सृष्टि का नियम
Srishti Ka Niyam Story in Hindi
एक स्त्री का प्यारा एक लौता पुत्र मर गया। उसको बहुत बड़ा शोक हुआ। वह पागल सी हो गई और पुत्र के शरीर को छाती से लिपटाकर चिक्ति हुई दौड़ रही थी की कोई दवा दो, कोई मेरे बच्चे को अच्छा कर दो चिल्लाती हुई इधर-उधर दौड़ने लगी। लोगों ने बहुत समझाया परन्तु उसकी समझमे कुछ नहीं आया।
उसकी भयानक स्तिथि देखकर एक सज्जन ने उसे भगवान बुद्ध के पास यह कहकर भेज दिया कि तुम सामने की तुम सामने की गाँव में जाकर भगवान बुद्ध से दवा मांगो, वह निश्चय ही तुम्हारा दुख मिटा देंगे। वह स्त्री दौड़ी हुई गई और बच्चे कोजलाने के लिए भगवान बुद्ध से रो- रो कर प्रार्थना करने लगी।
भगवान बुद्ध ने कहा, “तुमने बड़ा अच्छा किया जो तुम यहाँ आ गए। बच्चे को मैं जला दूंगा, तुम गाँव में जाकर जिसके घर में आज तक कोई भी मेरा न हो उससे कुछ सरषो के दाने मांगकर लाओ।” बच्चे को अपने छाती से लिपटाकर वह दौड़ी और लोगों से सरषो के दाने मांगने लगी। जब किसी ने देना चाहा तो उसने कहा, “तुम्हारे घर में आज तक कोई मेरा तो नहीं है न? मुझे उसी से सरषो लेना है जिसके घर में कभी कोई मरा न हो।”
उसकी इस बात को सुनकर घरवालों ने कहा, “भला ऐसा भी कोई घर होगा जिसमें कोई मरा न हो! मनुष्य तो हर घर में मरते ही हैं।” वह घर-घर फिरि पर सभी जगह एक ही जवाब मिला। तब उसकी समझमे आ गया कि मरना तो हर घर का रिवाज। है जो जन्मता है वह मरता ही है। मृत्यु किसी भी उपाय से टलती नहीं और अगर टलती होगी तो क्यों कोई अपने प्यारे को मरने देता। एक घर में ही नहीं, जगतभर में सभी जगह मृत्यु का विस्तार है। बस यह बात जब ठीक ठाक समझमे आ गई तब उसने बच्चे के शरीर को ले जाकर शमशान गाड़ दिया और लौटकर भगवान बुद्ध से सारी बात कह दी।
भगवान बुद्ध ने उसे समझाया, “देखो, यहाँ जो जनम लेता है उसे मरना ही पड़ेगा यही नियम है। जैसे हमारे घर पे मरते है वैसे ही हम भी मर जायेंगे। इसलिए मृत्यु का शोक न करके उस स्तिथि की खीज करनी चाहिए जिसमे पहुंच जाने पर जनम ही न हो। जनम न होगी तो मृत्यु अपने आप ही मिट जाएगी। बस समझदार आदमी को यही करना चाहिए समय पर समझदारी से काम लेने वाला व्यक्ति जीवन में सुखी रहता है।”
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