाह कर लिया। और तीनों सुख से रहने लगे।

 

सुक्खू की माँ ने ये सब देखा तो वह जल उठी। उसने भी दुक्खू की तरह रुई सूखने डाल दी। जब रुई उड़ गई तो सुक्खू को उसे लाने के लिए भेजा। रास्ते में गाय, पेड़ और घोड़े ने सुक्खू से वहीं विनती की, जो दुक्खू से की थी, परन्तु सुक्खू को सेवा करना आता कहाँ था। वह मुँह बिचकाकर आगे चल दी। उसने सूत कातती बुढ़िया से रुई और डिब्बा देने का ऐसे आदेश दिया जैसे वह नौकर को हुक्म दे रही हो। बुढ़िया के कहने पर वह भीतर गई और तेल लगाकर ताल में तीन-चार बार डुबकी लगाई। इस बार सत्यानाश हो गया। वह राक्षसी सी कुरूप हो गई शृंगार कक्ष में आकर उसने बढ़िया साड़ी चुनकर पहनी और खाना भी बढ़िया जी भरकर खाया। बुढ़िया ने अपने पास रखे दो डिब्बों में से एक उपहार स्वरुप चुनने के  तो सुक्खू ने बड़ा डिब्बा चुना।

 

रास्ते  में घोड़े ने उसे लात मारी, केले के पेड़ ने उस  छिलकों की वर्षा की और गाय ने उसे सींग से उछालकर फेंका। रोती-पीटती सुक्खू घर लौटी। माँ ने उसकी हालत देखकर माथा पीट लिया। रात को सुक्खू ने डिब्बा खोला तो उसमें से राजकुमार की जगह एक अजगर निकला। अजगर ने सुक्खू को खा लिया और खिड़की की राह भाग गया। सुबह सुक्खू की माँ को कमरे में केवल अजगर की केंचुली मिली। उसका सब कुछ खत्म हो गया था।

 

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