भोंदूराम जी बने पंडित
एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था, भोंदूराम। भोंदूराम के पिता, दादा, परदादा सभी लोग शास्त्रों के प्रकांड पंडित थे और इसलिए उन्हें आदर से पूरा गाँव पंडित जी कहकर पुकारता था। भोंदूराम ने बचपन से ही पढाई में अधिक रूचि नहीं ली। और इसलिए उसका नाम भी भोंदूराम पड़ गया।
जैसे जैसे वह बड़ा हुआ उसे समझ आने लगी, उसे पढाई की ओर रूचि आने लगी। और आगे की पढाई के लिए वह शहर गया। वहां उसने ज्ञान अर्जन किया और अपने पुरखों की तरह ही वह भी शास्त्रों का प्रकांड पंडित बन गया। विद्या अर्जन कर कर भोंदूराम जब वापस गाँव आया तो वह एक प्रकांड पंडित बन चूका था, लेकिन सभी गाँववाले उसे अभी भी भोंदूराम कहते थे। वह चाहते थे कि उसके पिताजी की तरह ही उसे भी पंडित जी कहा जाए। वह कितना भी गाँववालों को समझाने की प्रयास करता, वह लोग उसका मजाक उड़ाते थे।
पंडित भोंदूराम के बचपन का एक मित्र था, रामकृपा। वह उससे मिलने गया और उसे अपनी समस्या बताई। रामकृपा ने कहा, “बस इतनी सी बात मित्र, यह तो मैं दो तीन दिनों में ही कर दूंगा। तुम्हे बस जैसा मैं कहूं वैसा करना होगा। आने वाले दो तीन दिनों तक तुम्हे अगर कोई भी पंडित जी नाम से बुलाए तो उससे झगड़ा कर लेना, उसे बुरा भला कहना।” भोंदूराम को आश्चर्य हुआ और कहा, “अरे मित्र यह क्या कर रहे हो! मैं यहीं तो चाहता हूँ कि लोग मुझे पंडित जी कहे।” रामकृपा ने कहा, “मित्र, मुझपर विश्वास रखो। यह दुनिया की उलटी चाल है, दुनिया उलटी चलती है। तुम अगर कहोगे कि वह तुम्हे पंडित जी कहे तो वह कभी भी यह नहीं कहेंगे लेकिन तुम पंडित पर चिड़ोगे तो वह तुम्हे चिढ़ाने के लिए बार-बार पंडित कहेंगे। फिर देखो दो तीन दिन में ही सबकी आदत हो जाएगी, तुम्हे भोंदूराम नहीं पंडित जी कहने की।”
भोंदूराम ने रामकृपा की बात मान ली। दूसरे दिन रामकृपा उसके घर के पास पहुंचा और वहां पर खेल रहे कुछ छोटे बच्चों से पूछा, “बच्चों क्या तुम उस घर में रहने वाले भोंदूराम को जानते हो?” बच्चे बोले, “वह सामने घरवाले न? हाँ, वह तो कल ही हमें बहुत डाट रहे थे क्यूंकि हम यहाँ खेल रहे थे और शोर कर रहे थे।” रामकृपा बोला, “अच्छा क्या तुम जैसे को तैसा करना चाह्ते हो? एक काम करो भोंदूराम को अब से पंडित जी बोला करो फिर देखो कितना चिढ़ जाता है।”
बच्चों ने रामकृपा ने जैसा कहा वैसे ही जोर-जोर से आवाज देना शुरू कर दिया – पंडित जी, ओ पंडित जी। पंडित जी, ओ पंडित जी। भोंदूराम घर से बाहर निकला। जैसा की रामकृपा ने उसे सिखाया था वह बच्चों पर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “चुप हो जाओ, किसने मुझे पंडित जी कहा? ठेरो अभी मैं तुम्हे मजा चखाता हूँ।” यह कहकर उन बच्चों को डांटकर भगा दिया। अब तो बच्चों को बड़ा मजा आने लगा। उन्हें लगा कि भोंदूराम को पंडित जी कहने पर वह चिढ़ता है तो बस जब भी मजे करने होते थे सारे बच्चे मिलकर भोंदूराम के घर के पास जाकर पंडित जी कहकर चिल्लाने लगते थे और भोंदूराम उन्हें डांटने को मारने को दौड़ता।
दो तीन दिन में ही पुरे गाँव में यह बात फैल गई। अब तो जिसे भी उसका मजाक उड़ाना होता था, जिसे भी मस्ती करनी होती थी और जिसके पास भी फालतू समय होता, वह भोंदूराम के घर के पास जाकर पंडित जी पंडित जी आवाज देने लगते थे। धीरे-धीरे भोंदूराम ने उन्हें डांटना कम कर दिया। अब गाँव वालों के लिए भी यह पुराना हो गया लेकिन भोंदूराम का नाम जरूर अब पंडित जी पड़ गया।
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