बेईमानी का फल Beimani Ka Fal Story in Hindi
बेईमानी का फल हिंदी कहानी
किसी गाँव में एक सुनार रहता था। वह बहुत गरीब था। पहले तो उसके पास बहुत धन था। परन्तु जब उसने सेठ करोड़ीमल के आठ लाख रूपए के हार में बेईमानी की तो गाँव के लोगों का उसके ऊपर से विश्वास हट गया और उन्होंने उससे अपने गहने बनवाने बंद कर दिए। जिसके कारण उसकी दशा दिन प्रतिदिन बिगड़ती चली गई। और अंत में वह इतना गरीब हो गया कि उसके घर में एक समय का ही चुला जलता था।
उस सुनार के पड़ोस में एक गरीब ब्राह्मण भी रहता था। दोनों अच्छे दोस्त थे। वह ब्राह्मण कथा आदि सुनाया करता था। जिससे उसे सारे लोग पंडित जी के नाम से पुकारते थे। एक दिन दोनों ने सोचा कि अब कहीं कमाने चलना चाहिए जिससे की घर का पालन पोषण हो सके। ऐसा विचार करके दोनों शहर पहुंच गए।
शहर में पहुंचकर दोनों ने एक अच्छा स्थान देखकर अपना अड्डा जमाया। सुनार तो गहनों आदि का लेन-देन करने लगा और पंडित जी अपने पोथी-पत्रा फैलाकर बैठ गए। अब दोनों ने महीने भर- पीकर कुछ पैसे कमाए। इसी प्रकार उन्होंने छह सात महीने काम करके कई हजार रूपए बचा लिए। जब छह सात महीने हो सुनार ने कहा, “पंडित जी! अब तो हम अपने गाँव जाना चाहते हैं। अब तक बहुत कमाया अब हमें घर चलना चाहिए तुम्हें चलना है या नहीं।” पंडित जी ने उत्तर दिया, “भाई! मुझे तो जाना नहीं है, तुम चले जाओ। परन्तु मेरे यह पांच हजार रूपए मेरी स्त्री को दे देना।” यह कहकर पंडित जी ने सुनार को पांच हजार रूपए दिए और एक सरकारी कागज मंगवाकर उस पर सुनार से लिखवा लिया – “पंडित जी ने मुझे पांच हजार रूपए अपनी स्त्री को देने के लिए इस तारीख को दिए हैं। यदि मैं इन रुपयों को उसकी पत्नी को नहीं दूँ तो वह मुझसे दस हजार रूपए ले लेगा।” यह लिखवाकर पंडित जी ने सुनार से हस्ताक्षर भी करवाए और कागज को अपने पास रख लिया।
इसके पश्चात् सुनार चला गया। जब वह घर पहुंचा तो उसने दस उसने दस हजार रूपए अपनी पत्नी को दिए और सब हाल सुनाकर कहा, “इसमें से पांच हजार रूपए पंडितानी को दे आओ। यह रूपए चलते समय पंडित जी ने उसके लिए दिए हैं।” लेकिन उसकी पत्नी ने कहा, “तुम यह रूपए पंडितानी को क्यों देते हो, पंडित आकर हमारा कुछ बिगाड़ थोड़ी लेगा।” सुनार ने उसे बहुत समझाया। लेकिन वह नहीं मानी। अंत में उसने पंडित जी के रूपए भी अपने पास रख लिए।
जब पंडितानी ने सुना कि सुनार अपने घर पर आ गया है, तो वह दौड़ी-दौड़ी आई। उसने सुनार से पूछा की, “पंडित जी ने हमारे लिए कुछ नहीं भेजा है?” सुनार बोला, “वह तो अभी दो ढाई महीने के बाद आएंगे।” पंडितानी बेचारी चुप होकर अपने घर चली गई। कुछ दिन बाद वह फिर आई और पूछा, “पंडित जी की कोई चिट्ठी तो नहीं आई?” यदापि पंडित जी की एक चिट्ठी आई थी। कुशल क्षेम के पश्चात् लिख रखा था की – “रूपए तो पंडितानी को मिल ही गए होंगे। अब मैं दो महीने बाद वापस आ रहा हूँ।” परन्तु सुनार ने वह चिट्ठी भी नहीं दिखाई। क्यों की इससे भेद खुलने का डर था।
अब पंडितानी तथा उसके बच्चे भूखे मरने लगे। कभी-कभी पंडितानी सुनार से पंडित जी का हाल-चाल पूछने आ जाती। लेकिन उसे टका सा जवाब मिलता। दो महीने बाद एक दिन पंडित जी और पच्चीस हजार रूपए कमाकर घर लौटे। इधर सुनार भी बीस-पच्चीस हजार गाँव से ही कमा चूका था। पंडित जी जब अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपने लड़के को पुकारा। उसकी पत्नी समझ गई कि पंडित जी आ गए हैं। उसने झट से दरवाजा खोला। पंडित जी बड़े ही हटे-कटे हो गए थे। शहर में उन्हें अच्छा-खासा खाना-पीना मिलता था। किन्तु जब वह अपने घर में घुसे तो उन्होंने देखा कि उसकी पत्नी तथा बच्चे की बड़ी ही बुरी स्थिति हो गई है। कपडे तथा शरीर तो इतने गंदे दिखाई देते थे, कि मानो अभी धूल में लौट कर आए हो।
घर की ऐसी बुरी स्तिथि देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा, “घर की ऐसी हालत क्यों हो रही है?” उसकी पत्नी ने कहा, “आपने तो वहां सोच ही लिया था कि मैं घर की कोई सुध ही नहीं लूंगा। चाहे जो भी हो जब घर के सारे स्त्री-बच्चे मर जायेंगे तब घर लौटकर जाऊँगा और घर में अकेला आराम करूँगा।” पत्नी की बात सुनकर पंडित जी ने कहा, “कैसी बातें करती हो। मैंने तो मित्र सुनार के हाथ पांच हजार रूपए और एक चिट्ठी भी तुम्हारे लिए भेजी थी।” पत्नी ने कहा, ” क्यों झूट बोलते हो रूपए कहाँ भेजे थे। पांच हजार रूपर और चिट्ठी, क्या? मुझे तो एक पैसा तथा कागज का छोटा सा टुकड़ा तक नहीं मिला।”
पंडित जी को शक हुआ कि सुनार ने चिट्ठी और पैसे दबा तो नहीं लिए। वह झट से अपनी पत्नी को लेकर सुनार के यहाँ पहुंचा। सुनार ने पंडित को देखते ही समझ लिया कि यह पैसों के बारे में कुछ पूछने आया है। पास आने पर सुनार बोला, “राम राम पंडित जी! कहो कैसे आना हुआ?” पंडित जी ने राम राम कहते हुए कहा, “क्यों भाई तुमने पैसे और चिट्ठी तो दबाकर ही रख ली।” सुनार ने चौंकने का नाटक करते हुए कहा, “कैसी चिट्ठी और कैसे रूपए?”
पंडित जी ने झट से वह कागज जिस पर शर्त लिखी हुई थी, दिखलाया। लेकिन सुनार बोला, “मुझे कुछ नहीं पता। तुम मुझे बेवकूफ बना रहा है। मुझसे रूपए ऐठना चाहते हो।” पंडित समझ गया कि यह ऐसे रूपए नहीं देगा। वह वहां से सीधे कोतवाली पहुंचे कोतवाल साहब से कहा, “उस सुनार ने मेरे पांच हजार रूपए दबा लिए हैं। मेरे रूपए मुझे दिलाने की कृपया करे।” इतना कहकर उन्होंने वह शर्त वाला कागज कोतवाल को दिखाया।
कोतवाल ने कागज देखा तो उसे विश्वास हो गया कि रूपए पंडित ने सुनार को दिए थे। वह उसी समय दो सिपाही लेकर पंडित के साथ चल दिया। जब वह चारों सुनार के घर पहुंचे तो वह सिपाहियों और कोतवाल देखकर डर गया। उसने वहां से भागना चाहा लेकिन उसे झट से एक सिपाही ने पकड़ लिया। कोतवाल ने सुनार से पूछा, “पंडित जी के रूपए कहाँ हैं?” सुनार ने आश्चर्य दिखाते हुए कहा, “कैसे रूपए?” कोतवाल ने वह कागज दिखाया और कहा, “देख यह रहा, रूपए देने प्रमाण।” सुनार उसे देखकर बोला, “यह बिलकुल झूठा है।”
कोतवाल ने जब यह सुना तो उसने बगल में से कोड़ा निकालकर तड़ाक से सुनार को जमा दिया और कहा, “और यह हस्ताक्षर किसके हैं? यह सुनार की मोहर किसने लगाई?” कोड़ा पड़ते ही सुनार चिखंता हुआ बोला, “सरकार सच कह रहा हूँ मैंने रूपए नहीं लिए।” इतने में से एक सिपाही उसके कमरे में से एक चिट्ठी उठाकर लाया तथा कोतवाल को चिट्ठी देते हुए बोला, “देखे हुजूर! यह किसकी चिट्ठी है।” कोतवाल ने चिट्ठी लेकर पढ़ी। यह वही चिट्ठी थी, जिसे पंडित ने सुनार को दी थी। कोतवाल ने उसे पढ़कर कहा, “देख दूसरा प्रमाण यह रहा या तो सारे रूपए लाकर दे दे, नहीं तो इतनी मार लगाऊंगा कि होश ठिकाने आ जायेंगे।”
इस बार सुनार डर गया। उसने झट से दस हजार रूपए लाकर पंडित को दे दिए। लेकिन कोतवाल ने कहा, “अभी दो हजार रूपए और सजा के पंडित।” आखिरकार उसने और दो हजार रूपए लाकर पंडित को दे दिए। पंडित प्रसन्नतापूर्वक अपने घर चला गया। कोतवाल सुनार को हथकड़ी पहनाकर जेल ले गया। डेढ़ वर्ष की सजा हो गई। कुछ दिन में उसके घर का बचा कुचा धन भी समाप्त हो गया और उसकी पत्नी को मांग-मांग कर अपना गुजारा करना पड़ा।
तो दोस्तों देखा आपने बेईमानी का नतीजा। उम्मीद है की आपको यह कहानी जरूर अच्छी लगी होगी अगर अच्छी लगी हो तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करे। धन्यवाद।
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