दोस्तों हमारे आज की इस कहानी का नाम है अच्छे व्यवहार का प्रभाव (Hindi Story) हमें उम्मीद करते हैं कि आपको यह कहानी जरूर पंसद आएगी।
अच्छे व्यवहार का प्रभाव
Acche Vyavhar Ka Prabhav Hindi Story
एक गाँव में एक किसान रहता था। उसका नाम था शेर सिंह, यथा नाम तथा व्यवहार। शेर जैसा भयंकर और अभिमानी, हर थोड़ी सी बात पर लोगों से लड़ाई करना, गाँव के लोगों से सीधे मुँह बात तक नहीं करता था। न तो वह किसी के घर जाता था और न ही रास्ते में कोई मिल जाता तो नमस्कार करता था। गाँव के किसान भी उसे अहंकारी से उससे बात नहीं करते थे।
उसी गाँव में दयाराम नाम का एक किसान आकर रहने लगा। दयाराम की जैसा नाम वैसा व्यवहार। बहुत सीधा साधा और भला आदमी। दयाराम सबसे विनम्रता से बात करता था। सबकी कुछ न कुछ सहायता किया करता था। धीरे धीरे गाँव वाले उसका आदर करने लगे। अपने कामो में उसकी सहायता लेने लगे। दयाराम को एक दिन कहा, “भाई दयाराम, तुम कभी शेर सिंह के घर मत जाना, उससे तो दूर ही रहना। वह बहुत झगड़ालू है।” दयाराम ने हसंकर कहा, “शेर सिंह ने अगर मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूंगा।”
दयाराम की बात सुनकर गाँव वाले हंसने लगे। क्यूंकि वह जानते थे कि दयाराम इंसान तो क्या एक चींटी तक को नहीं सकता। झगड़ा करना तो बहुत दूर वह किसी से ऊँची आवाज में बात तक नहीं कर सकता था। लेकिन यह बात किसी तरह शेर सिंह तक पहुंच गई। शेर सिंह गुस्से में लाल पीला हो गया। उसी दिन से उसने दयाराम से झगड़ा करने की पूरी कोशिश चालू कर दी।
शेर सिंह ने एक दिन दयाराम के खेत में बैल छोड़ दी। बैल उसका फसल खा गया। दयाराम ने चुपचाप बैल को खेत से बाहर निकाल दिया। शेर सिंह ने दयाराम के खेत में आने वाली पानी की नाली तोड़ दी। पानी बहने लगा। दयाराम ने जाकर चुपचाप नाली को ठीक कर दिया। इसी तरह शेर सिंह बार बार दयाराम का नुकसान करता रहा और दयाराम चुपचाप जाकर उसे ठीक कर देता।
एक बार दयाराम के घर पर उसके किसी रिश्तेदार ने बेहद स्वादिष्ट खरबूजे भेजे। दयाराम ने वह खरबूजे पुरे गाँव में बटवाएं। शेर सिंह के घर पर भी भेजा। लेकिन शेर सिंह ने अहंकार से अपमानित करते हुए कहा, “मैं भूख नंगा नहीं हूँ, मैं दुसरो का दान नहीं लेता।” इसी तरह दिनचर्या चलती रही।
वर्षात की ऋतू आई। शेर सिंह एक गाड़ी में अनाज रखकर दूसरे गाँव में बेचने जा रहा था। रास्ते में एक नाले के कीचड़ में उसकी गाड़ी फंस गई। शेर सिंह की बैल कमजोर थी। वे गाड़ी को कीचड़ में से नहीं निकाल पा रहे थे। गाँव वालो तक जब यह बात पहुंची तो वे लोग बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा, “बहुत अच्छा हुआ। अब पड़े रहने दो शेर सिंह को असेही। हमेशा गाँव वालो को परेशान करता रहता है और उनसे लड़ता रहता है।” लेकिन जब दयाराम को यह बात पता चली तो वह अपने गाय को लेकर शेर सिंह के पास चल पड़ा।
गाँव वालो ने उसे बहुत रोका, “दयाराम, शेर सिंह ने तुम्हारा इतना नुकसान किया है, तुम तो कह रह थे कि अगर शेर सिंह तुमसे लड़ेगा तो तुम उसे मार डालोगे। अब तुम उसकी सहायता करने क्यों जा रहे हो?” दयाराम बोला, “भाइयों तुम कल सुबह देखना, मैं उसे सच में आज मार डालूंगा।”
जब शेर सिंह ने दयाराम को बैग लेकर आते देखा तो बड़ा ही घमंड से बोला, “तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ, मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए।” दयाराम बोला, “तुम्हारे ,मन में आए तो मुझे गाली दो और मन आए तो मुझे मारो लेकिन इस समय तुम मुसीबत में हो, तुम्हारी गाड़ी फंसी हुई है और रात होने वाली है, वर्षात का समय है मैं इस समय तुम्हारी बात नहीं मानूंगा।”
दयाराम ने शेर सिंह के बैलों को खोला और अपने बैल लगा दिए। बैल ने उस मजबूत गाड़ी खींचकर नाले से बाहर निकाल दिया। शेर सिंह अपने गाड़ी लेकर घर चला गया। उसका मन उसे कचोटने लगा। वह सोचने पर मजबूर हो गया कि वह गाँव वालो से कैसे व्यवहार कर रहा है। उसी दिन से उसका स्वभाव बदल गया। वह लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने लगा और वह स्वयं लोगों को कहता था दयाराम ने सचमुच मुझे मार डाला। अब मैं वह पहले वाला क्रूर और अभिमानी शेर सिंह नहीं रहा।
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