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सद्कार्य में मन | Sadkarya Mein Man Story in Hindi

सद्कार्य में मन | Sadkarya Mein Man Story in Hindi

Posted on June 18, 2021

 

आज हम आपको जो कहानी सुनाने वाले हैं उसका नाम है सद्कार्य में मन कैसे लगाएँ (Sadkarya Mein Man Story in Hindi) हमें उम्मीद है आपको यह कहानी जरूर अच्छी लगेगी।

 

सद्कार्य में मन

Sadkarya Mein Man Story in Hindi

एक अत्यधिक धनवान व्यक्ति था, मोहनलाल। वह बड़ा ही लालची और कंजूस था। इतना अमीर होने पर भी हर समय उसके मन में और अधिक धन कमाने के विचार छाए रहते। धन ने उसे घमंडी भी बना दिया था। लोगों को नीचर दिखाने में उसे मजा आता था। उम्र के साथ उसे अपनी गलती भी समझ आने लगे। अब वह चाहता था कि सब कुछ अपने बच्चों पर सौंपकर अपना मन सद्कार्य में लगाएँ। लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से वह और अधिक सांसारिक झमेलों में फंसता जाता। वह खुद भी अपने इस आदत से परेशान था।

 

एक दिन अचानक किसी संत से उसका संपर्क हुआ। मोहनलाल ने संत से प्रार्थना की, “महात्मन मुझे सांसारिक झमेलों से मुक्त होकर अपने मन को सद्कार्य में लगाने का कोई उपाय सुझाइएँ।” संत बोले, “अच्छा अपना हाथ दिखाओ वत्स।”

 

संत ने मोहनलाल का हाथ देखा और कहा, “वत्स, मैं तुम्हारी समस्या का समाधान जरूर कर देता लेकिन तुम्हारे पास समय बहुत कम है। आज से ठीक एक महीने बाद तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। इतने कम समय में मैं तुम्हे सांसारिक विचारों से कैसे छुटकारा दिला सकता हूँ! और फिर आवश्यकता ही क्या है? अब  तुम्हे भी तो तुम्हारी तैयारिया करनी होगी।”

 

मोहनलालचिंता में डूब गया। उसने संत से कहा, “चलो समय रहते मालूम तो हुआ कि मेरे पास समय कम है।” अब वह घर और व्यवसाई को ठीक तरह से करने में लग गया। उसने सभी जिम्मेदारियाँ बच्चों को सौंप दी और अब परलोक यानि मरने के बाद दूसरे लोक के लिए पुण्य अर्जन करने की योजनाए बनाने लगा। उसने सोचा कि शायद अभी मैं कुछ पुण्य कर लूँ तो मेरा परलोक सुधर जाएगा। अब वह सभी से अच्छा व्यवहार करने लगा।

 

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एक महीने बाद जब एक ही दिन बचा था तो उसने सोचा, “चलो अब तो कल इस दुनिया से विदा होना ही है तो एक बार संत के दर्शन कर लेता हूँ।” संत ने उसे देखकर कहा, “बड़े शांत नजर आ रहे हो वत्स जबकि तुम्हारी मृत्यु मात्र एक दिन ही शेष है। अच्छा बताओ तो इस बीते एक महीने में तुमने घरगृहस्ती, व्यवसाई आदि में क्या क्या नई योजनाए बनाई?”

 

मोहनलाल का उत्तर था, “महाराज जब मैं इतना समक्ष हूँ तो कैसा भोगविलास और कैसी व्यवसाई। मैंने तो इस समय का उपयोग अधिक से अधिक सद्कार्य करने में किया। बस कल इस दुनिया से विदा होने की तैयारी है। आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ।” संत हंस दिए और कहा, “वत्स, दुनियादारी के झंझट से दूर रहने का मात्र एक ही उपाय है की हर समय ये याद रखो कि मृत्यु निश्चित है और कभी भी हो सकती है। यही सोचकर हर एक समय का सदउपयोग करना चाहिए।”

 

मोहनलाल बोला, “तो क्या महात्मन मेरी मृत्यु कल नहीं होने वाली है?” संत बोला, “नहीं वत्स, हम तो सन्यासी है। हम इन हाथों की लकीरों पर विश्वास नहीं करते है, हम तो कर्मो की भाषा समझते है। तुम अच्छे रस्ते की तरफ जाना चाहते थे इसलिए मैंने तुमसे ऐसा कहा और देखो तुम सांसारिक वंधनो से आसानी से छूट गए। अब तुम सबके बीच रहते हुए भी विलुप्त रहोगे और सद्कार्य में अपना पूरा ध्यान लगा पाओगे।”

 

मोहनलाल ने संत को धन्यवाद दिया। अब उसका जीवन हमेशा के लिए बदल चूका था।

 

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इस कहानी में संत ने बड़े ही आसानी से कितनी गहरी बाद समझा दी। हम सब जानते है कि मृत्यु अटल है, लेकिन फिर भी हम सभी इन सांसारिक वंधनों में बंधे रहते है। हम में से बहुत से है जो यह तो चाहते है कि वह अच्छे कार्य में अपना समय व्यतित करे, लेकिन फिर भी घरगृहस्ती, व्यवसाई इत्यादि इत्यादि के झझटों में फंसे रहते है। हम सभी को इस कहानी से एक अच्छी सिख लेनी चाहिए।

 

आपको यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर अच्छा लगे तो इस कहानी को अपने सभी दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें।

 

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