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गज कुमार मुनि की कहानी | Gaj Kumar Muni Story in Hindi

गज कुमार मुनि की कहानी | Gaj Kumar Muni Story in Hindi

Posted on June 1, 2021

गज कुमार मुनि की कहानी  Gaj Kumar Muni Story in Hindi

आज की कहानी में हम बात करेंगे गज कुमार मुनि की बारे में कि और जानेंगे कि कैसे गज कुमार मुनिराज ने कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी समता भाव रखकर अपने आत्मा का कल्याण किया। तो चलिए जानते है गजमु कुमार मुनि की कहानी।

 

गज कुमार मुनि की कहानी

यह कहानी है श्री कृष्ण की छोटे भाई गज कुमार की। श्री कृष्ण उन्हें बहुत प्यार करते थे। गज कुमार बहुत ही सुंदर थे, जो भी उन्हें देखता वह देखता ही रह जाता। जब वह बड़े हुए तो उनकी सगाई बहुत सारे राजकन्याओं के साथ हो गई। श्री कृष्ण ने गज कुमार के विवाह के लिए सोमा सेठ के बहुत सुंदर बेटी को भी चुना और उनके विवाह की तैयारियां चल रही थी।

 

सभी लोग बहुत खुश थे। नेमिनाथ भगवान भी श्री कृष्ण की निकट संबंधी थे और वह 22 वें तीर्थकर थे। उस समय उनका समोसरण द्वारका नगरी में आया। उस नगरी में सभी लोग बहुत खुश हुए  और सोचने लगे कि अब हमारे आत्मा का भी कल्याण हो और नेमिनाथ भगवान के दर्शन करने समोसरण में पहुंचे।

 

यह देखकर गज कुमार भी अपने रथ में बैठकर बड़ी ही ख़ुशी से नेमिनाथ नेमिनाथ भगवान की वंदना करने गए। समोसरण में नेमिनाथ भगवान बारह सभाओं से घिरे थे। गज कुमार ने नेमिनाथ भगवान को नमस्कार किया और श्री कृष्ण के साथ सभा में बैठ गए। भगवान नेमिनाथ ने उस सभा में जन्म और मरण के चक्कर से कैसे निकला जाए इसके बारे में बताया। उन्होंने बताया कि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र से ही इस चक्र से निकला जा सकता है।

 

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इसके बाद श्री कृष्ण ने भगवान से तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अर्ध चक्रवर्ती, बलभद्र और प्रतिनारायण के चरित्र को बताने के लिए निवेदन किया। नेमिनाथ भगवान ने सबके कल्याण के लिए उपदेश दिया। यह सुनकर गज कुमार के मन में बहुत अच्छे भाव आने लगे। उन्हें जन्म और मरण के चक्र से डर लगने लगा। उनके मन में यह विचार आया की शायद नेमिनाथ भगवान मुझे मोक्ष ले जाने के लिए ही तो पधारे है। उन्होंने सोचा कि उन्होंने तो आज तक कभी मोक्ष का प्रयास ही नहीं किया इसलिए आज से ही वह दीक्षा ले लेंगे। ऐसा सोचकर उन्होंने माता-पिता, राजपाठ तथा राजकन्याओं को छोड़कर भगवान से दीक्षा ले ली।

 

सभी जगह यह बात फ़ैल गई कि गज  कुमार मुनि बन गए हैं। जिन राजकन्याओं के साथ गज कुमार की सगाई हुई थी उन्होंने ने भी अपने माता-पिता से कह दिया कि वह भी अब अपने आत्मा का कल्याण करेंगे और आगे बढ़ेगी मोक्ष मार्ग में और उन सबने आरिका दीक्षा ले ली। उन्ही राजकन्याओं में से एक के पिता का नाम था सोमा सेठ। अपने बेटी के आरिका दीक्षा लेने से वह बहुत दुखी हुए और गुस्सा हो गए।

 

एक दिन गज कुमार मुनि रात में ध्यान मग्न थे। उसी समय सोमा सेठ वहां आए और मन में सोचने लगे “इस गज कुमार की बजह से मेरी बेटी आरिका बन गई है, अब न जाने कितने दुखो को सहन करेगी। अगर इसे साधु ही होना था तो इसने मेरी बेटी के साथ सगाई की ही क्यों? अब तो मैं इसे मजा चखाऊंगा। यह सोचते हुए उन्होंने गुस्से से मुनिराज  के सिर पर मिट्टी बांधकर उसमे अग्नि जला दी।

 

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थोड़ी ही देर में मुनिराज का सर जलने लगा और साथ ही उनका शरीर भी जलने लगा, गरम होने लगा। लेकिन गज कुमार के शरीर में तो जरा भी हलचल नहीं हुई। वह तो अभी भी पर्वत की तरह एकदम स्थिर थे। वह अपने ध्यान से भटने नहीं। वह अपनी आत्मा के स्वरुप में लीन थे। वह तो इस चित्तन में लगे रहे की मेरी आत्मा तो चैतन्य में है, मैं शुद्ध आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा नहीं, जो जल रहा है वह शरीर है आत्मा नहीं, शरीर और आत्मा तो दोनों भिन्न है अलग-अलग है। इस तरह गज कुमार मुनिराज ने उसी दिन बहुत ही शुद्ध ध्यान, जिसे की शुक्ल ध्यान कहते है उससे अपने कर्मो का नाश किया और उन्होंने मोक्ष को प्राप्त कर लिया।

 

आपको गज कुमार की यह कहानी “गज कुमार मुनि की कहानी | Gaj Kumar Muni Story in Hindi” कैसी लगी निचे कमेंट में जरूर बताएं और अगर आपको यह कहानी अच्छी लगे तो इसे शेयर भी जरूर करे।

 

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