Biography of Milkha Singh in Hindi : दोस्तों आज भारत के महान धावक ग्रेट मिल्खा सिंह जी हमारे बीच नहीं रहे। गुरुवार 18 जून 2021 को रात करीब 11:00 pm बजे उनका Covid की बजह से निधन हो गया। 91 साल के मिल्खा सिंह ने अनेको कठिनाइयों का सामना करके सफलता के बुलंदियों को छुया, और अपने अभूतपूर्व योगदान से भारत को कई बार गौरांवित होने का मौका दिया। आइए जानते है मिल्खा सिंह के जीवन के बारे में की कैसे उन्होंने हजार कठिनाइयों के बावजूद सफलता हासिल की, और जिसकी बजह से वह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुए।
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की जीवनी – Biography of Milkha Singh in Hindi
जन्म और बचपन
मिल्खा सिंह जी का जन्म 20 नवंबर 1929 को अभिभाजित भारत के गोविंदपुरा में जो की अब पाकिस्तान में है, एक सिख फॅमिली में हुआ। लेकिन 1947 के भारत-पाकिस्तान के बटवारे की अफरातफरी में उन्होंने अपने माँ-बाप और भाई बहनों को भी खो दिया, और फिर शरणार्थी बनकर ट्रैन से पाकिस्तान से भारत वापस आ गए और दिल्ली में अपने शादीशुदा बहन के घर कुछ दिन रहे। फिर कई दिनों तक शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे। ऐसे भयानक बचपन, जिसमें न उनके रहने के लिए घर था, न ही परिवार का साथ और खाना भी उन्हें जैसा मिला उन्होंने वैसा ही खा लिया। इन सबके बावजूद भी उन्होंने देश के लिए कुछ कर गुजरने की आग थी, इसलिए उन्होंने इंडियन आर्मी में भर्ती होने की थान ली।
1952 में वह सेना की इलेक्ट्रिकल मैकेनिकल इंजीनियर ब्रांच में शामिल होने होने में सफल हो गए। फिर एक दिन सशस्त्र बल के उनके कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ के लिए प्रेरित किया। यह बात मिल्खा सिंह के मन में घर कर गई और तब से वह कड़ी मेहनत से दौड़ की प्रैक्टिस में जुड़ गए और फिर कभी नहीं रुके।
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता। 1958 में टोक्यो एसीएन गेम्स में उन्होंने 200 m. के रेस में गोल्ड मेडल जीता। 1958 में ही टोक्यो एसीएन गेम्स की 400 m. की रेस में उन्होंने फिर गोल्ड मेडल जीता और 1959 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1960 में रोम ओलिंपिक में वह 400 m. की रेस में वह 400 m. में वह 400 मिटर की दौड़ में चौथे स्थान पर थे। भले ही वह मेडल जितने में सफल न हो लेकिन 45 मिनट 43 सेकंड के समय में उन्होंने जो रेस लगाई वह एक विश्व रिकॉर्ड थी, जिसे 40 सालों तक कोई नहीं तोड़ पाया।फिर 1060 में इंटरनेशनल एथिलीट कॉम्पिटिशन हुआ, इसके लिए उन्हें पाकिस्तान जाने का न्योता मिला और बचपन की उस भयानक घटना के बाद वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर वह पाकिस्तान गए और पाकिस्तान के सबसे तेज धवक अब्दुल खली को हराकर गोल्ड़ मेडल जीतकर आए और तभी पाकिस्तान में तत्कालीन राष्ट्रपति आयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख की उपाधि दी।
1962 में उन्होंने जकार्ता एसीएन गेम्स में उन्होंने लगातार 2 बार गोल्ड मेडल जीते। वह 5 बार एसीएन गेम्स में गोल्ड मेडेलिस्ट रहे। पंजाब यूनिवर्सिटी के 67th दीक्षांत समारोह में मिल्खा सिंह जी को उपराष्ट्रपति और पंजाब यूनिवर्सिटी के चांसलर ने उन्हें खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित किया। इस अवार्ड को पाने के बाद मिल्खा सिंह ने कहा कि वह चाहते है कि मरने से पहले कोई ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतकर ले आए। मिल्खा सिंह जी ने कभी हालातो से हार नहीं मानी। ख़राब परिस्तिथियां उनके बुलंद हौसलों के सामने ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। वह गरीबी,असहायता और अनेक कठिनाइयों से रेस में जीत गए और सफलता हासिल की उनकी मेहनत, जज्बे और कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति हम सभी लोगों को प्रेरित करती है।
मृत्यु
मिल्खा सिंह जी Covid-19 से ग्रस्त थे। उन्होंने 18 जून, 2021 को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर (PGIMER) हॉस्पिटल में अंतिम साँस ली।
तो यह थी भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथिलीटस मिल्खा सिंह की जीवनी | Biography of Milkha Singh in Hindi. उम्मीद है आपको हमारा यह लेख जरूर अच्छा लगा होगा। धन्यवाद।
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