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धोखेबाज पत्नी की कहानी | Dhokhebaz Patni Ki Kahani

धोखेबाज पत्नी की कहानी | Dhokhebaz Patni Ki Kahani

Posted on August 27, 2021

धोखेबाज पत्नी की कहानी  Dhokhebaz Patni Ki Kahani in Hindi

 

धोखेबाज पत्नी की कहानी

एक  गाँव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। पत्नी मुंहफट थी। इसलिए ब्राह्मण के कुटुम्बियों संग उसकी बनती नहीं थी। परिवार में साद कलह का वातावरण बना रहता था। ब्राह्मण प्रतिदिन के इस कलह से तंग आ गया था और सोचने लगा कि रोज-रोज के कलह से परदेश जाकर अलग घर बसाकर रहना अच्छा रहेगा। कम से कम शांति से जीवन व्यतीत होगा।

 

यह विचार कर वह कुछ दिनों बाद ब्राह्मण के साथ परदेश की यात्रा पर निकल गया। मार्ग में एक घना जंगल पड़ा। लम्बी यात्रा के कारण ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों थक थक गए थे। ब्राह्मणी का प्यास के कारण बुरा हाल था। ब्राह्मण उसे एक पेड़ के निचे बैठाकर जल की व्यवस्था करने चला गया। किन्तु, जब तक वह जल लेकर लौटा, तब तक ब्राह्मणी ने प्यास के कारण अपने प्राण त्याग दिए थे।

 

ब्राह्मणी को मृत देख ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ। वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, “हे, ईश्वर मैं अपनी पत्नी के साथ नया जीवन आरंभ करने परदेश जा रहा था। तूने उसके ही प्राण हर लिए। कृपा कर भगवन….मेरी पत्नी में वापस प्राण फूंक दे।”

 

ब्राह्मण की प्रार्थना सुन ईश्वर की आकाशवाणी हुई, “ब्राह्मण, यदि तू अपना आधा प्राण ब्राह्मणी को दे देगा तो वह जी उठेगी।” ब्राह्मण ने अपना आधा प्राण ब्राह्मणी को दे दिया। ब्राह्मणी फिर से जीवित हो गई। दोनों ने फिर से अपनी यात्रा आरंभ कर दी।  चलते-चलते दोनों एक नगर के बाहर पहुंचे। वहां पहुचंकर ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को एक कुएं के पास बैठने को कहा और स्वयं भोजन की व्यवस्था करने चला गया।

 

ब्राह्मणी कुएं के पास गई, तो उसने देखा कि एक लंगड़ा युवक रहट चला रहा है। दोनों ने एक दूसरे से हंसकर बात की और एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए। दोनों अब एक साथ रहना चाहते थे। इधर जब ब्राह्मण भोजन की व्यवस्था कर लौटा तो ब्राह्मणी को एक लंगड़े युवक से बात करते हुए पाया।

 

ब्राह्मण को देखकर ब्राह्मणी बोली, “यह युवक भी भूखा है इसे भी भोजन में से कुछ अंश दे देते हैं। हमें पुण्य प्राप्त होगा।” ब्राह्मण ने लंगड़े युवक को अपने साथ भोजन के लिए आमंत्रित किया। तीनों ने साथ-साथ भोजन किया। भोजन करने के बाद जब प्रस्थान करने का समय आया तो ब्राह्मणी ब्राह्मण से बोली, “क्यों न इस युवक को भी अपने साथ ले चले। दो से तीन भले। बात करने के लिए एक  अच्छा साथ मिल जाएगा। वैसे भी तुम कहीं जाते हो तो मैं अकेली रह जाती हूँ और अकेले मुझे भय सताता है , यह रहेगा तो किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा।”

 

ब्राह्मण बोला, “हम अपना बोझ तो उठा नहीं पा रहें हैं, इस लंगड़े का बोझ कैसे उठाएंगे। मेरी मानो तो इसे यहीं छोड़ दो। हम दोनों आगे बढ़ते हैं।” किन्तु ब्राह्मणी का ह्रदय लंगड़े पर आसक्त हो चुका था। वह कहने लगी, “इसे हम पिटारे में अपने साथ ले चलते हैं। ये भी कहीं न कहीं हमारे किसी काम आ ही जाएगा।”

 

आखिर में ब्राह्मण ने ब्राह्मणी की बात मान ली और पिटारे में डालकर लंगड़े को अपने साथ ले गया। कुछ देर चलने के बाद वह पानी पीने के लिए एक कुएं के पास जाकर रुके। वहां पानी निकालते समय ब्राह्मणी और लंगड़े ने ब्राह्मण को कुएं में धकेल दिया। उन्हें लगा की ब्राह्मण मर गया है और वह आगे बढ़ गए।

 

कुछ दिनों की यात्रा के पश्चात् वह एक नगर की सीमा पर पहुंचे। लंगड़ा अभी भी पिटारे में ही था। सीमा पर उपस्थित पहरेदारों ने ब्राह्मणी को रोक लिया और पिटारे की तलाशी ली। तलाशी में पिटारे में से लंगड़ा बाहर निकला। दोनों  राजदरबार ले जाया गया। राजदरबार में राजा ने ब्राह्मणी से पूछा, “यह लंगड़ा कौन है? इसे तुम पिटारे में छुपाकर क्यों ला रही थी?” ब्राह्मणी बोली, “यह मेरा पति है। कुटुम्बियों से तंग आकर हम अपना देश छोड़कर परदेश आए हैं। कई लोग मेरे पति के बैरी हो चुके हैं। इसलिए अपने पति को मैं पिटारे में छुपाकर लाई हूँ। कृपा कर आप इस नगर में हमें निवास करने की अनुमति प्रदान कर उपकार करे।”राजा ने उन्हें नगर में बसने की अनुमति दे दी और दोनों नगर में पति-पत्नी की तरह रहने लगे।

 

उधर कुएं में गिरे ब्राह्मण को कुछ साधुओं ने ब्राह्मण को कुएं से बाहर निकाल लिया था। कुछ दिन साधुओं के साथ रहकर ब्राह्मण भी उसी नगर में आ गया, जहाँ ब्राह्मणी लंगड़े के साथ रह रही थी। एक दिन ब्राह्मण की ब्राह्मणी से भेंट हो गई, जिसके बाद दोनों में कहा सुनी होने लगी। बात बढ़कर राजा के समक्ष पहुंची।

 

राजा ने ब्राह्मणी से पूछा, “यह कौन है?” ब्राह्मणी बोली, “यह मेरे पति का बैरी है। उसे मारने आया है। इसे मृत्यु-दंड दीजिये।” राजा ने ब्राह्मण को मृत्यु-दंड की आज्ञा दी, जिसे सुनकर ब्राह्मण बोला, “महाराज! आपका दिया हर दंड मुझे स्वीकार है। किन्तु मेरी एक विनती सुन लीजिये। इस स्त्री के पास मेरा कुछ है, उसे दिलवा दीजिये।” राजा ने बब्राह्मणी से पूछा, “इस व्यक्ति का कुछ है क्या तुम्हारे पास?” ब्राह्मणी बोली, “नहीं महाराज, मेरे पास इसका कु भी नहीं है। यह झूट बोल रहा है।”

 

तब ब्राह्मण बोला, “तूने मेरे प्राणो का आधा भाग लिया है। ईश्वर इसका साक्षी है। ईश्वर से डर स्त्री। अन्यथा, बहुत बुरा परिणाम भोगेगी।” ब्राह्मणी यह बात सुनकर डर गई और बोली, “जो कुछ भी मैंने तुझसे लिया है, वह तुझे वापस करने का मैं वचन देती हूँ।”

 

यह कहना ही था कि ब्राह्मणी निचे गिर गई और वहीं मर गई। उसके आधे प्राण अब ब्राह्मण में समा गए थे। ब्राह्मण ने राजा को सारी बात बताई। सारी बात जानने के बाद राजा ने लंगड़े को उसके करतूत के लिए कारावास में डाल दिया।

 

कहानी से सीख – 

तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संबंधो में प्रेम और विश्वास को महत्त्व दो। किसी से धोखा मत करो।

 

आशा करते हैं कि आपको आज की यह कहानी धोखेबाज पत्नी की कहानी  Dhokhebaz Patni Ki Kahani in Hindi जरूर पसंद आई होगी अगर पसंद आए तो कमेंट करके और अगर आप और भी असेही हिंदी कहानिया पढ़ना चाहते हैं तो हमारे ब्लॉग में बहुत सी कहानियां है आप जाकर उन कहानियों को भी जरूर पढ़े।

 

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