तुलसीदास जी को राम बचाने आए | Tulsidas Story in Hindi
आज हम आपको तुलसीदास की एक छोटी सी कहानी (Tulsidas Story in Hindi) सुनाने वाले है जो आपको अवश्य ही पसंद आएगी और इस कहानी का नाम है- तुलसीदास जी को राम बचाने आए।
तुलसीदास जी की कहानी
Tulsidas Story in Hindi
तुलसीदास जी जब रामचरितमानस लिख रहे थे तो उन्होने एक चौपाई लिखी – सिय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरि जुग पानी। इसका अर्थ है पुरे संसार में सियाराम का निवास है। सब में भगवान है और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए। यह चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने के लिए अपने घर की ओर चल पड़े।
रास्ते में उन्हें एक लड़का मिला और वह बोला, “अरे महात्मा जी इस रस्ते से मत जाइए। आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है और आपने तो लाल वस्त्र ही पहन रखे है। आप तो इस रस्ते से बिलकुल मत जाइएगा।” तुलसीदास जी ने सोचा, “कल का यह बालक मुझे चला रहा है। मुझे बैल के नाम पर डराकर दूसरे रास्ते भगा रहा है। मुझे सब पता है, सब में राम का वास है मैं उस बैल को हाथ जोड़ लूंगा और शांति से आगे चला जाऊँगा।” लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बड़े, उन्होंने देखा सच में एक बैल वहां पर घूम रहा था और इससे पहले कि वह बैल को हाथ जोड़ पाते, गुस्से में बिगड़ा हुआ बैल उनकी तरफ दौड़ा और उन्हें जोरदार टक्कर मार दी और वह बुरी तरह गिर पड़े।
अब तो तुलसीदास जी को गुस्सा आने लगा। उन्होंने सोचा कि क्या मैंने यह चौपाई जो लिखी है वह गलत है? अब तुलसीदास जी विश्राम करने की जाने बजाई उस स्थल पर जाने लगे जहाँ वह रामचरितमानस लिख रहे थे। उन्होने सोचा कि इस चौपाई को बदल देना चाहिए। रास्ते में हनुमान जी प्रकट हुए और उनसे पूछा, “श्रीमान क्या बात है? कहाँ इतने भागे भागे जा रहे हैं?”
तुलसीदास जी बहुत गुस्से में थे। वह बोले, “हनुमान जी मैं अपनी लिखी चौपाई को फाड़ने जा रहा हूँ। मुझे लगता है कि मैंने गलत चौपाई लिख दी।” हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले, “श्रीमान यह चौपाई तो शत-प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देख लिया, लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देख पाए। वह बच्चा तो आपको बचाने आया था। भगवान बालक के रूप में आपके पास पहले ही आ गए थे, लेकिन आपने देखा ही नहीं।”
हनुमान जी की बात सुनते ही तुलसीदास जी को अपनी गलती का अहसास हो गया और कहा, “धन्यवाद हनुमान जी, आपने मेरी आंखे खोल दी। सच में वह बच्चा तो मुझे बचाने ही आया था, मैंने ही उस पर अविश्वास किया था।”
तो यह थी तुलसीदास जी की एक छोटी सी कहानी। इस कहानी से हमें यह सीखना चाहिए कि कभी कभी हमें जो बात कही जाती है उस पर विस्वास करकर उसी के अनुसार काम करना चाहिए। इंसान की आदत है कि वह हर बात पर संदेह करने लगता है, लेकिन कभी कभी जो बात कही जाती है उसके पीछे हमारी भलाई और भगवान की मर्जी छुपी होती है।
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Sonali Bouri
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