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Swami Vivekananda Biography in Hindi

Swami Vivekananda Biography in Hindi | विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद की कहानी

Posted on June 4, 2021

 विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद की कहानी

सन 1881 की बात है जब एक प्रोफेसर ने एक स्टूडेंट से पूछा, “यह धरती, यह ब्रह्माण्ड, यह पूरा आकाश क्या यह सब भगवान ने बनाया है? तो उस स्टूडेंट ने जवाब दिया, “हाँ।” प्रोफेसर ने दोबारा पूछा, “तो फिर शैतान को किसने बनाया? क्या शैतान को भी भगवान ने बनाया है?” तब उस स्टूडेंट ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन उस स्टूडेंट ने उस प्रोफेसर से एक प्रश्न पूछने की अनुमति मांगी।

 

प्रोफेसर ने अनुमति दी तो स्टूडेंट ने पूछा ,”क्या ठंड का कोई वजूद है?” तो प्रोफेसर ने जवाब दिया, “हाँ है। क्यों तुम्हे ठंड का अहसास न नहीं हो रहा है?” स्टूडेंट ने जवाब दिया, “क्षमा कीजिए सर, आपका उत्तर गलत है। ठंड का कोई अस्तित्व ही नहीं है। ठंड केवल और केवल गर्मी की अनुपस्तिथि का अहसास है, ठंड का खुद का कोई अस्तित्व नहीं है।”

 

उस छात्र ने दोबारा एक प्रश्न किया, “क्या अंधकार और अँधेरे का कोई अस्तित्व है?” प्रोफेसर ने फिर कहा ,”हाँ है। रात होने पर अंधकार ही तो होता है।” छात्र ने कहा, “आप दोबारा गलत है सर। अंधकार जैसी किसी चीज का कोई अस्तित्व  नहीं है। अंधकार दरहसल प्रकाश की अनुपस्तिथि है। हम हमेशा प्रकाश और ऊष्मा के बारे में पढ़ते है, ठंड या अँधेरे के बारे में नहीं। ठीक उसी तरह शैतान का भी कोई अस्तित्व नहीं है। असलियत में शैतान प्यार, विश्वास और ईश्वर में आस्था की अनपस्तिथि का अहसास है, शैतान क खुद का कोई अस्तित्व नहीं है।”

 

वह छात्र और कोई नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद जी थे। तो आइए जानते है भारतीय संस्कृत को विस्वस्तर  तक पहचान दिलाने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद के बारे में।

 

Swami Vivekananda Biography in Hindi

 

स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त था और इनका जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक कुलीन उदार परिवार में हुआ। उनके 9 भाई बहन थे। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में अटॉनी जनरल थे जो वकालत करते थे। विवेकानंद की माता भुवनेश्वरी देवी सरल एवं धार्मिक विचारवाली महिला थी।

 

स्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गा दत्त संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे, जिन्होंने 25 वर्ष के उम्र में ही अपना परिवार और घर त्यागकर सन्यासी जीवन स्वीकारा था। नरेंद्र वचपन से ही सरारती कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। उनके माता-पिता को कई बार उन्हें संभालने और समझाने में बहुत परेशानी होती थी।

 

वचपन में उन्हें वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और वेदांत अपनी माता से सुनने का शौक था और योग और कुस्ती में विशेष रूचि थी। स्वामी विवेकानंद 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज के एंट्रेंस परीक्षा में 1st डिवीज़न लाने वाले पथम विद्वार्थी बने। उन्होंने पश्चिमी तर्क, जीवन और यूरोपी इतिहास की पढाई जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट से की।

 

1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में स्नातक की डिग्री पूरी की। नरेन्द्र ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट और चार्ल्स डार्विन जैसे महान वैज्ञानिकों के कामो का अध्ययन कर रखा था। स्वामी विवेकानंद हर्बट स्पेंसर के बिकाशवाद से काफी प्रभावित थे और उन्ही के जैसा बनना चाहते थे। उन्होंने स्पेंसर की किताब को बंगाली में परिभाषित किया है।

 

जनरल असेंबली संस्था के अध्यक्ष विलियम हेस्टी ने यह लिखा था कि नरेन्द्र सच में बहुत होशियार है। मैंने कई यात्राएं की, बहुत दूर तक गया लेकिन मैं और जर्मन विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के सभी  विद्यार्थी कभी भी नरेन्द्र के दिमाग और कुशलता के आगे नहीं जा सके।

 

वेस्टर्न  कल्चरल में विश्वास रखने वाले उनके पिता विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को ऍंग्रेजी शिक्षा देकर वेस्टर्न कल्चरल में रखना चाहते थे लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र की पिता की 1884 में अचानक मृत्यु हो गई और परिवार दिवालिया हो गया। साहूकार दिए हुए कर्जे को वापस करने की मांग कर रहे थे और उनके रिश्तेदारों ने भी उनके पूर्वजो के घर से उनके अधिकारों को हटा दिया था।

 

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मुसीबत की इस दौर में नरेन्द्र कोई काम ढूंढने में लग गए और भगवान के अस्तित्व का प्रश्न उनके सामने खड़ा हुआ। जहाँ रामकृष्ण परमहंस के पास उन्हें तसल्ली मिली और उन्होंने दक्षिणेश्वर जाने का मन बना लिया। 1885 में रामकृष्ण को गले का कैंसर हो गया और नरेन्द्र और उनके अन्य साथियो ने रामकृष्ण के अंतिम दिनों में उनकी सेवा की।

 

रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया कि मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। रामकृष्ण ने नरेन्द्र को अपने मठवासियों का ध्यान रखने को कहा और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 1886 में रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया। सन 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व्धर्म परिषद् का आयोजन किया गया, जहाँ पर स्वामी विवेकानंद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया।

 

विवेकानंद के शुरुवाती संवोधन सिस्टर एंड ब्रदर्स अमेरिका कहते ही वहां उपस्तिथ विश्व के छह हजार विद्वानों ने लगातार करीब दो मिनट तक ताली बजाई। अगले दिन के सभी अख़बारों ने यह घोषणा की कि विवेकानंद का भाषण सबसे सफल भाषण था, जिसके बाद सारा अमेरिका विवेकानंद और भारतीय संस्कृत को जानने लगा। इससे पहले अमेरिका पर इस तरह का प्रभाव किसी हिन्दू ने नहीं डाला था।

 

विवेकानंद दो साल तक अमेरिका में रहे। इन दो सालो में इन्होने हिन्दू धर्म का विश्ववंधु का सन्देश वहां के लोगों तक पहुंचाया। अमेरिका के बाद स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड गए। वहां की मार्ग्रेट नावेल उनकी फॉलोवर बनी, जो बाद में सिस्टर निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुई। 1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

 

4 जुलाई 1910 को स्वामी विवेकानंद  ने महासमाधि लेकर अपने जीवन का त्याग किया, जिसकी भविश्ववाणी उन्होंने पहले ही कर दी थी कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जिएंगे। अपनी मृत्यु के पहले स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही सम्पूर्ण भारत भ्रमण किया और एक सन्यासी जीवन जिया।

 

अगर विवेकानंद चाहते तो अपनी पूरी जिंदगी अमेरिका या यूरोप के किसी शहर में ऐशोआराम के साथ बिता सकते थे लेकिन उन्होंने अपनी आत्मकथा में कहा है कि मैं एक सन्यासी हूँ , हे भारत देश तुम्हारी सारी कमजोरियों के बावजूद मैं तुम्हे बहुत प्रेम करता हूँ। स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन 12 जनुअरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

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स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रभावित होकर कई महान हस्तियों जैसे निकोलो टेस्ला, नरेंद्र मोदी भी विवेकानंद की जीवनशैली को अपनाया और एक सन्यासी की तरह जीवन जिया। एक इंसान जिसने सारे सांसारिक सुख और वंधनो को तोड़कर स्वयं को वंधन मुक्त किया जिसका एक ही प्रेम था उसका देश।

 

तो यह स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी। हमें उम्मीद है आपको इस लेख “Swami Vivekananda Biography in Hindi | विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद की कहानी” से स्वामी विवेकानंद जी के बारे में बहुत सारी जानकारी और रोचक तथ्य मिले होंगे। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा तो इसे शेयर जरूर करे और असेही महान लोगों की जीवनी पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को सब्सक्राइब करे।

 

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