आज की कहानी है भाग्य और बुद्धि के बारे में और इस कहानी का नाम है “भाग्य और बुद्धि का मुकाबला | Luck And Wisdom Competition Story in Hindi”
भाग्य और बुद्धि का मुकाबला
एक दिन एक स्थान पर भाग्य और बुद्धि की मुलाकात हो गई। दोनों बैठकर बातें करने लगे। बातें करते-करते उनमे बहस छिड़ गई। भाग्य ने कहा, “मैं बढ़ा हूँ। अगर मैं साथ न दू तो आदमी कुछ नहीं कर सकता। मैं जिसका साथ देता हूँ उसकी जिंदगी बदल जाती है चाहे उसके पास बुद्धि हो या न हो।” बुद्धि ने कहा, “बुद्धि के बिना किसी का भी काम नहीं चल सकता। बुद्धि न हो तो केवल भाग्य से कुछ नहीं बनता।”
आखिर दोनों ने फैसला किया कि खाली बहस करने की बजाई अपनी अपनी शक्ति का प्रयोग करके देखते हैं पता चल जाएगा कि कौन बड़ा है। वे दोनों एक किसान के पास गए। किसान बहुत ही गरीब था। वह अपनी कुटिया के बाहर बैठा अपनी किसमत पर रो रहा था।भाग्य ने कहा, “देखो इस इंसान के पास बुद्धि नहीं है मैं इसका भाग्य बदलता हूँ। यह खुशाल और सुखी हो जाएगा। तुम्हारी जरुरत ही नहीं पड़ेगी।”
किसान के कुटिया के साथ ही उसका एक मात्र खेत था। उसने उसमें ज्वार बो रखी थी। बालियां आ ही रही थी। इस बार उसने बालियों को निकट से देखा। बालियों में ज्वार के स्थान पर भाग्य के प्रताप से मोती लगे थे। बुद्धिहीन किसान ने अपना माथा पीटा और कहा, “अरे इस बार तो सत्यानास हो गया। ज्वार के स्थान पर यह पत्थर-कंकर से भला क्या उग आए हैं!”
किसान रो ही रहा था कि उधर से उस राज्य का राजा और उसका मंत्री गुजरे। उन्होंने दूर से ही ज्वार की वह खेती देखि। मोतियों की चमक देखते ही वह पहचान गए। दोनों घोडा गाड़ी से उतरे और निकट से देखा। वे तो सचमुच के मोती थे! दोनों बोले कि यह कितना धनी किसान है जिसके खेत में मोती ही मोती उगते हैं।
मंत्री ने किसान से कहा से कहा, “भाई हम एक बाली तोड़कर ले जाए?” किसान बोला, “एक क्या सो पचास उखाड़ लो। पत्थर ही पत्थर तो लगे है इनमे। राजा ने मंत्री के कान में कहा, “देखो कितना विनम्र है यह अपने मोतियों को पत्थर कह रहा है।” मंत्री ने कहा, “और दिल भी बड़ा है। हमने एक माँगा और यह सो पचास ले जाने को कह रहा है महाराज।”
वे दो बालियां तोड़कर ले गए। घोडा गाड़ी में बैठकर राजा ने मोतियों को हाथ में तौलते हुए कहा, “मंत्री हम राजकुमारी के लिए योग्य वर ढूंढ रहे थे न तो दूर क्यों जाए? यह किसान जवान है, धनि है और कितना बड़ा दिल है इसका इसलिए तो मोतियों को पत्थर कहता है। क्या ख्याल है?” मंत्री बोला, “महाराज! आपने मेरी मुँह की बात छीन ली।”
मंत्री घोडा गाड़ी से उतरकर किसान के पास गया और किसान के हाथ पर एक एक सोने की मुद्रा रखकर कहा, “युवक! हम तुम्हारा विवाह राजकुमारी से तय कर रहे है।” किसान घबराया और बोला, “नहीं मालिक! मैं एक निर्धन किसान हूँ।” मंत्री समझा कि विनम्रता के कारण ही वह ऐसा कह रहा है। उन्होंने उसे उसके पीठ पर थपाकर उसे चुप करा दिया।
राजा के जाने के बाद किसान ने लोगों को बताया कि उसकी शादी राजकुमारी से तय हो गई है। सब हँसे। एक ने कहा, “अरे बेवकूफ! यह शायद तुझे मरवाने की चाल है हम तो तेरे साथ नहीं चलेंगे कहीं हम भी न मारे जाए। अकेले अपनी बारात में जाइयो।” किसान को अकेले ही जाना पड़ा। राजा ने इसका बुरा नहीं माना।
मंत्री ने उसे अपने घर ठहराया। वही से उसकी बारात गई और धूमधाम से राजकुमारी से उसकी शादी हो गई। शादी हो जाने के बाद राजा ने दामाद को महल का ही एक भाग दे दिया। राजा का कोई पुत्र नहीं था तथा वह दामाद को अपने पास ही रखना चाहता था ताकि राजसिंहासन भी बाद में उसे सौंप सके।
राजपरिवार की परम्परा के अनुसार राजकुमारी वधु के वेश में सजधजकर खाना लेकर रात को अपने पति के कक्ष में गई। किसान ने इतनी सुंदरता से सजी और आभुषणो से लदी कन्या सपने में भी नहीं देखि थी। वह डर गया। उसके मुर्ख दिमाग में अपनी दादी की बताई कहानी याद आ गई जिसमे एक राक्षसी सुंदरी का वेश बनाकर गहनों से सजीधजी एक पुरुष को खा जाती है।
उसने सोचा कि यह भी कोई राक्षसी है जो उसे खाने के लिए आई है। वह उठा और राजकुमारी को धक्का देकर गिराता हुआ चिल्लाता बाहर की और भगा। भागता-भागता वह सीधे नदी किनारे पहुँचा और पानी में कूद गया। उसने सोचा कि राक्षसी का पति होने से अच्छा मर जाना होगा।राजकुमारी के अपमान की बात सुनकर राजा आगबबूला हो गया। राजा की सिपाहियों ने किसान को डूबने से पहले ही बचा लिया। उधर राजा ने आदेश जारी कर दिया कि दूसरे दिन उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा।”
बुद्धि ने भाग्य से कहा, “देखा तेरा भाग्यवान बुद्धि के बिना मारा जाने वाला है। अब देख मैं इसे कैसे बचाती हूँ।” इतना कहे बुद्धि ने किसान में प्रवेश किया। किसान को राजा के सामने पेश किया गया तो किसान बोला, “महाराज! आप किस अपराध में मुझे मृत्यु दंड देने चले हैं? मेरे कुल में मान्यता है कि विवाह के पश्चात् पहली रात को यदि वर-वधु की जानकारी में कोई व्यक्ति नदी में डूब मरे तो वधु विधवा हो जाती है या संतानहीन रह जाती है। जब मेरी पत्नी मेरे कक्ष में आई तो नदी की ओर से मुझे बचाओ बचाओ की पुकार सुनाई दी। मैं तुरंत उठकर डूबने वाले को बचाने के लिए भागा। आप मुझे कोई भी दंड दे मैं अपनी पत्नी के लिए कुछ भी करूँगा।”
उसकी बात सुनते ही राजा ने उठकर किसान को गले लगा लिया। पिता-पुत्री ने लज्जित होकर अपने असंगत व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी और फिर तीनो ख़ुशी-ख़ुशी महल के अंदर चले गए। बुद्धि ने मुस्कुराते हुए भाग्य की ओर देखा।
शिक्षा – जीवन में सफलता के लिए भाग्य और बुद्धि दोनों का मेल जरुरी है।
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