तेनालीराम की कहानी तरकीब तेनालीराम की
एक दिन एक चित्रकार विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के राजमहल जा पहुँचा। रात्रि का समय था और राजा अपने परिवार के साथ भोजन कर रहे थे। चित्रकार ने राजा का चित्र बनाने की आज्ञा माँगी। तब राजा ने उससे कहा, “इस समय मैं अपने परिवार के साथ भोजन कर रहा हूँ, तुम इस दृश्य का एक सुंदर सा चित्र बनाओ।”
चित्रकार ने अपने तूलिका से चित्र बनाना आरंभ कर दिया। अभी चित्रकार ने खाने की स्वादिष्ट चीजों का ही चित्र बनाया था कि राजा उठ खड़े हुए और चित्रकार के पास आकर बोले, “चित्रकार, देखें तो चित्र कैसा बना है?” चित्रकार का चित्र अधूरा था। चित्र में खाने-पिने की सामग्री के अलावा मात्र राजा के पांव ही बने हुए थे।”
राजा को यह देखकर गुस्सा आ गया और उन्होंने पहरेदारों को उस कलाकार को राजमहल से बाहर निकालने का आदेश दिया। चित्रकार को अपना अपमान सहन नहीं हुआ। अगले दिन चित्रकार बाजार में खड़े होकर राजा के विषय में उलटी सीधी बातें बोलने लगा। संयोग से उसी समय तेनालीराम वहाँ से गुजर रहा था। भीड़ देख वही खड़ा हो गया और उसकी बातें सुनने लगा।
तेनालीराम ने चित्रकार की बातें सुनी और चित्रकार के पास जाकर धीरे से कहा, “यदि तुम राजा से अपने अपमान का बदला लेना चाहते हो तो मेरे साथ चलो।” तेनाली की बात मानकर चित्रकार चुपचाप तेनाली के घर चल पड़ा। तेनाली ने उसे अपनी योजना बता दी। फिर सारी रात चित्रकार तेनालीराम का चित्र बनाता रहा।
सुबह सभरे ही तेनालीराम ने वह चित्र ले जाकर राजमहल में दिवार के सामने खड़ा कर दिया। चित्र को देख प्रत्येक दरवारी को लगा कि स्वयं तेनालीराम वहाँ बैठे हुए हैं। सुबह जब राजा कृष्णदेव राय टहलते हुए वहाँ पहुँचे तो उन्हें भी असाही महसूस हुआ। परंतु उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आज तेनालीराम उनका अभिवादन क्यों नहीं कर रहा है?
कुछ देर बाद जब राजा दोबारा चित्र के पास से गुजरे तो उन्हें लगा कि तेनाली अभी भी नहीं हिल ढुल रहा है। तीसरी बार भी असाही हुआ। अब राजा गुस्से में आकर तेनाली को डाँटने लगे। परंतु उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि वहाँ तेनाली नहीं बल्कि उसका चित्र रखा हुआ है। तेनालीराम से पूछने पर राजा को पता चला कि यह अद्भुत और सुंदर चित्र उसी चित्रकार ने बनाया है जिसे कल उन्होंने राजमहल से अपमानित कर बाहर निकाल दिया था।
राजा ने चित्रकार को बुलाकर उसका सम्मान किया और एक थैला भरकर सोने के सिक्के देकर उसे पुरस्कृत किया। चित्रकार बहुत खुश हुआ और राजा को धन्यवाद देते हुए बोला, “महाराज यह सब तेनालीराम के कारण ही संभव हो सका है।” राजा ने उस चित्रकार को विदा करते हुए कहा, “तेनालीराम ने न केवल तुम्हे गुस्से पर काबू रखने की सिख दी है बल्कि उसने मुझे भी यही पाठ पढ़ाया है।
उम्मीद करता हूँ कि आपको तेनालीराम की यह कहानी “तेनालीराम की कहानी | तरकीब तेनालीराम की | Tenali Ram Ki Tarkib Story in Hindi” जरूर पसंद आई होगी अगर आपको कहानी अच्छा लगे तो इसे शेयर जरूर कीजिए।
यह भी पढ़े:-
- स्वर्ग की खोज | Swarg Ki Khoj Tenali Rama Story In Hindi
- रसगुल्ले की जड़ | Root Of Rasgulla Tenali Raman Story In Hindi
- पानी का कटोरा |The Bowl Of Water Tenali Raman Story In Hindi