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बूढ़ी माँजी की पोटली | Story in Hindi

बूढ़ी माँजी की पोटली | Story in Hindi

Posted on June 13, 2021

हमारे आज की इस कहानी का नाम है बूढ़ी माँजी की पोटली (Budhi Maaji Ki Potli Story in Hindi) हमें उम्मीद है आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी।

 

बूढ़ी माँजी की पोटली

Budhi Maaji Ki Potli Story in Hindi

एक बूढ़ी माँजी थी। उसका कोई रिश्तेदार नहीं था। वह अकेली रहती थी। एक बार उनको तीर्थ यात्रा के लिए जाना था। उनके पास जीवन भर की कुछ जमापूंजी कुछ गहने रूपए। थे उन्होंने सोचा तीर्थ यात्रा पर लेकर जाऊंगी तो चोरी हो सकता है और यहाँ पर किसी को देकर जाऊंगी तो वह मेरा धन हड़प सकते है।

 

उनके कस्बे के बाहर एक झोपड़ी में एक फ़क़ीर बाबा रहते थे। वह कुछ दिन पहले ही वहां आए थे। वह धन, रूपए, पैसे, गहने आदि को हाथ भी नहीं लगाते थे। यहाँ तक की कोई उनसे मिलने जाता तो भी वह उनसे कोई भेट स्वीकार नहीं करते। माँजी ने सोचा कि उनकी जमापूंजी वह उनके पास सुरक्षित रख देंगे।

 

माँजी अपनी पूंजी एक पोटली में भरकर फ़क़ीर के पास लेकर गई और उनसे सहायता मांगी। फ़क़ीर बोला, “देखो माँजी, आप तो जानती होगी कि मैं धन इत्यादि को हाथ नहीं लगाता हूँ। आप असहाय लग रही हो इसलिए मैं आपकी मदद भी करना चाहता हूँ। आप चाहो तो इस झोपडी में जहाँ चाहो छुपा दो।”

 

बूढ़ी माँजी खुश हो गई। उन्होंने झोपडी के अंदर एक कोने में गड्ढा खोदा और अपनी पोटली वहां छुपा दी। उस फ़क़ीर ने  देख लिया कि माँजी ने पोटली कहाँ छुपाई है। माँजी निश्चिंत हो गई और तीर्थ यात्रा के लिए चली गई।

 

तीन महीने बाद, जब वह यात्रा से लौटी तो फ़क़ीर बाबा के पास अपनी पोटली लेने गई। फ़क़ीर बोला, “धन! कैसा धन? कैसी पोटली?” माँजी चौंक गई। उन्होंने याद दिलाया कि तीन महीने पहले तीर्थ यात्रा से जाने से पहले मैंने अपनी सारी जमापूंजी पोटली में डालकर आपकी झोपडी में एक गड्ढा खोदकर छुपा दिया था।

 

फ़क़ीर मुँह बनाते हुए बोला, “ओह हो मैं तो धन को हाथ भी नहीं लगाता हूँ। तुमने जहाँ गाढ़ी है खुद ही जाकर निकालो।” मांजी झोपडी में गई और जिस जगह पोटली छुपाई थी वहां गढ्डा खोदकर देखा। लेकिन बूढ़ी माँजी को पोटली नहीं मिली। माँजी घबरा गई। उन्होंने इधर उधर देखा पर पोटली कहीं भी नहीं थी।

 

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जब उन्होंने फ़क़ीर से पूछा तो फ़क़ीर गुस्से से आग बबूला हो गया और बोला, “मैं खुदा की हिफाजत करने वाला बंदा हूँ, मुझे इन सब सांसारिक चीजों के बारे में मत पूछो। तुम यहाँ से चली जाओ और मुझे शांति से रहने दो।” बूढ़ी माँजी रुँआसी हो गई। उदास और भारी मन से वह जाकर सोचने लगी कि वह क्या करें? उस पोटली में उनकी सारी जमापूंजी थी। अब वह क्या करें?

 

उनके पड़ोस में एक चतुर बनिया रहता था। माँजी ने सारी बात उसे बताई। चतुर बनिया तुरंत समझ गया कि यह एक ढोंगी फ़क़ीर है। उसने एक युक्ति बनाई। कुछ हीरे-जवाहरात एक छोटे बक्से में भरे और माँजी के साथ पाखंडी फ़क़ीर की झोपडी के पास गया। उसने माँजी को एक पेड़ के पीछे खड़े रहने को बोला, “मैं फ़क़ीर के पास जाऊँगा, आप यहां से नजर रखना। जब में दूसरी बार पाखंडी फ़क़ीर को प्रणाम करूँ तब आप वहां आ जाना।” ऐसा कहकर वह पाखंडी फ़क़ीर के पास गया।

 

चतुर बनिया ने पाखंडी फ़क़ीर को प्रणाम किया और उसके पास बैठ गया और बोला, “फ़क़ीर बाबा! मैंने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है कि आप धन को हाथ भी नहीं लगाते। आज मैं आपसे सहायता मांगने आया हूँ। फ़क़ीर ने बनिया के हाथ में बक्सा देख लिया था। अपने लालच को छुपाते हुए वह फ़क़ीर बोला, “क्या सहायता चाहते हो बेटा? मैं तुम्हे सहायता करने का वचन देता हूँ।”

 

बनिया बोला, “मेरा भाई बहुत बीमार है। वह दूसरे शहर में रहता है और मुझे उसे लेने जाना है। मेरे पास कुछ हीरे जवाहरात है। किसी और के पास यह सुरक्षित नहीं रह सकते। आप इन्हे अपने पास रख लीजिए न?” पाखंडी फ़क़ीर अपना लालच छुपाते हुए बोला, “देखो भाई मैं तो हाथ लगाऊंगा नहीं तुम खुद इस धन के बक्से को झोपडी के किसी भी कोने में जहाँ चाहे वहां छुपा दो।” बनिया बोला, “बाह फ़क़ीर बाबा इतने हीरे जवाहरात देखकर भी आपका लालच नहीं आया!” यह कहकर उसने दूसरी बार प्रणाम किया।

 

बूढ़ी मांजी इस इशारे को समझ गई और वह झोपडी की तरफ आने लगी। उसे दूर से आता देख ढोंगी फ़क़ीर बाबा डर गया कि कहीं यह बुढ़िया मेरा भांडा न फोड़ दे। इसलिए उसने दूर से ही बूढ़ी मांजी को आवाज लगाकर बोला, “अरे मांजी! आपकी धन की पोटली तो किसी और को दूसरे कोने में गड्ढा खोदते समय मिली। जाओ जाओ उस कोने में गढ़ी हुई है निकाल लो।”

 

बूढ़ी माँजी ने उस जगह खोदा तो उसे अपनी पोटली वहां मिल गई। उसने फ़क़ीर को धन्यवाद दिया और चली गई। फ़क़ीर बनिया को बोला, “देखा बेटा इस बुढ़िया का धन भी मेरा पास सुरक्षित रहा न। तुम चिंता मत करो तुम्हारा धन भी सुरक्षित रहेगा। जहाँ तुम्हारा मन हो वहां बक्सा छुपा दो।”

 

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तभी बनिया का नौकर वहां आया और बताया कि बनिया का भाई खुद ही उनके गाँव आ गया है। बनिया पाखंडी फ़क़ीर को बोला, “धन्यवाद बाबा। अब मुझे अपना धन छुपाने की कोई आवश्यकता नहीं है।” यह कहकर बनिया वहां से चला गया। पाखंडी फ़क़ीर ने अपना सिर पिट लिया। बुढ़िया की पोटली भी गई और बनिया का बक्सा भी गया।

 

इस कहानी से हमें दो शिक्षा मिलती है –

  1. किसी भी अनजान व्यक्ति पर, चाहे वह किसी भी भेस में हो आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए, जैसे बुढ़िया ने पाखंडी फ़क़ीर पर किया।
  2. कोई चालाकी और धूर्ता से आपको नुकसान पहुंचाए तो उसी की भाषा में उसे जवाब देना चाहिए, जैसा बनिया ने फ़क़ीर को दिया।

 

दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर अच्छा लगे तो इस कहानी को अपने सभी दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें।

 

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