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Story of Tulsidas in Hindi

तुलसीदास की कहानी | Hindi Story of Tulsidas

Posted on May 28, 2021

 

तुलसीदास की कहानी Hindi Story of Tulsidas

 

तुलसीदास की कहानी

एक समय की बात है, गंगा के तट पर स्थित सोरेन गाँव के निवासी आत्माराम दुबे परेशान घर के बाहर बैठे थे, उनकी बीवी बच्चे को जन्म दे रही थी। इंतजार की घड़ियां खत्म हुई, जब दाई चुनिया दौड़ते-दौड़ते बाहर आई। दाई ने ऐसी बुरी खबर सुनाई कि दुबे तो सर ही पकड़कर बैठ गए। दाई हड़बड़ाते हुई बोली, “पंडित जी बेटा हुआ है, पर आपकी बीवी बेहोश हो गई है।”

 

दुबे की बीवी ने बेहोशी से मौत का सफर चंद मिंटो में ही तय कर लिया और वह पीछे छोड़ गई एक नन्हा-मुंहा बेटा। इस घटना के बाद एक ज्योतषी को बुलवाया गया और उसने एक भविश्ववाणी की। उसके अनुसार दुबे का बेटा शैतान है, जो दुबे को भी खा जाएगा और इसलिए उस बच्चे को घर से बाहर फेंक देना चाहिए।

 

दाई चुनिया को यह गवारा नहीं था इसलिए वह बच्चे को अपने घर ले गई, हालाँकि उसके पति और सास ने उस बच्चे को लेकर काफी खड़ीखोटी सुनाई और यह कहा कि यह बच्चा मनहूस है। पर चुनिया ने उनकी एक नहीं सुनी, बच्चे को लाढ देती ही रही। दुबे की मौत हो गई और अफसोस चुनिया भी सांप के काटने से चल बसी।

 

चुनिया के पति का शक यकीन में बदल गया और उसने इस बच्चे को घर से निकाल दिया। बेचारा पेड़ के निचे सोया, दूध और रोटी के लिए भीख मांगी पर सबने उसने मनहूस समझकर धितकार दिया। आखिर में वह गाँव के मंदिर में पहुंचा, अब वहां उसकी मुलाकात संत नरहरिदास से हुई।, जिन्होंने उस पर तरस खाकर उससे कहा, “देखो बेटे, राम हम सबका ध्यान रखते हैं, वह अमर है, तुम उनकी शरण में क्यों नहीं जाते?”

 

बच्चा भगवान राम के बारे में जानने के लिए उत्सुक था। संत उसे अपने आश्रम में ले गए और उसे राम नाम का पाठ सिखाया और यहीं उसका नाम पड़ा रामबोला। संत जी ने उसे रामायण की गाथा भी सुनाई और यह बताई कि कैसे भगवान ने 14 वर्ष का वनवास काटा, गरीबों और कमजोरो की मदद की। इस मसीहे ने रामबोले को पढ़ना-लिखना भी सिखाया और आखिर में उसे आचार्य श्रेष्ठ सनातन के साथ काशी ले गए, वह चाहते थे कि रामबोला इस विद्वान से आगे की शिक्षा पाए।

 

सनातन बाबा ने रामबोला को वेदों का ज्ञान दिया और बाकि धार्मिक किताबें पढाई। गुरुदक्षिणा में उन्होंने मांगते हुए कहा, “जाओ और भगवान राम के बारे में लोगों को बताओ।” इसके बाद रामबोला अपने गाँव सोरेन लौटे और वहां पर राम के नाम का सत्संग करने लगे। लोग बड़ी तादाद में उसके ज्ञान की गंगा में नहाने आते थे। बस इसी तरह रामबोला बना तुलसीदास।

 

तुलसीदास की चर्चा दूर-दूर तक हुई। उसके किस्से सबके कानो में पड़े। असेही बद्री गाँव के दीनबंधु पाठक को भी उनके बारे में पता चला। उन्होंने अपने बेटी के लिए इस ज्ञानी को चुना। फिर तुलसीदास के साथ हुई उनकी बेटी रत्नाबली की शादी। तुलसीदास रत्नाबली से बहुत प्रेम करते थे, एक पल भी उनके बगैर नहीं बिताना पसंद करते थे। यहाँ तक की रत्नाबली की सहेलियां भी इस बात के लिए उनका मजाक उड़ाती थी।

 

एक दिन जब तुलसीदास घर लौटे तो यह जानकर दुखी हुए कि उनकी बीवी अपने पिता के घर रहने गई है। बीवी के बिना रहने का ख्याल उन्हें खाए जा रहा था इसलिए उसने फैसला किया कि वह उसके पिता के घर उससे मिलने जाएंगे। फिर तुलसीदास एक लाश पर नदी पार करके तूफान को झेलते हुए अपनी पत्नी के गाँव पहुंचे। उन्होंने पत्नी के कमरे में घुसने के लिए एक सांप को रस्सी तक बना लिया।

 

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रत्ना उनको देखकर चौंक गई। अपने प्यार का इजहार करते हुए उन्होंने अपने पत्नी से कहा कि वह उनसे मिलने के लिए सागर भी पार कर सकते हैं। रत्ना का तो कुछ और ही मानना था। उसने अपने पति की आंखे खोल दी और जवाब में उनसे कहा, “अगर तुमने भगवान राम से इतना प्यार किया होता जितना तुम इस हाड़ मांस के पुतले से करते हो तो तुम्हारे जीवन के सारे भय छू-मंतर हो जाते।”

 

तुलसीदास को इस बात ने झिझोरकर रख दिया। उन्होंने गृहस्ती त्याग दी। वह गंगा के तट पर पहुंचे और वहां उन्होंने दुनिया त्यागने का निश्चय ले लिया। उसके बाद वह सीधे राजापुर गए, जहाँ उन्होंने हिंदी में रामायण के सत्संग शुरू कर दिए। हालाँकि काफी लोगों को उनके शब्दों से राहत मिली पर ऐसे कई तकियानुसी ब्राह्मण थे जिन्हे उनका रामायण हिंदी में पढ़ना पसंद नहीं था, उनके हिसाब से संस्कृत ही वह भाषा है जिसमे रामायण का प्रचार होना चाहिए। पर तुलसी ने किसी की एक न सुनी और अपना कर्म करते रहे।

 

एक दिन उनके सत्संग सुनने एक बूढ़े व्यक्ति सबसे पहले आते हैं और सबसे बाद में जाते। समय के साथ उन्हें आभास हुआ कि यह और कोई नहीं हनुमान जी हैं। बूढ़े आदमी के वेश में तुलसीदास को हनुमान जी के दर्शन हुए। जब तुलसी ने उन्हें राम को पाने का रहस्य पूछा तो उन्होंने कहा, “चित्रकूट जाओ, तुम्हारी इच्छा वहीं पूरी होगी।” हनुमान जी के कहने पर वह चित्रकूट गए।

 

एक दिन जब वह बैठे हुए थे तो दो सुंदर राजकुमार उनसे मिलने आए। उन्होंने राजकुमारों के माथे में तिलक भी लगाया और फिर वह चले गए। पर जब दोनों राजकुमार वहां से चले गए तो एक तोते ने कहा कि जब तुलसीदास भक्तों को तिलक लगा रहे थे तब जिस राजकुमार को उन्होंने तिलक लगाया वह राजकुमार स्वयं भगवान राम थे। यह सुनकर तो तुलसीदास बावले से हो गए और राजकुमारों के पीछे भागे, पर वह तो जा चुके थे। तोता, जो की हनुमान जी का रूप था वह भी उड़ गया।

 

बस इस घटना के बाद राम के एक स्पर्श के बाद तुलसी बदल गए, उनके भक्तों की संख्या और बढ़ गई और उन्होंने एक तीर्थ पर जाने का फैसला किया। उनका पहला पड़ाव था वृन्दावन। वहां के लोगों को शक हुआ कि अगर तुलसीदास राम के भक्त हैं तो वह कृष्ण की पूजा कैसे करेंगे। फिर सबका शक दूर हो गया , चमत्कार हुआ, मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति भगवान राम में तब्दील हो गए।

 

इसके बाद तुलसीदास जी ने और भी बड़े-बड़े कारनामे की है। राजस्थान में एक समय उनका बसेरा था। उन्होंने छूत-अछुत का भेदभाव न करके आदिवासियों को भी गले लगाया। इसके बाद उन्होंने महाराणा प्रताप की उलझन सुझाई। उन्होंने मानसिंह को समझाया कि अपने ही भाई बंधुओं के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए।

 

जब अकबर को मानसिंह के पीछे हटने की खबर मिली और उन्हें इसमें तुलसीदास का हाथ दिखा तो वह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने तुलसीदास को अपने दरबार में बुलाया पर तुलसीदास ने यह कहकर मना कर दिया ,”मेरे भजन मेरे राम के लिए है, मैं किसी राजा के दरबार में नहीं गा सकता।”

 

सब कुछ लिपटाकर वह वाराणसी पहुंचे। यहाँ उन्होंने वाराणसी आसी घाट के किनारे रामचरितमानस रखे, यह राम की कहानी थी वह भी हिंदी में। अब जब वाराणसी के भक्तों को यह पता चला तो वह आग बबूला हो गए। वह चाहते थे कि यह किताब नदी में फेंक दी जाए, पर ऐसा हुआ नहीं। क्यूंकि जब वह यह प्रस्ताव लेकर तुलसीदास के कुटिया पहुंचे तो उन्हें घर पर पहरा देते स्वयं राम दिखे।

 

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अगली रात पंडितो ने एक और तरकीब निकाली। उन्होंने किताब को शिव मंदिर में रखा। जब सुबह हुई तो रामचरितमानस शिवलिंग के पास रखी किताबों में सबसे ऊपर पड़ी थी। सबकी उलझन सुकझी, सबने रामचरितमानस और उसके लेखक तुलदीदास को दिल से स्वीकारा।

 

तो यह थी तुलसीदास की कहानी हमें उम्मीद है की आपको यह लेख तुलसीदास की कहानी | Story of Tulsidas in Hindi जरूर ही पंसद आई होगी। अगर आपको यह कहानी अच्छा लगे तो इसे शेयर जरूर करें और इस ब्लॉग  को सब्सक्राइब भी जरूर करे असेही और भी कहानियां पढ़ने के लिए।

 

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2 thoughts on “तुलसीदास की कहानी | Hindi Story of Tulsidas”

  1. Jai Nath Mishra says:
    December 26, 2021 at 10:33 pm

    Bahut achcha hai Tulsi Ramcharitmanas Tulsi ji ki kahani ismein apni e aap padhaai per pahchan hoti hai Jay Shri Ram

    Reply
  2. Dinesh Kumar Nirmalkar says:
    December 12, 2022 at 11:26 am

    Bahut achhi jankari hai.
    Dhanyawad 🙏🙏🙏

    Reply

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