बात का घाव, Bat Ka Ghav Hindi Kahani, Ek Prernadayak Kahani
बात का घाव Hindi Kahani
बहुत पुराणी बात है, एक लकड़हारे और शेर में गहरी मित्रता थी। दोनों का मन एक दूसरे के बिना नहीं लगता। था शेर जंगल में रहता था और लकड़हारा गाँव में लकड़ियां काटकर और उन्हें बेचकर अपनी गृहस्ती चलाता था। सारादिन वह जंगल में लकड़ियां काटता था और शेर उसके पास बैठकर उससे बातें किया करता था।
एक दिन लकड़हारे ने शेर की दावत करने की सोची, फिर उसने शेर के सामने दावत का प्रस्ताव रखा। शेर ने दावत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। एक शाम को लकड़ियां काटने के बाद लकड़हारा शेर को अपने घर ले गया। शेर को लकड़हारे के साथ देखकर लकड़हारे की पत्नी और बच्चे डर गए। उन्हें डरा देख लकड़हारे ने उनका डर दूर करते हुए बताया कि शेर उसका मित्र है और आज हमारा अतिथि भी है।
लकड़हारे के बताने पर उसके बच्चे खुश हो गए परन्तु उसकी पत्नी खुश नहीं हुई वह बुरा सा मुँह मनाते हुए अंदर चली गई। लकड़हारे ने शेर की खूब आव भगत की उसे जो भी कुछ बन पड़ा उसने शेर के लिए किया। रात को सोने का वक्त होने पर लकड़हारे ने शेर को अपने साथ घर में सुलाना चाहा पर उसकी पत्नी ने शेर को घर में सुलाने ला विरोध किया। वह कहने लगी कि वह शेर को किसी भी कीमत पर घर में नहीं सोने देगी क्यों कि शेर जैसे खूंखार जीव का कोई भरोसा नहीं होता, ऐसा जीव कभी भी नुकसान पहुंचा सकता है।
पत्नी के विरोध करने पर लकड़हारे ने पत्नी को समझाया यह शेर और शेरों की तरह नहीं है, यह साथ सोने पर भी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन उसकी पत्नी शेर को घर में सुलाने को तैयार नहीं हुई। आखिर थक हार कर लकड़हारे को अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी। लकड़हारे की पत्नी ने लकड़हारे से शेर के गले में रस्सी बांधकर घर के बाहर एक पेड़ के साथ बांधने को कहा।
पत्नी की बात मानकर लकड़हारे ने ऐसा ही किया। उस रात अचानक मौसम ख़राब हो गया। लकड़हारा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घर में आराम से सोता रहा, किन्तु शेर बेचारा सारी रात पेड़ के निचे बंधा बारिश और तेज हवा के थपेड़े सहता रहा। सुबह को लकड़हारा सो कर उठा तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसकी बजह से उसका मित्र सारी रात बारिश में भीगता रहा। यह लकड़हारे को बहुत दुःख हुआ। उसने शेर से माफ़ी मांगी। शेर ने मुस्कुराते हुए कहा, “इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है दोस्त। यह सब ख़राब मौसम मेहरबानी है।”
शेर की बात सुनकर लकड़हारे को ख़ुशी हुई कि उसका मित्र उससे नाराज नहीं है। लकड़हारा लकड़ियां काटने जंगल आया तो शेर भी उसके साथ जंगल चला गया। लकड़हारा एक दो दिन और शेर को अपने साथ घर रोकना चाहता था पर शेर नहीं रुका। इन बातों को कई दिन गुजर गए।
एक दिन लकड़हारा लकड़ियां काटने के बाद जब घर जाने की तैयारी में था तो शेर उसके पास आया और बोला, “मित्र अपनी कुल्हाड़ी मेरी पीठ पर मारो।” शेर की यह बात सुनकर लकड़हारा चौंक गया उसने सोचा कि शायद शेर उससे मजाक कर रहा है। शेर ने दोबारा कुल्हाड़ी मारने को कहा तो लकड़हारा हैरानी से बोला, “यह तुम क्या कह रहे हो मित्र, मैं भला तम्हे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता हूँ।”
लकड़हारे के इन्कार करने पर शेर दहाड़ते हुए बोला, “अगर तुमने मेरा कहा नहीं माना तो मैं तुम्हे मारकर खा जाऊँगा।” शेर का बदला रूप देखकर लकड़हारा डर गया। उसकी समझमें नहीं आया कि उसका मित्र उसे कुल्हाड़ी मारने को क्यों कह रहा है। उसने इस बारे में शेर से पूछा किन्तु शेर ने उसे कुछ नहीं बताया। शेर ने तीसरी बार चेतावनी देते हुए कुल्हाड़ी मारने के लिए कहा।
लकड़हारे ने अपनी जान बचाने के लिए शेर के पीठ पर कुल्हाड़ी दे मारी। कुल्हाड़ी लगते ही शेर की पीठ पर गहरा जख्म हो गया जिससे खून बहने लगा। शेर लकड़हारे को आश्चर्यचकित छोड़कर अपनी गुफा की ओर चल दिया। अगले दिन लकड़हारा डरते-डरते जंगल में लकड़ियां काटने गया कि पता नहीं आज प्रति शेर का कैसा व्यवहार होगा। शेर ने लकड़हारे के साथ और दिनों की तरह व्यवहार किया तो लकड़हारे के दिल को तसल्ली हुई। शेर के पीठ का जख्म वक्त के साथ भरता गया।
एक दिन शेर ने लकड़हारे से अपनी जख्म के बारे में पूछा तो लकड़हारे ने खुश होते हुए बताया कि मित्र तुम्हारा जख्म अब पूरी तरह से भर गया है। लकड़हारे के बताने पर शेर गंभीर होते हुए बोला, “जानने चाहते हो मित्र मैंने तुम्हें अपनी पीठ पर कुल्हाड़ी क्यों मरवाई थी।” शेर के कहने पर लकड़हारे ने हामी भर दी, वह भी यह जानने को उत्सुक था।
शेर उसे बताने लगा, “घर आया अतिथि भगवान के समान होता है और अतिथि का आदर बड़े प्रेम से किया जाता है। मैं भी तुम्हारा अतिथि था किन्तु तुमने और तुम्हारी पत्नी ने मेरा आदर करने की जगह मेरा अपमान किया। तुम्हारी पत्नी का व्यवहार मेरे प्रति दुत्कारने वाला था। पत्नी के कहने पर तुमने मुझे घर के बाहर पेड़ से बांध दिया जहाँ मैं सारी रात बारिश के मौसम में भीगता रहा। उस दिन की बात का जख मेरे दिल पर आज भी ताजा है। मैंने तुम्हें अपनी पीठ पर कुल्हाड़ी इसलिए मरवाई थी ताकि मैं तुम्हें दिखा सकूँ कि चोट जख्म तो भर जाता है किन्तु बात का जख्म कभी नहीं भरता। एक बात कान खोलकर सुन लो तुम्हारी और मेरी मित्रता केवल आज तक ही थी आज के बाद न तुम मेरे मित्र हो और न ही मैं तुम्हारा। अगर आज के बाद तुम मुझे इस जंगल में दिखाई दिए तो मैं तुम्हे अपना भोजन बना लूंगा।” शेर अपनी बात पूरी करने के बाद चला गया।
लकड़हारा ठगा से शेर को जाते हुए देखता रहा। अपनी पत्नी के गलत व्यवहार की बजह से आज उसने अपना पुराना मित्र खो दिया था। उसे बहुत पछतावा हुआ। किन्तु अब पछताने से क्या फायदा था। लकड़हारा दुखी मन से गाँव की तरफ चल दिया।
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