हमारे आज की इस कहानी का नाम है बूढ़ी परिश्रम का सफेद हंस (Parishram Ka Safed Hans Hindi Story) हमें उम्मीद है आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी।
परिश्रम का सफेद हंस
Parishram Ka Safed Hans Hindi Story
एक किसान था। वह बहुत धनी था। उसके पास खेत, खलिहान, गाय, भैंस, जमीन, घर, मकान इत्यादि की कोई कमी नहीं थी। उसमे बस एक ही कमी थी, वह बहुत आलसी था। उसने अपना सारा काम नौकरों के भरोसे छोड़ रखा था और नौकरों पर भी उसका कोई नियंत्रण नहीं था। उसके आलस और कुप्रवंधन से उसके घर की और खेतों इत्यादि की सारी व्यवस्था गढ़ चुकी थी। उसे हर जगह हानि ही हानि होने लगी। धीरे धीरे वह दरिद्र होने लगा।
एक दिन पास के गाँव से उसका बचपन का मित्र चतुर बनिया आया। चतुर बनिया ने जब उसकी यह स्तिथि देखि तो उसे बहुत दुःख हुआ और वह तुरंत समझ गया कि क्यूंकि मेरा मित्र आलसी है, वह अपने स्वभाव के कारण ही यह हानि उठा रहा है। वो अछि तरह जानता था कि उसका किसान मित्र अपनी आदत बदलेगा नहीं। उसे समझाने के लिए उसने एक बहाना बनाया।
चतुर बनिया अपने मित्र से बोला, “तुम्हारी यह विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है लेकिन मेरे पास तुम्हारी दरिद्रता दूर करने का अच्छा और सरल उपाय है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे बता सकता हूँ।” किसान मित्र ने कहा, “हाँ हाँ मित्र कृपा करके मुझे वह बताओ, मैं उसे अवश्य करूँगा।” चतुर बनिया बोला, “तो सुनो ध्यान से, सब पक्षियों के जागने से पहले मान सरोवर से एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है। जो कोई भी उस हंस के दर्शन कर लेता है उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं रहती है। यह ध्यान रखना कि वहां हंस तड़के सभरे ही आता है और दोपहर होने से पहले लौट जाता है। वहां हंस कब किस जगह मिलेगा वह तुम्हे ही ढूंढना पड़ेगा।” यह कहकर बनिया वापस अपने गाँव चला गया।
किसान ने सोचा कि अरे बाह अगर वह हंस मुझे मिल जाए तो कितना अच्छा होगा! मेरी तो सारी समस्या का समाधान ही हो जाएगा। दूसरे दिन तड़के सभरे हंस की खोज के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले उसे ख्याल आया कि चलो मैं अपने खलिहान में ही ढूंढ लेता हूँ, जहाँ पर अनाज को काटने के बाद रखते हैं।
जब वह खलिहान में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां काम करने वाले दोनों मजदुर अनाज के बड़े बड़े गठरे उठाकर अपने घर ले जा रहे हैं। किसान ने डांटकर पूछा, “यह क्या हो रहा है?” दोनों मजदुर हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहने लगे, “हमें माफ़ कर दीजिए हम दोबारा ऐसा काम नहीं करेंगे।”
खलिहान से निकलकर किसान अपने गौशाला गया। वहां पर उसने देखा कि गौशाला संभालने वाला जो मजदुर था उसकी पत्नी एक बड़ा सा बर्तन लेकर खड़ी है और मजदुर गायों का दूध निकाल रहा है और उस बर्तन में डाल रहा है और उसकी पत्नी लेकर घर जा रही है। उसने तुरंत मजदुर को रोका। मजदुर किसान के पैरों में गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा।
किसान अब वहां से निकलकर अपने खेतों की तरफ चल पड़ा। खेतों पर जाकर उसने देखा कि वहां पर तो कोई मजदुर आया ही नहीं अब तक। जैसे ही सारे मजदुर आए किसान ने उन्हें खूब डांटा। अब से किसान हर रोज सभरे सभरे उठता और सफेद हंस की खोज में खेत, खलिहान, गौशाला इत्यादि इत्यादि का चक्कर लगाकर लौट आता। सारे मजदुर बहुत ईमानदारी से काम करने लगे। धीरे धीरे उसने यहाँ होने वाली चोरी बंद हो और फिर उसे हर जगह लाभ ही लाभ होने लगा। और सोने पर सुहागा यह कि सभरे सभरे घूमने से उसका स्वस्थ भी एकदम अच्छा हो गया।
एक दिन उसका चतुर बनिया मित्र लौट आया। उसने देखा कि किसान की चहरे की रौनक अब लौट आई है। किसान बोला, “हे मित्र तुम्हारा सफेद हंस तो मुझे आज तक नहीं मिला। लेकिन उसकी खोज में मुझे हर जगह लाभ ही लाभ हो रहा है।” चतुर बनिया हंस पड़ा और बोला, “अरे मित्र यह परिश्रम करना ही तो सफेद हंस है।”
परिश्रम यानि कड़ी मेहनत के पंख हमेशा सफेद उजले होते है। जो परिश्रम न करके अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है वह हानि उठाता है और जो कठिन परिश्रम करता है स्वयं नौकरों की भी देखभाल करता है वह लाभ ही लाभ पाता है, साथ ही संपत्ति और सम्मान भी पाता है।
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