पहली बार कैसे मिले थे अकबर और बीरबल, Pehli Bar Kaise Mile The Akbar Aur Birbal
अकबर और बीरबल के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे, अकबर और बीरबल के किस्सों के बारे में भी आप लोगों ने सुना ही होगा जिनमे अक्सर अकबर अपने टेड़े सवालों में बीरबल फसाने का प्रयास करते हैं परन्तु बीरबल अपने चतुराई से अकबर की टोपी घुमाकर अकबर को ही पहना देते हैं। अकबर हमारे हिंदुस्तान का एक ऐसा बादशाह था जो खुद तो पड़ा लिखा नहीं था परन्तु उसके दरबार में बड़े ही योग्य तथा बुद्धिमान दरबारियों का जमावर था। उन दरबारियों में नह दरबारी तो ऐसे थे जिन्हे अकबर के नह रत्न कहा जाता था जैसे अबुल फज़ल, फ़ैज़ी, मियां तानसेन, राजा बीरबल, राजा टोडर मॉल, राजा मान सिंह। अब्दुल रहीम खान-ई-खाना, फ़क़ीर अज़ीआउद्दीन और मुल्ला दो-पियाजा यह सभी अकबर के नह रत्न हुआ करते थे। अकबर के इन नह रत्नों में राजा बीरबल ही एक ऐसे रत्न थे जो हँसते-हँसते बादशाह अकबर को भी जलील कर दिया करते थे परन्तु अकबर कभी बिरबल के बातों का बुरा नहीं मानते थे क्यों कि बीरबल को ऐसा करने पर खुद अकबर ही मजबूर किया करते थे।
वैसे तो अकबर और बीरबल की कहानियां हम सभी ने बचपन में पढ़ी है लेकिन शायद बहुत से लोग यह नहीं जानते होंगे की अकबर और बीरबल की मुलाकात कैसे हुई थी तो दोस्तों आज हम इस लेख में जानेंगे कि आखिर कैसे अकबर और बीरबल की मुलाकात हुई थी यानि बादशाह अकबर पहली बार बीरबल से कैसे मिले थे तो चलिए दोस्तों इस लेख को शुरू करते हैं।
अकबर और बीरबल पहली बार कैसे मिले थे?
बीरबल के अकबर से मिलन के संबंध में वैसे तो कई कथाएं प्रचलित है लेकिन सबसे प्रचलित कथा के अनुसार अकबर को खाना खाने के बाद अपने रानियों के साथ पान खाने का शोक था। इसके लिए उन्होंने अपने महल स्पेशल पनवाड़ी मुरलीधर को नौकरी पर रख था। मुरलीधर बस बादशाह अकबर और उनकी बेगमों के लिए पान के बीड़े तैयार किया करता था।
एक रात जब बादशाह अकबर खाना खा कर उठे तो मुरलीधर ने हमेशा की तरह पान का बीड़ा बादशाह के सामने पेश कर दिया। बादशाह अकबर ने भी हमेशा की तरह ही पान का बीड़ा मुँह में दबाकर अपने महल में चहलकरनी करने लगे।
मुरलीधर बादशाह अकबर के बेगमों को पान का बीड़ा खिलाने के बाद अपने घर वापस जा रहा था कि तभी एक सिपाही उसके पास आया और उसे रोककर बोला, “हे मुरलीधर बादशाह ने तुम्हे तुरंत हाजिर होने का हुक्म दिया है।” मुरलीधर ने कहा, “क्या उन्हें और पान खाना है क्या?” सिपाही बोला, “इसके विषय में मुझे कुछ नहीं मालूम, जाओ बादशाह तुम्हारा इंतजार कर रहें हैं।” मुरलीधर बोला, “ठीक है भाई जाता हूँ।”
सिपाही की बात सुनकर मुरलीधर वापस चल पड़ता है और महल की चहलकरनी करते बादशाह अकबर के पास आता है और सिर झुकाकर कहता है, “हुक्म करे हुजूर।”बादशाह अकबर बोले, “मुरलीधर कल सुबह जब तुम महल में आना तो अपने साथ एक किलो चुना लेकर आना।”मुरलीधर ने कहा, “जी हुजूर जरूर लेकर आऊंगा।”बादशाह बोले, “अब जा सकते हो तुम।”
बादशाह का हुक्म सुनकर मुरलीधर अपने घर चला जाता है और सुबह महल में जाने से पहले मुरलीधर एक पान की दुकान से एक किलो चुना खरीदता है और महल की तरफ चल पड़ता है। तभी रास्ते में मुरलीधर के एक मित्र महेश दास मिल जाते हैं।
महेश दास ने मुरलीधर से पूछा कि वह पोटली में क्या लेकर जा रहा है। तब मुरलीधर ने उसे राजा की बात बताई। महेश दास को यह सुनकर पहले तो हैरानी हुई कि बादशाह अकबर एक किलो चुना का करेंगे क्या जरूर कुछ गड़बड़ है। ज्यादा पूछने पर महेश दास को पता चला कि बादशाह ने केवल चुना ही मंगवाया है और कुछ नहीं। महेश दास तुरंत समझ गए कि आखिर बादशाह अकबर करना क्या चाहते हैं।
महेश दास ने मुरलीधर को कहा, “मुरलीधर भैया मेरी मानो तो महल जाने से पहले एक किलो देशी घी जरूर पि लेना।” मुरलीधर ने कहा, “वह किस लिए महेश भैया?” महेश दास ने कहा, “मुझे तो लगता है यह चुना तुम्हे ही खाना पड़ेगा और चुने की जहर को देशी घी ही काट सकता है।” इतना कहकर महेश दास चला जाता है।
मुरलीधर खड़ा रहकर कुछ देर सोचता है फिर खुद से कहता है, “महेश भैया जब भी कोई बात कहते हैं बड़ी पक्की बात कहते हैं, दिल कहता है मुझे इनकी बात मान लेनी चाहिए पर मन कहता है कि चुना मुझे क्यों खाना पड़ेगा। समझ में नहीं आता क्या करूँ?”
इधर मुरलीधर सोच में दडूब जाता है कि वह क्या करे और उधर मुरलीधर के देर से आने के कारण बादशाह अकबर गुस्से में चहलकरनी करते हुए घूम रहे थे। उन्होंने सिपाही को आदेश दिया कि जाकर वह पता लगाए कि मुरलीधर अभी तक क्यों नहीं आया कि तभी महल में मुरलीधर आता है।
बादशाह ने मुरलीधर से कहा, “चुना लाए हो?” मुरलीधर ने कहा, “जी, पूरा एक किलो लाया हूँ।? बादशाह ने कहा, “जानते हो मैंने यह चुना किस लिए मंगवाया है?” मुरलीधर ने कहा, “नहीं जानता हुजूर।” बादशाह ने कहा, “कल रात तुमने मेरे पान में इतना ज्यादा चुना लगा दिया था कि मेरा पूरा मुँह कट गया। तुम्हारे उसी गुना की सजा है कि तुम्हे यह एक किलो चुना पूरा खाना पड़ेगा।” बादशाह मुरलीधर को सजा सुनाकर चला जाता है।
मुरलीधर वही सोच में डूबा रहता है और खुद से कहता है, “तुम्हारी जय हो भैया महेश दास, अगर तुम न मिले होते तो इस चुने को खाने से तो मैं स्वर्ग सिधार जाता।”
काफी समय बाद जब बादशाह अकबर महल में आते हैं तो मुरलीधर को देख चौंक पड़ते हैं। उन्होंने सिपाही को बुलाकर पूछा कि मुरलीधर ने पूरा चुना खाया था या नहीं। सिपाही ने बादशाह अकबर को कहा कि मुरलीधर ने पूरा एक किलो चुना ही खाया था।
हैरान होकर बादशाह अकबर ने मुरलीधर से पूछा, “एक किलो चुना खाने के बाद भी तुम ज़िंदा कैसे हो मुरलीधर।” मुरलीधर ने कहा, “माफ़ करबा जहाँपना मैं घर से एक किलो देशी घी पि कर आया था इसलिए घी के जहर ने चुने के जहर को मार दिया और मैं आपके सामने सही सलाहमत खड़ा हूँ।” बादशाह अकबर बोले, “क्या तुम्हे मालूम था कि मैं यह एक किलो चुना तुम्हे खिलने वाला हूँ?” मुरलीधर ने कहा, “मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम था हुजूर, हाँ मेरे हाथ में एक किलो चुना देखकर भैया महेश दास ने यह अनुमान जरूर लगा लिया था और उन्होंने ही मुझे कहा था कि हो सकता है कि यह चुना तुम्हे ही खाना पड़े इसलिए एक किलो देशी घी पि कर जाना।”
यह सुनकर बादशाह अकबर ने महेश दास को अपने पास पेश करने की अनुमति दी। पनवाड़ी मुरलीधर जब महेश दास को लेकर बादशाह अकबर के पास आए तो बादशाह अकबर महेश दास के बुद्धि का तारीफ करने लगे और उन्हें तुरंत अपने नह रत्नों में शामिल कर लिया। यह वही महेश दास थे जिन्हे हम और आप बीरबल के नाम से जानते हैं।
उम्मीद करते हैं इस लेख को पढ़कर आपको पता चल ही गया होगा कि आखिर कैसे अकबर और बीरबल पहली बार मिले थे।
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