दोस्तों आज मैं आपको जो कहानी सुनाने वाली हूँ उसका नाम है बंद मुट्ठी लाख की (Band Mutthi Lakh Ki Hindi Story) उम्मीद करते है आपको यह कहानी पसंद आएगी।
बंद मुट्ठी लाख की
Band Mutthi Lakh Ki Hindi Story
एक राज्य के राजा ने घोषणा की आने वाले पूर्णिमा पर नगर के सत्यनारायण मंदिर में पूजा करने जाएगा। जब मंदिर के पुजारी को यह पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। आखिर राज्य का राजा आने वाला था तो उसने सोचा कि मंदिर की साफ-सफाई, रंग-रोगन, सजावट आदि आदि करवा देनी चाहिए। इन सब में 20 हजार का खर्चा आने वाला था। इतने पैसे उसके पास नहीं थे, पर उसने सोचा, “इतना बड़ा और महान राजा आने वाला है, मुझे मंदिर की साफ-सफाई, रंग-रोगन, सजावट भी करानी चाहिए पर मेरे पास तो इतने पैसे नहीं है। एक काम करता हूँ साहूकार से उधार ले लेता हूँ। आखिर राजा दक्षिणा भी बहुत अच्छी देगा। राजा के जाने के बाद उधार चूका दूंगा।”
पुजारी ने साहूकार से 20 हजार रूपए उधार लिए और मंदिर की साज-सजावट, रंग-रोगन इत्यादि इत्यादि का काम चालू कर दिया। मंदिर चगमगा रहा था। पूर्णिमा के दिन, राजा पूजा करने आया। पूजा बहुत ही अच्छी तरह से सम्पूर्ण हुआ। राजा ने पूजा की थाली में एक बंद लिफाफे में दक्षिणा चढ़ा दी।
राजा के जाने के बाद पुजारी ने जब वह लिफाफा खोला तो पुजारी ने देखा कि राजा ने दक्षिणा में सिर्फ सौ रूपए चढ़ाए। सौ रूपए देखकर पुजारी नाराज भी हुआ। उसे लगा था कि जब राजा मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी, पर सौ रूपए देखकर वह बहुत दुखी हुआ कि बाकि सब तो ठीक है पर जो साहूकार से उसने कर्ज लिया है वह कैसे चूका पाएगा।
सोचते-सोचते उसे एक उपाय सुझा। दूसरे दिन उसने पुरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि राजा ने जो कुछ भी पूजा के बाद दक्षिणा में चढ़ाया है वह सब वह नीलाम करेगा। नीलामी का समय उसने सुबह 9-10 बजे तक का रखा और यह नीलामी एक हप्ते तक चलने वाली थी। राजा का दिया हुआ लिफाफा उसने एक सुंदर से थाली में सजाकर मंदिर में रख दिया। जो भी दर्शन करने आता, वह बड़ी ही उत्सुकता से लिफाफे को देखता। लेकिन पुजारी उसे हाथ नहीं लगाने देता था। लोगों ने सोचा कि राजा ने चढ़ाया है तो जरूर कुछ अमूल्य वस्तु होगी। लोग उसके लिए नीलामी की बोली लगाने लगे। 5 हजार, 10 हजार, 20 हजार करते-करते 50 हजार रूपए तक बोली पहुंच गई।
नीलामी की यह बात राजा के कानो तक पहुंची। राजा ने सोचा, “यह क्या पुजारी मेरे दिए गए दक्षिणा को नीलाम कर रहा है!” उसे अपनी गलती का अहसास भी हुआ, उसे लगा कि अगर कोई नीलामी में वह लिफाफा खरीद लेता है और उसे खोलकर देखता है तो राजा का क्या सम्मान रह जाएगा कि राजा ने सौ रूपए दक्षिणा में चढ़ाए।
राजा ने तुरंत सिपाहियों को भेजकर पुजारी को बुलवा भेजा। पुजारी आया तब राजा ने पूछा, “पुजारी जी क्या आप जानते हो उस लिफाफे में मैंने क्या दक्षिणा चढ़ाई थी?” पुजारी ने कहा, “नहीं महाराज मैंने उसे खोलकत नहीं देखा है। आपने अवश्य ही कोई कीमती वस्तु चढ़ाई होगी। मैंने सोचा कि अगर मैं उसे खोलूंगा तो मेरे मन में लालच आ जाएगा और मैं तो ठेरा पुजारी, कोई भी कीमती वस्तु मेरे किस काम की? कीमती वस्तु मेरे किसी उपयोग की भी नहीं है तो इसलिए मैंने सोचा कि मैं इसे नीलाम कर देता हूँ और नीलामी के जो भी पैसे आएंगे वह मंदिर में और सद्कार्य में लगा दूंगा।”
राजा ने पुजारी से कहा, “ठीक है पुजारी जी अब आपको नीलामी आगे बढ़ाने की जरुरत नहीं है। मैं आपको उस लिफाफे के नीलामी के 1 लाख रूपए दूंगा, आप वह लिफाफा मुझे लेकर दे दें।” पुजारी ने कहा, “जैसी महाराज की आज्ञा। महाराज की जय हो।”
तो देखा दोस्तों पुजारी ने कितनी चतुराई से राजा से अपनी पूरी दक्षिणा भी ले ली लेकिन साथ ही साथ उसने बड़ी ही जिम्मेदारी से राजा को यह कहकर कि उसने लिफाफा नहीं खोला राजा को शर्मिंदा होने से भी बचा लिया। साथ ही उसने जब लिफाफा बंद रखा तो लोगों ने भी सोचा कि राजा ने कोई कीमती चीज चढ़ाई होगी इसलिए वह बढ़चढ़कर नीलामी में हिस्सा ले रहे थे। और इसलिए कहा जाता है बंद मुट्ठी लाख की।
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