Skip to content

Kahani Ki Dunia

Iss Duniya Mein Jane Kuch Naya

Menu
  • Home
  • Hindi Stories
  • Full Form
  • Business Ideas
  • Contact us
  • Web Stories
Menu
Story of Meera Bai in Hindi

Real Story of Meera Bai in Hindi | मीरा बाई की असली कहानी

Posted on May 26, 2021

 

आज के लेख में हम बात करेंगे मीरा बाई की कहानी (Story of Meera Bai in Hindi), जिन्हे आमतौर पर श्री कृष्ण की भक्ति का त्रिस्तंभ भी माना जाता है। परंतु मीरा ने राजसी परिवार से होने के बावजूद समाज में व्याप्त विष्नेताओ का तिरस्कार करके एक निम्न जाती के संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया। रोचक तथ्य यह भी है कि संत रविदास जी श्री कृष्ण जी की भक्ति नहीं करते थे फिर मीरा बाई ने आखिर उन्हें ही अपना गुरु क्यों चुना? यह सारी बातें आज हम जानेंगे इस लेख में।

 

मीरा बाई की असली कहानी – Real Story of Meera Bai in Hindi

 

आज तक आपने मीरा बाई के बारे में सिर्फ इतना ही जाना है कि उन्होंने श्री कृष्ण की भक्ति की थी और अंत में वह श्री कृष्ण जी की मूर्ति में समा गई थी। मीरा बाई का जन्म एक राजपूत जाती में हुआ था और मीरा बचपन से ही धार्मिक विचारवाली थी और मंदिर में आकर श्री कृष्ण जी की भक्ति करती थी। फिर मीरा बाई का विवाह एक राजा से हो गया। राजा भी धार्मिक विचारवाले थे तो उन्होंने मीरा बाई को कभी भी मंदिर जाने से नहीं रोका।

 

राजा लोकचर्चा से बचने के लिए मीरा के साथ तीन चार नौकरानी भेजने लगे। कुछ वर्ष पश्चात ही मीरा की पति की मृत्यु हो गई और उसका देवर राजगद्दी पर बैठ गया। उसने कुल के लोगों के कहने पर मीरा को मंदिर जाने से मना किया परंतु मीरा बाई नहीं मानी, जिस कारण से राजा ने मीरा बाई को मारने का षड़यत्र रचा।

 

राजा ने एक सपेरे वाले से कहा कि ऐसा सांप लाकर दे कि डिब्बे को खोलते ही खोलने वाले को डंक मारे और व्यक्ति मर जाए। ऐसा ही किया गया। राजा ने अपने बेटे का जन्मदिन मनाया, जिसमें रिश्तेदार और अन्य गणमान्य व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया। नौकरानी से कहकर एक आभुषण वाले डिब्बे में सर्प को रखकर मीरा बाई को भिजवा दिया और आदेश दिया कि मीरा को कहना कि यह बेश कीमती हार में पहन ले नहीं तो रिश्तेदार कहेंगे कि भावी को अच्छी तरह नहीं रखता।

 

मीरा के लिए वह हार तो मिट्टी के बराबर था  लेकिन मीरा ने सोचा कि यदि मैं हार नहीं पहनूंगी तो व्यर्थ का झगड़ा होगा। यह सोचकर नौकरानी के सामने ही उस डिब्बे को खोला और उसमे से हीरे मोती से बना हुआ वह हार निकला। राजा क उद्देश्य था कि आज सर्प डंक से मीरा की मृत्यु हो जाएगी तो सबको विश्वास हो जाएगा कि राजा का कोई हाथ नहीं है। लेकिन राजा की यह योजना विफल रही।

 

फिर राजा ने सोचा कि अबकी बार मीरा को विष मैं पिलाऊंगा अपने सामने, नहीं पिएगी तो सर काट दूंगा और एक सपेरे से कहा कि एक भयंकर विष ला दे कि जिसे जिव पर रखते ही वह व्यक्ति मर जाए। राजा ने मीरा से कहा कि वे विष पिले नहीं तो उसकी गर्दन काट दी जाएगी। मीरा ने सोचा कि गर्दन काटने में तो पीड़ा होगी, विष ही पि लेती हूँ। मीरा ने विष का प्याला परमात्मा को याद करके पि लिया और मीरा बाई को कुछ भी नहीं हुआ।

 

राजा ने उस सपेरे वाले को वापस बुलाया और कहा कि नकली विष लाया है। संपेरे वाले ने कहा कि वह प्याला कहाँ हैं? राजा के सामने ही उसी प्याले में दूध डालकर एक कुत्ते को पिलाया तो कुत्ता दूसरी बार जीव भी है लगा पाया था, वहीं मर गया था। फिर राज ने देखा कि यह किसी भी तरह मरने वाली नहीं है  तो उसको मंदिर में जाने से भी नहीं रोका।

 

जिन श्री कृष्ण जी की मंदिर मर मेरा बाई पूजा करने जाती थी उसी मार्ग में एक छोटा सा बच्चा था और उसी बगीचे में परमेश्वर कवी जी और संत रविदास जी  सत्संग कर रहे थे , मीरा बाई ने देखा कि यहाँ पर परमात्मा की चर्चा या  कथा चल रही है। कुछ देर सुनकर चलते हैं। परमेश्वर कवीर जी ने संक्षिप्त में सृष्टि रचना क ज्ञान सुनाया और कहा कि श्री कृष्ण जी यानि की श्री विष्णु जी से भी ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है, अगर जन्म और मरण समाप्त नहीं होता तो भक्ति करना और न करना समान ही है। जन्म और मरण तो श्री कृष्ण जी का भी समाप्त नहीं हुआ तो उनके पुजारियों का भला कैसे होगा। परमेश्वर कवीर जी के कमल सी वे वचन सुनकर परमात्मा के लिए भटक रही आत्मा को नई रौशनी सी मिली।

 

इसके उपरांत मीरा बाई ने प्रश्न किया कि हे महात्मा जी आपकी आज्ञा हो तो शंका का समाधान करवाऊं। परमेश्वर कवीर जी ने कहा कि प्रश्न करो बहन जी। मीरा बाई ने कहा कि आज तक मैंने किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी से ऊपर भी कोई परमात्मा है, आज आपके मुख से सुनकर मैं दौराहे पर खड़ी हो गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूट नहीं बोलते। परमेश्वर कवीर जी ने कहा कि आपके धार्मिक ज्ञानी गुरुओं का दोष है, जिन्हे स्वयं ज्ञान नहीं था कि अपप्के सद्ग्रंथ क्या ज्ञान देते हैं। श्रीमद देवी भागवत पुराण की तीसरी स्कंद में श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार करते हैं कि मैं विष्णु, ब्रह्मा तथा शंकर नाशवान है, हमारा आविर्भाव यानि जन्म तथा तिरोभाव यानि की मृत्यु होती रहती है। हम अविनाशी नहीं हैं।”

 

  • Real Story Of Rani Padmini (Padmavati) In Hindi | रानी पद्मिनी का इतिहास

 

मीरा बाई बोली, “हे महाराज जी, भगवान श्री कृष्ण जी मुझे साक्षात् दर्शन देते हैं, मैं उनसे संवाद करती हूँ।” परमेश्वर कवीर जी ने कहा, “मीरा बाई आप एक काम करो, भगवान श्री कृष्ण जी से ही पूछ लेना कि आपसे ऊपर भी कोई मालिक है? वह देवता हैं कभी झूट नहीं बोलेंगे।”

 

रात्रि में मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण जी का आह्वान किया। त्रिलोकीनाथ प्रकट हुए। मीरा बाई ने अपनी शंका का समाधान के लिए निवेदन किया, “हे प्रभु। क्या आपसे ऊपर भी कोई परमात्मा है?” श्री कृष्ण जी ने कहा, “मीरा, परमात्मा तो है परंतु वह किसी को दर्शन नहीं देते। हमने बहुत समाधी और साधना करके देख ली।”

 

मीरा बाई ने परमात्मा कवीर जी से सुना था कि उस पूर्ण परमात्मा का माओं प्रत्यक्ष दर्शन करवाऊंगा,सत्य साधना करके उसके पास सतलोक में भेज दूंगा। मीरा बाई ने श्री कृष्ण जी से फिर से प्रश्न किया, “क्या आप जिव का जन्म और मरण समाप्त कर सकते हो?” श्री कृष्ण जी ने कहा, “असंभव है।” मीरा बाई ने कहा, “हे भगवान श्री कृष्ण जी, संत जी कह रहे थे कि मैं जन्म और मरण समाप्त कर देता हूँ। अब मैं क्या करूँ? मुझे तो पूर्ण मोक्ष की चाह है।” श्री कृष्ण जी बोले, “मीरा बाई, आप  उस संत शरण ग्रहण करके अपना कल्याण कराओ।मुझे जितना ज्ञान था वह बता दिया।”

 

अगले दिन मीरा बाई मंदिर नहीं जाकर सीधे संत जी के पास गई और श्री कृष्ण जी के साथ हुई वार्ता परमेश्वर कवीर जी के साथ साझा की, परमेश्वर कवीर जी से दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की। उस समय छुआछात चरम पर थी। ठाकुर लोग अपने को सर्वोत्तम मानते थे और मीरा बाई की परीक्षा के लिए परमात्मा ने संत रविदास जी की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहां बैठे हैं संत जी, उनसे जाकर दीक्षा लो।”

 

मीरा जी तुरंत रविदास जी के पास जाकर बोली, “संत जी, दीक्षा देकर कल्याण करो।” गुरु संत रविदास जी ने बताया, “बहन जी मैं चमार जाती से हूँ और आप ठाकुरों की बेटी हो, आपके समाज के लोग आपको बुरा भला कहेंगे। आप विचार करें।” मीरा ने कहा, “अगर कल को कुतिया बनूँगी तो भी यह ठाकुर समाज मेरा क्या बचाव करेगा, आप सिर्फ दीक्षा देकर मेरा कल्याण करो।”

 

मीरा बाई का परमात्मा के प्रति समर्पित भाव देखकर परमेश्वर कवीर जी ने संत रविदास जी के माध्यम से मीरा बाई को प्रथम मंत्र केवल पांच नाम दिए। मीरा बाई पहले तो दिन में ही घर से बाहर जाती थी फिर रात्रि में भी सत्संग में जाने लगी क्युकी सत्संग दिन में कम और रात्रि में अधिक होता था और यह सब देखकर उसका देवर राणा और भी जल गया और मीरा को समझाने के लिए उनकी माताजी को बुलाया। लेकिन मीरा बाई ने तब भी सत्संग में जाना बंद नहीं किया।

 

कुछ वर्षो बाद अपने देवर के अत्याचारों से परेशान होकर मीरा बाई घर त्यागकर वृंदावन में चली गई। वहां कवीर परमात्मा जी एक साधु के बेश में गए। ज्ञानचर्चा हुई तब मीरा बाई को ज्ञान हुआ कि अभी आगे की पढाई शेष है यानि कि केवल प्रथम मंत्र के जाप से मोक्ष नहीं होगा। कवीर परमात्मा ने मीरा बाई को सत्नाम की दीक्षा दी और मीरा बाई को वही रूप दिखाया जिस रूप में संत रविदास जी के साथ सत्संग में मिले थे।

 

मीरा बाई जब घर त्यागकर चली गई तो उस क्षेत्र में अकाल मृत्यु शुरू हो गई। ज्योतिषों ने बताया कि आपके नगरी से संत रुष्ठ होकर गया है जिस कारण से यह समस्या हो रही है। समाधान बताया कि संत जीवित मिल जाए तो वापस मनाकर प्रसन्न करके लाया जाए तो आशीर्वाद देकर सब ठीक कर सकता है।

 

इधर राणा को पता चला कि मीरा संत थी। मीरा को लाने के लिए मीरा के दो सिपाही जो की मीरा के साथ छाया की तरह रहते थे, दोनों मीरा बाई की खोज में निकले। पता लगा कि बहुत सारे संत वृंदावन में रहते हैं और वहीं पर मीरा बाई भी मिल गई थी। उन्होंने मीरा बाई से लौटने की पप्रार्थना की और बताया कि राजा के राज्य में अकाल मृत्यु हो रही है  ब्राह्मणों ने बताया है कि मीरा वापस आएगी तो सब ठीक होगा। राणा ने कहा है कि आगे से मीरा को कोई कष्ट नहीं दूंगा।

 

  • हाड़ी रानी वलिदान की कहानी | History Of Hadi Rani In Hindi

 

मीरा ने जाने से मना कर दिया। उन दोनों सिपाहियों ने कहा, “यदि आप नहीं चलोगे तो हम प्रतिज्ञा करके आए हैं कि मीरा जीवित मिल गई तो अवश्य लेकर आएंगे।” मीरा बोली, “यदि मैं संसार छोड़कर चली गई होती तब भी तो आप लौट जाते।” सिपाहियों ने कहा, “फिर तो हमें लौटना ही था।” उसी समय मीरा ने एक तार वाला यंत्र उठाया और परमात्मा की स्तिति करने लगी। आँखों में प्रेम के आंसू बहने लगे और उसी समय एक मूर्ति में समा गई।

 

तो यह थी मीरा बाई की असली कहानी और उनसे जुडी कुछ बातें। अगर आपको हमारी यह लेख “Real Story of Meera Bai in Hindi” अच्छी लगे तो इसे शेयर करे और असेही और भी रोचक कहानियां पढ़ने के लिए इस ब्लॉग  सब्सक्राइब करे।

 

यह भी पढ़े:-

  • ओइजा बोर्ड एक खौफनाक खेल | Story Of Ouija Board Game In Hindi
  • अन्नोरा पेट्रोवा की डरावनी कहानी | Mysterious Story Of Annora Petrova In Hindi
  • नोबिता की मौत की सच्ची कहानी
  • क्या सच में होती हैं परियां?
  • जब गायब हो गई पूरी की पूरी रेल गाड़ी
  • कौन थे लाफिंग बुद्धा

 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Post

  • NIOS Full Form: NIOS Board क्या है पूरी जानकरी हिंदी में
  • Top 5 High Salary Banking Courses in Hindi | Best Banking Jobs After 12th
  • KVPY Exam क्या है | What is KVPY Exam in Hindi
  • What is No Cost EMI in Hindi | No Cost EMI क्या होता है
  • NASA Scientist कैसे बने | How to Become a NASA Scientist
©2023 Kahani Ki Dunia | Design: Newspaperly WordPress Theme