गलती का एहसास
किसी गाँव में रामु नाम का एक लकड़हारा रहता था। उसी गाँव में एक संत में अपनी कुटिया में रहते थे। लकड़हारा संत का बड़ा भक्त था। सुबह जंगल में लकडिया काटने जाता तो उनका आशीर्वाद लेकर जाता। लकड़िया बेचकर वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था।
एक बार उसकी पत्नी बीमार हो गई वह उसे डॉक्टर को दिखाने के लिए शहर ले जाना चाहता था मगर उसने पास इतने पैसे नहीं थे। 2 दिन से जंगल से लकडिया भी नहीं ला सकता था। वह साहूकार के पास गया और उससे पचास रूपए उधार मांगे।
रामु ईमानदार आदमी था। साहूकार ने तुरंत उसे पचास रूपए दे दिए। वह पत्नी को डॉक्टर के पास ले गया। बीमारी में पुरे पचास रूपए खर्च हो गए लेकिन पत्नी ठीक हो गई।
अब मिट्ठाल को साहूकार के ऋण की चिंता हुई। वह खूब मेहनत करने लगा मगर उस कमाई से घर का खर्च ही मुश्किल से चल पाता था।
एक दिन दो पहर को लकड़ियाँ काटते-काटते रामु का सारा शरीर पसीने से भीग गया। तभी राम-राम जपते संत उधर आ निकले। रामु ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
संत ने रामु से कहा, “आज तुम कुटिया में नहीं आए…..क्या कारण था? मैं यही पूछने आया हूँ।”
संत की बात रामु की गर्दन शर्म से झुक गई और बोला, “महाराज मैं सारादिन परिश्रम करता हूँ फिर भी दो समय की रोटी नहीं जुटा पाता। गाँव का साहूकार कुछ भी काम नहीं करता फिर भी उसके पास बहुत सा धन है। मुझे साहूकार की ऋण की चिंता हो रही है।”
संत मुस्कुराए….उन्होंने रामु को एक कटोरा दिया और कहा, “तुम सारादिन मेहनत करके जितने पैसे की लकड़ी बेचते हो वह सारे पैसे कटोरे में डाल देना, तुम्हारे पैसे दो गुने हो जाएंगे। तब तुम आसानी से साहूकार के ऋण उतार सकोगे।”
कटोरा पाकर रामु बहुत खुश हुआ….लकड़ी बेचकर आया, पैसे गिने पुरे आठ रूपए थे। उसने तुरंत उसे कटोरे में डाल दिया। कटोरे में डालते ही पैसे दुगने हो गए। ये देख रामु ख़ुशी से उछल पड़ा।
समय बीतता गया और रामु साहूकार का ऋण भूलने लगा। वह सुबह जल्दी नहीं उठता था क्यों कि उसे पता था रूपए दो गुने हो जाएंगे। दिन चढ़ने पर जंगल में जाता और शाम ढलने पर जल्दी घर आ जाता था। अनाब शनाब खर्च करने के कारन ऐसी हालत हो गई कि अगर रूपए न बढे तो भूख से मरने की नौबत आ सकती है।
एक दिन रामु के सिर में दर्द था जिसके कारण वह जंगल में लकड़िया काटने नहीं जा सका। खाली कटोरा सामने रखा था। वह सोच रहा था परिवार भूखा सोएगा कि तभी संत वहां आ गए।
रामु ने उठकर संत को प्रणाम किया….
संत ने कहा, “बहुत भूख लगी है….।”
रामु चुप था। उसने मुँह से एक भी शब्द नहीं निकाला।
संत ने बोला, “रामु तुमने जो कमाया है क्या उसमे से आधा हिस्सा मुझे नहीं दे सकते?”
रामु ने भीगी आँखों से संत को सारी कहानी सुना दी। मुस्कुराते हुए संत ने अपने झोली में से कुछ फल निकालकर रामु को दिए और कहा, “जब तुम गरीब थे तो आत्मनिर्भर थे लेकिन जब तुम कटोरे पर निर्भर रहने लगे, तुम्हारे काम करने की शक्ति नष्ट हो गई।”
गलती रामु की समझमें आ गई थी। उसने संत को कटोरा वापस कर दिया।
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