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मंदबुद्धि | Motivational Story in Hindi

मंदबुद्धि | Motivational Story in Hindi

Posted on June 26, 2021

दोस्तों, कभी-कभी हमें अपने जीवन में अपने काम से निराशा हाथ लगती है पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम उस काम को छोड़ दे और कोई दूसरा काम शुरू कर दे, इसका मतलब है कि हमें थोड़ी और हिम्मत, और परिश्रम की जरुरत हैऔर ये बात अच्छी तरह से समझने चलिए एक कहानी सुनते है, जिसका नाम है मंदबुद्धि Motivational Story in Hindi.

 

मंदबुद्धि

Motivational Story in Hindi

एक बार एक छात्र विद्यालय में पढता था और विद्लय में उसे सभी मंदबुद्धि कहते थे। उसके गुरुजन भी उससे बहुत नाराज रहते थे, क्यूंकि वह छात्र पढ़ने में बहुत ही कमजोर था। उसमे कोई समझ थी ही नहीं। उसे ठीक से पढ़ना नहीं आता था या जो टीचर पढ़ाते थे उसे ठीक से समझ नहीं पाता था।

 

उसका क्लास में हमेशा उसके मार्क्स ख़राब आते थे। क्लास के दूसरे बच्चे भी उसका बहुत ज्यादा मजाक उड़ाते थे. कभी भी उसका मजाक उड़ाने से चूकते नहीं थे। पढ़ना तो मानो उसके लिए एक सजा जैसी थी। वह जैसे ही क्लास में घुसता तो बच्चे उस पर हँसते थे। यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी कभी-कभी उसका मजाक उड़ा दिया करता था।

 

इस सबसे परेशान होकर उसने एक निर्णय लिया और उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। स्कूल छोड़ने के बाद वह दिनभर इधर उधर भटकता रहता था, समय बर्बाद करता रहता था। एक दिन इसी तरह वह कहीं जा रहा था तो घूमते-घूमते उसे प्यास लगी। उसने इधर उधर जाकर पानी की खोज की।

 

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आखिर में उसे एक कुआँ दिखाई दिया। कुएँ में एक बाल्टी रखी थी तो उसने बाल्टी को कुएँ में डाली और वहां से पानी पिने लगा। अब वह काफी थक चूका था इसलिए पानी पिने के बाद वह वहीं कुएँ के पास बैठ गया। तभी उसकी नजर पत्थर पर पड़े निशान पर पड़ी जिससे कुएँ से बार बार पानी खींचने की बजह से पत्थर पर निशान पड़ गया था।

 

यह देखकर छात्र मन ही मन सोचने लगा कि जब बार बार कुएँ से पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी के निशान बन सकते है, तो लगातार मेहनत करने पर मुझे भी विद्या आ सकती है। मैं भी पढ़ सकता हूँ।

 

उस छात्र ने यह बात मन में बेठा ली और फिर से उसने स्कूल जाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे क्लास के बच्चों और अध्यापकों को उसकी लगन नजर आने लगी। उसकी उसी लगन को देखकर वहां जो अध्यापक थे उन्होंने भी उसका सहयोग करना शुरू कर दिया। तो छात्र ने मन लगाकर बहुत परिश्रम किया और कुछ सालों बाद यह बिद्यार्थी प्रकांड विद्वान वरदराज के नाम से विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध, लघुसिद्धांत और कौमुदी जैसे ग्रंथ की रचना की।

 

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इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हम अपने किसी भी कमजोरी पर जीत हासिल कर सकते है बस जरुरत है कठिन परिश्रम करने की और थोड़ी सी हिम्मत और धैर्य रखने की। अगर हमारे पास यह है तो हम अपनी लाइफ में कुछ भी कर सकते है, तो अगर कभी भी आपके लाइफ में परेशानी आए तो आपको डरना नहीं है और न ही घबराना है, बस हिम्मत से आगे बढ़ते रहिए।

 

मुझे उम्मीद है आपको यह कहानी जरूर अच्छी लगी होगी, कहानी अच्छी लगे तो कमेंट करके जरूर बताए। धन्यवाद।

 

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