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श्रीनिवास रामानुजन

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी | Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi

Posted on July 16, 2021

आज हम लोग एक ऐसे शख्स के बारे में बात करेंगे जिन्हे गणित का जीनियस कहा जाता है। इस शख्स का नाम था श्रीनिवास रामानुजन। ये एक भारत के महान गणितज्ञ थे। इन्हे गणित में कोई विशेष परिश्रम नहीं मिला लेकिन गणित के क्षेत्र में अपने समय के अनेक दिग्गजों को पीछे छोड़ने वाले श्रीनिवास रामानुजन ने केवल 32 साल के जीवन काल में दुनिया को गणित के अनेक क्षेत्र और सिद्धांत दिए। आइए जानते हैं श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय।

 

Contents

  • 1 श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय – 
  • 2 प्रारंभिक जीवन 
  • 3 प्रोफेसर हार्डी के साथ पत्रव्यवहार और विदेश गमन 
  • 4 श्रीनिवास रामानुजन की खोज 
  • 5 रॉयल सोसाइटी की सदस्यता 
  • 6 श्रीनिवास रामानुजन का निधन 
  • 7 यह भी पढ़े:-

श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय – 

जन्म  22 दिसंबर 1887
मृत्यु  26 अप्रैल 1920
अन्य नाम  श्रीनिवासा रामानुजन अय्यंगार
आवास  भारत, यूनाइटेड किंगडम
राष्ट्रीयता  भारतीय
शिक्षा  कैंब्रिज विश्वविद्यालय
क्षेत्र  गणित
डॉक्टरी सलाहकार  गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी, जॉन इडेंसर लिटलवुड
पुरस्कार  फेलो ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी
उपलब्धियां  लैंडॉ-रामानुजन स्थिरांक

रामानुजन-सोल्डनर स्थिरांक

रामानुजन थीटा फलन

रॉजर्स-रामानुजन तत्समक

रामानुजन अभाज्य

रामानुजन योग

कृत्रिम थीटा फलन

प्रारंभिक जीवन 

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्तिथ कोयंबटूर के ईरोड नाम के गाँव में हुआ था। इनके माता का नाम कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। रामानुजन के पिता के एक साड़ी के दुकान पर क्लर्क और माँ हाउस वाइफ थी।

रामानुजन जब एक वर्ष थे तभी उनका परिवार कुंभकोणम आ गया था। इनका बचपन मुख्यत कुंभकोणम में बीता था जो की अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता था।

बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकाश सामान्य बालकों जैसा नहीं था। वह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सिख पाए थे। जब इतनी बड़ी आयु तक रामानुजन ने बोलना आरंभ नहीं किया था तो सबको चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं हैं। बाद के वर्षो में जब उन्होंने विद्यालय में प्रवेश किया तो पारंपरिक शिक्षा में इनका कभी मन नहीं लगा।

रामानुजन ने दस वर्ष की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पुरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल पहुंचे।

रामानुजन को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। जैसे की- संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों की बीच दूरिया कितनी होती है?

जब वह तीसरे फॉर्म में थे तो एक दिन गणित के अध्यापक ने पढ़ाते हुए कहा, “यदि तीन केले तीन व्यक्तियों को बांटा जाए तो प्रत्येक को एक केला मिलेगा। यदि 1000 केले 1000 व्यक्तियों को बांटा जाए तो भी प्रत्येक को एक ही मिलेगा इस तरह सिद्ध होता है कि किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग किया जाए तो परिणाम एक मिलेगा।” रामानुजन ने खड़े होकर पूछा, “शुन्य को शुन्य से भाग दिया जाए तो भी क्या परिणाम एक ही मिलेगा? ”

रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना बढ़ गया था की वह दूसरे विषयों पर ध्यान ही नहीं देते थे। यहाँ तक की वह इतिहास, जिव विज्ञान के कक्षाओं में भी गणित के प्रश्नों को हल किया करते थे। नतीजा यह हुआ कि ग्यारहवीं कक्षा के परीक्षा में वह गणित को छोड़कर बाकि सब विषयों में फ़ैल हो गए और परिणामस्वरूप उनको छात्रवृत्ति भी मिलनी बंद हो गई। एक तो घर की आर्थिक स्तिथि ख़राब और ऊपर से छात्रवृत्ति भी नहीं मिल रही थी।

रामानुजन के लिए यह बड़ा ही कठिन समय था। घर की स्तिथि सुधारने के लिए इन्होने गणित के कुछ टूशन तथा खाते-बही का काम भी किया। कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन ने फिरसे बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुतीर्ण हो गए। और इसी के साथ उनके पारंपरिक शिक्षा की इतिश्री हो गई।

हालाँकि उन्होंने केवल 13 साल की उम्र में ही लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.एल लोनी की विश्व प्रसिद्ध त्रिकोणमिति पर लिखित पुस्तक का अध्ययन कर लिया था एवं अनेक गणितीय सिद्धांत प्रतिपादित किए।

15 साल की उम्र में रामानुजन जब मेट्रिक शिक्षा में पड़ रहे थे उसी समय उन्हें स्थानीय कॉलेज की लाइब्रेरी से गणित का एक ग्रंथ मिला, ‘ए सिनोप्सिस ऑफ़ एलिमेंट्री इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स (Synopsis of Elementary Results in Pure Applied Mathematics)’ लेखक थे ‘जॉर्ज एस कार्र (George Shoobridge Carr) ।’

रामानुजन के जॉर्ज एस कार्र गणित की परिणामों पर लिखी किताब पड़ी और इस किताब से प्रभावित होकर स्वयं ही गणित के ऊपर कार्य करना शुरू कर दिया। पुस्तक में गणित के कुल 6165 फॉर्मूले दिए गये थे, जिन्हे रामानुजन के केवल 16 साल की आयु में पूरी तरह आत्मसात कर लिया था।

रामानुजन ने कुछ ही दिन में सभी फॉर्मूले को बिना किसी मदद लिए। इस ग्रंथ को हल करते समय उन्होंने अनेक नई खोजे कर डाली। बारहवीं कक्षा में दो बार फ़ैल होने के बाद 1908 में इनके माता-पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया।

विवाह हो जाने के बाद अब इनके लिए सब कुछ भूलकर गणित में डूबना संभव नहीं था। इसके पश्चात् उन्हें नौकरी की तलाश थी। बहुत प्रयास करने के बाद उन्हें मुश्किल से माहवार की कलर्क की नौकरी मिली।

रामानुजन को अपनी माता से काफी लगाव था। अपनी माँ से रामानुजन से प्राचीन परम्पराओं और पुरुषों के बारे में सीखा था। उन्होंने बहुत से धर्मी भजनों को गाना भी सिख लिया था ताकि वह आसानी से मंदिर में कभी -कभी गा सके। ब्राह्मण होने की बजह से यह सब उनके परिवार का ही एक भाग था।

प्रोफेसर हार्डी के साथ पत्रव्यवहार और विदेश गमन 

भारत इस समय परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। इस समय भारतीय और पश्चिमी रहन सहन में एक बड़ी दुरी थी और इस समय सामान्यत भारतीयों को अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपने बातों को प्रस्तुत करने में बहुत संकोच होता था। इधर स्तिथि कुछ ऐसी थी क़ी बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता लिए शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता

इस समय रामानुजन के पुराने शुभचिंतक इनके काम आए और इन लोगों ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्य को लन्दन ले प्रसिद्ध गणितज्ञ जी.एच हार्डी  के पास में भेजा। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक थे और अपने सफल स्वभाव और अनुशासनप्रियता के कारण जाने जाते हैं।

प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। अब रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार आरंभ हुआ।

हालाँकि शुरू समय  प्रोफेसर हार्डी को जब रामानुजन का पत्र मिला था तब इन्होने इसे इग्नोर कर दिए थे। क्यूँकि उस समय रामानुजन ने 120 प्रेमयो की एक लम्बी सूची भेजी थे।

यह पत्र हार्डी को सुबह नास्ते के टेबल पर मिले। इस पत्र में किसी अनजान भारतीयों द्वारा बहुत सारे बिना उत्पत्ति के प्रमेय लिखे थे, जिसमे से कई पत्र हार्डी देख चुके थे। पहली बार देखने के बाद हार्डी को लगा कि रामानुजन की 10 पन्नो वाली गणित के 10 सूत्रों से भरी हुई चिट्टी सब बेकार है।

उन्होंने इस पत्र को। एक तरफ रख दिया और अपने कार्य में लग गए परन्तु इस पत्र की बजह से उनका मन अशांत था। इस पत्र में बहुत से ऐसे प्रमेय था न उन्होंने न उन्होंने कभी देखा और न कभी सोचे थे। उन्हें बार बार यह लग रहा था कि यह व्यक्ति या तो धोखेबाज है या तो गणित का बहुत बड़ा विद्वान है।

रात के 9 बजे हार्डी ने अपने एक  शिष्य लिटलवुड  के साथ एक बार फिर इन प्रमेय को देखा और आधी रात तक वे लोग समझ गए थे क़ी रामानुजन कोई धोखेबाज नहीं बल्कि गणित के बहुत बड़े विद्वान है, जिनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना आवश्यक है।

प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन  की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनों के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनों ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया। प्रोफेसर हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर  आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होंने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में 100 पुरे अंक दिए।

श्रीनिवास रामानुजन की खोज 

रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था। श्रीनिवास रामानुज तो ज्यादा उम्र तक नहीं जी पाए लेकिन अपने छोटे जीवन में ही उन्होंने लगभग 3900 के आसपास प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। और उनके अधिकांश प्रमेय लोग जानते हैं। उनके बहुत परिणाम जैसे की रामानुजन प्राइम और रामानुजन थीटा बहुत ही प्रसिद्ध है। यह उनके महत्वपूर्ण प्रमेय में से एक है।

इन्होने 3884 इक्वेशन बनाई। इन्होने शून्य और अनंत को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अन्तर्सम्वन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों को सहारा लिया। वह अपने विख्यात खोज गोलीय विधि (Circle Method) के लिए भी जाने जाते हैं।

रॉयल सोसाइटी की सदस्यता 

रामानुजन के कार्य के लिए 28 फेब्रुअरी 1918 को उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो घोषित किया गया। इस सम्मान को पाने वाले वह दूसरे भारतीय थे। उसी वर्ष ओक्टुबर के महीने में उन्हें ट्रीनिटी कॉलेज का फेलो चुना गया। इस सम्मान को पाने वाले वह पहले भारतीय थे।

श्रीनिवास रामानुजन का निधन 

एक तरफ उनका करियर बहुत अच्छी दिशा में जा रहा था लेकिन दूसरी ओर उनका स्वस्थ गिरता जा रहा था। अंतः डॉक्टरों ने उन्हें वापस भारत लौटने की सलाह दी। भारत आने पर इन्हे मद्रास विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई और वह अध्यापन और शोध कार्य में फिरसे रम गए।

भारत लौटने पर भी इनके स्वास्थ में सुधार नहीं हुआ और उनकी हालात गंभीर होती जा रही थी। तेज बुखार, खांसी और पतला होने के कारण उनकी हालात गंभीर हो गई। धीरे-धीरे डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया। उनका अंतिम समय नजदीक आ गया था। अपनी बीमारी से लड़ते-लड़ते अंतः 26 अप्रैल 1920 को उन्होंने प्राण त्याग दिए।

मृत्यु की समय उनकी आयु बस 33 वर्ष थी। इस महान गणितज्ञ का निधन गणितजगत के लिए अपूरणीय क्षति था।

 

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