चन्द्रशेखर आजाद की जीवनी Chandra Sekhar Azad Biography in Hindi
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चन्द्रशेखर आजाद जीवन परिचय-
जन्म | 23 जुलाई 1906 |
मृत्यु | 27 फेब्रुअरी 1931 |
अन्य नाम | आजाद, पंडित जी |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
संगठन | हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन |
प्रारंभिक जीवन
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और उनके माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्तिथ भाभरा गाँव में ही बीता था।
बचपन में चन्द्रशेखर आजाद वीर बालकों के साथ धनुषवाण से खेला करते थे और इसी प्रकार उन्होंने निशानिबाजी बचपन में ही सिख ली थी।
1919 में हुए अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार में देश के युवकों को झंझोरकर रख दिया। उस समय चन्द्रशेखर पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने 1921 में एक ऐसाही आंदोलन (असहयोग आंदोलन) का फरमान जारी किया तो तमाम अन्य छात्रों की भाती चन्द्रशेखर भी सड़कों पर उतर आए थे। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आंदोलन में भाग लेने पर पहली बार गिरफ्तार हुए। उस समय वह सिर्फ 14 वर्ष के थे।
जब चन्द्रशेखर को जॉर्ज के सामने पेश किया गया तो जॉर्ज के उनका नाम पूछने पर उन्होंने कहा मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का स्वतंत्रता और मेरा पता जेल है। इस पर जॉर्ज भड़क गए और चन्द्रशेखर आजाद को 15 बेतों की सजा सुनाई और यहीं से उनका नाम आजाद पड़ गया।
क्रांतिकारी संगठन और काकोरी कांड
1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित करने के बाद आजाद अधिक आक्रमक हो गए तब उनकी मुलाक़ात एक युवा क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता से हुई। मन्मथनाथ गुप्ता ने चन्द्रशेखर को राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया। राम प्रसाद बिस्मिल ने एक क्रांतिकारी संगठन “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” का गठन किया था। तब चन्द्रशेखर भी “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” की एक सक्रिय सदस्य बन गए और “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” के लिए धन एकत्रित करना शुरू कर दिया। उनका अधिकांश फंड्स सरकारी रूप से ही आता था।
सन 1925 में चन्द्रशेखर ने काकोरी कांड को अंजाम दिया। काकोरी ट्रैन के लुठ में चन्द्रशेखर आजाद के साथ महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्ला खान, राजेन्द्रनाथ लाहिरी और ठाकुर रोशन सिंह भी शामिल थे। उन्होंने अंग्रेजो का खजाना लूटकर उनके सामने चुनौती पेश की थी।
इस घटना के दल के कई सदस्य को गिरफ्तार कर लिया गया था तो कई को फांसी की सजा दी गई थी। इस तरह यह दल बिखर गया। विद्रोही और शख्त स्वभाव की बजह से चन्द्रशेखर अंग्रेजो के हाथ नहीं आ पाए और वह अंग्रेजो को चख्मा देकर दिल्ली चले गए। दिल्ली क्रांतिकारियों का एक सभा का आयोजन किया गया। इस क्रांतिकारियों के सभा में भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह भी शामिल हुए और नए नाम से नए दल का गठन किया गया। इस दल का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” रखा गया।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन फिर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया जिससे एक बार फिर अंग्रेज आजाद के दल के पीछे पड़ गए।
लाला लाजपत राय के हत्या का बदला
इसके बाद चन्द्रशेखर ने लाला लाजपत राय के हत्या का बदला भी अपने साथियों के साथ मिलकर सन 1928 में सौंडर्स की हत्या करके ले लिया। क्रांतिकारी चन्द्रशेखर का मानना था कि संघर्ष की राह में हिंसा कोई बड़ी बात नहीं है। देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानी आयरिश क्रांति से बहुत प्रभावित थे। इसी को लेकर उन्होंने असेम्ब्ली में बम फोड़ने का फैसला किया। इस फैसले में चन्द्रशेखर ने भगत सिंह का पूरा सहयोग किया जिसके बाद अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए उनके पीछे हाथ धो कर पड़ गई और यह दल फिर एक बार बिखर गया।
इस बार दल के सभी लोगों को पकड़ लिया गया जिसमे भगत सिंह भी शामिल थे। हालाँकि चन्द्रशेखर आजाद इस बार भी ब्रिटिश सरकार को चख्मा देकर भाग गए। फिर आजाद ने झाँसी को अपने संसथा का थोड़े दिन के लिए एक केंद्र बना लिया। वहां उन्होंने अपने समूह के लोगों को निशानेबाजी के लिए प्रशक्षित किया।
झाँसी में रहते हुए उन्होंने बाजार में बुंदेलखंड मोटर गेराज में कार चलाना भी सिख लिया। इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने राजगुरु, भगत सिंह और सुकदेव को फांसी देने की सजा सुना दी। जैसे ही चन्द्रशेखर को यह पता चला वह किसी तरह इस सजा को कम या उम्रकैद की सजा में बदलने की कोशिश करने लगे जिसके लिए वह इलाहबाद पहुंचे परन्तु उनके इलाहबाद पहुंचने की खबर अंग्रेजो को लग गई। फिर इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने चन्द्रशेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन आजाद हमेशा के लिए अडिक रहे और बहादुरी से उन्होंने पुलिसवालो का सामना किया। इस गोलीबारी के बीच जब आजाद के पास एक मात्र गोली बची तब वह नहीं चाहते थे कि पुलिस उनको मारे इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली।
मृत्यु
27 फेब्रुअरी 1931 को चन्द्रशेखर आजाद वीरगति प्राप्त हो गए। शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का अंतिम संस्कार सरकार ने बिना किसी सुचना के कर दिया। जब लोगों को इस बात का पता चला तो वे सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश शासक के खिलाफ जमकर नारे लगाए। इसके बाद लोगों ने उस पेड़ की पूजा करनी शुरू कर दी जहां इस चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी आखरी साँस ली थी। इस तरह लोगों ने इस महान क्रांतिकारी को अंतिम विदाय दी। हमारे देश के आजाद होने के बाद अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चन्द्रशेखर आजाद पार्क रखा गया और जिस पिस्तौल से चन्द्रशेखर आजाद ने गोली मारी थी उसे इलाहबाद के म्युसियम में रखा गया।
तो यह थी महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर की जीवनी। आपको यह लेख कैसी लगी निचे कमेंट के माध्यम से जरूर बताए और असेही महान लोगों की जीवनी पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग को जरूर सब्सक्राइब करें।
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