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पांच पाप की कहानी | Five Sins Story in Hindi

पांच पाप की कहानी | Five Sins Story in Hindi

Posted on June 1, 2021

पांच पाप की कहानी  Five Sins Story in Hindi

 

पांच पाप की कहानी

यह कहानी है एक छोटी सी प्यारी सी लड़की की, जिसके पिता थे एक ब्राह्मण पंडितजी। उस लड़की ने देखा कि उसके गाँव के लोग बहुत ख़ुशी से कहीं जा रहे हैं तो उसे पता चला कि वह सब एक दिगंबर मुनिराज के दर्शन के लिए जा रहे है। उसने तो कभी दर्शन नहीं किए थे तो वह भी बहुत उत्सुक हो गई कि चलो देखते है दिगंबर मुनिराज कौन होते है, कैसे होते है। यह सोचकर वह भी उन सबके साथ जाने लगी।

 

जब वह वहां गई तो उसने देखा कि वह मुनिराज पांच पाप के बारे में बता रहे थे। उसे पता ही नहीं था कि पाप क्या होता है। तो महाराज ने बताया कि पांच ख़राब आदतें होती है या पांच पाप होते है, जिन्हे हमें बिलकुल नहीं करना चाहिए। क्यूंकि अगर हम इन पापों को करते है तो बहुत ही बुरा कर्म हमारे जीवन में आ जाते है और हमें उसके लिए सजा मिलती है।

 

महाराज फिर उन पापो के नाम बताने लगे और वह थे हिंसा, झूट, चोरी, कुशील और परिग्रह। हिंसा मतलब किसी को मारना या उसे दुःख देना, झूट मतलब सच नहीं बोलना, चोरी मतलब चुपके से बिना पूछे किसी की कोई चीज उठा लेना , कुशील का मतलब किसी के लिए मन में ख़राब अनुभव रखना और परिग्रह का मतलब होता है लोभी होकर बहुत सारी चीजे इकट्ठी करते रहना और कहना कि मुझे और चाहिए और चाहिए।

 

तो महाराज ने बताया कि इन पांच ख़राब आदतों को त्याग करने का नियम लेना चाहिए, वादा करना चाहिए। अब यह बातें सुनकर उस लड़की को लगा कि महाराज तो बहुत अच्छी बातें बता रहे हैं मुझे भी एक अच्छा इंसान बनना है इसलिए आज से मैं भी वादा करती हूँ कि मैं बिलकुल भी इन पांचो पापो को नहीं करुँगी।

 

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कुछ समय बाद वह बहुत उत्सुकता के साथ अपने घर आई। उसने अपने पिताजी को बताया कि मैंने आज यह पांचो पाप न करने का नियम लिया है। नियम की बात सुनकर उसके पिताजी बहुत गुस्सा हो गए और बोले, ‘तुमने ऐसे नियम क्यों लिए? तुम तो बहुत छोटी हो।” पर लड़की बोली, “पिताजी मैंने वादा किया है कि मैं एक अच्छी लड़की बनूँगी इसलिए तो मैंने यह नियम लिए है। और अगर आप चाहते हो कि मैं इन नियमों को तोड़ दूँ तो आप मेरे साथ महाराज के पास चले, मैंने उन्ही के पास यह नियम लिए थे और अब उन्ही के पास यह नियम तोडूंगी।”

 

फिर उसके पिताजी उसे लेकर चल पड़े। रास्ते में जाते-जाते उन्होंने देखा कि बहुत सारे सिपाही मिलकर एक इंसान को पिट रहे हैं और उसे मार ही डालने वाले थे तो बिटिया ने उसके पिताजी से पूछा, “पिताजी इसे ऐसे सजा क्यों दी जा रही है?” उसके पिताजी ने कहा, “उसने अपने मित्र को मार दिया है, उसने हिंसा की है इसलिए इसे सजा मिल रही है।” फिर उनकी बेटी बोली, “पिताजी देखिए, किसी को मारने से, दुःख देने से हिंसा कहलाती है ओस इससे कितनी बुरी सजा मिलती है, है न? इसलिए तो मैंने यह नियम लिया है।” उसके पिताजी बोले, “हाँ यह नियम तो अच्छा है। ठीक है अब हम बाकि सारे नियम तोड़ने के लिए महाराज के पास चलते है, तुम हिंसा न करने का नियम ले लो।”

 

अब वह आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक इंसान के जिव को बहुत सारे लोग मिलकर काट रहे है। उसने उसके पिताजी से कहा कि वह लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? उसके पिताजी बोले, “वह लोग इसके जिव को इसलिए काट रहे हैं कक्यूंकि इसने झूट बोला है।” फिर उसके बेटी ने बोला, “देखा पिताजी सच बोलना कितनी अच्छी बात होती है और झूट बोलने से कितनी सजा मिलती है, अब मैं यह नियम भी रखूंगी।” उसके पिताजी ने कहा, “ठीक है।”

 

थोड़ा आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक इंसान को कुछ सिपाही मिलकर जेल में डाल रहे थे और उसे चैन से बांधकर रखे थे। उसके पिताजी बोले, “इसने चोरी की है इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है।’ उसकी बेटी बोली, “देखा पिताजी चोरी करने से कितनी बुरी सजा मिलती है और आगे इसके लिए हमें नर्क में भी जाना पड़ सकता है और वह तो एक बहुत बुरी जगह होती है इसलिए मैंने चोरी न करने का भी नियम लिया।” उसके पिताजी बोले, ” ठीक है तुम यह नियम भी रख लो।”

 

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अब वह थोड़ा आगे गए और देखा कि एक इंसान के हाथ और पैरों को लकड़ी से बांधकर रखा है और कुछ लोग उसके ऊपर पत्थर फेंक रहे है। उसके पिताजी ने कहा कि इसने कुशील किया है मतलब किसी के लिए ख़राब भावनाएं रखी है अपने मन में, इसलिए इसे इतना दुःख मिल रहा है।” तो बेटी ने बोला, “पिताजी कुशील का ही तो त्याग किया मैंने, क्या यह नियम लेना गलत है?” पिताजी बोले, “नहीं, यह तो ठीक किया।”

 

इसके बाद दोनों और आगे चलने लगे और देखा की एक बहुत बीमार इंसान को हॉस्पिटल ले जा रहे थे तो पिताजी ने उसे बताया कि यह इंसान तो बहुत लोभी था। इसने लोभ में आकर बहुत परिग्रह इकट्ठा कर लिया है और अब उसके बचाव के लिए वह हर वक्त परेशान रहता है की कोई उसे चुरा न ले इसलिए बहुत से परेशानी के कारन वह बीमार हो गया है। ऐसे इंसान को लोभी कहते है और वह जीवन भर दुःख उठाता है। बेटी ने बोला, “पिताजी मैंने भी तो यही नियम लिया कि मैं परिग्रह नहीं करुँगी, जो  मेरी चीजे है बस उसी को इस्तेमाल करुँगी तो मैंने क्या गलत किया?” पापा बोले, “यह भी सही है।” इस प्रकार उसने पांचो पापो के नियम पुरे कर लिए। उसके पिताजी भी इस बात से सहमत हो गए।

 

तो आपको यह कहानी “पांच पाप की कहानी | Five Sins Story in Hindi” कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर अच्छा लगे तो शेयर जरूर करे।

 

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