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दशरथ माँझी: माउंटेन मैन की सच्ची कहानी | Mountain Man Real Story in Hindi

दशरथ माँझी: माउंटेन मैन की सच्ची कहानी | Mountain Man Real Story in Hindi

Posted on April 4, 2021

Mountain Man Real Story in Hindi

(दशरथ माँझी की कहानी) दोस्तों आज मैं जिस शख्स के बारे में बात करने जा रहा हूँ जो इस पूरी दुनिया के लिए जज्बे और जुनूनीयत की निशान हैं। जिसने केवल एक हतोड़ा और एक छेनी लेकर अपने अकेले के दम पर 360 फिट लंबी 30 फिट चौड़ी और 25 फिट ऊँचे पहाड़ को काटकर एक ऐसी सड़क बना दी जिससे दिन भर में तय किए जाने वाले रास्ते को बस आधे घंटे में तय किया जाने लगा। मैं बात कर रहा हूँ दशरथ माँझी की, जिन्होंने अपनी प्रेमिका अपनी मोहब्बत फागुनी की याद में यह अद्भुत काम कर दिखाया।

हाँ मैंने माना कि जिंदगी काँटों भरा सफर है…

लेकिन इससे गुजर जाना ही असली पहचान हैं….

बने बनाये रास्तों पर तो सब चलते हैं…

खुद जो रास्ते बनाये वही तो इंसान हैं। 

 

दशरथ माँझी की कहानी

माउंटेन मैन कहे जाने वाले दशरथ माँझी का जन्म करीब 1934 में हुआ था। दशरथ बिहार राज्य के गया जिले के एक बहुत ही पिछड़े गाँव गेहलौर में रहते थे। उनके गाँव में न तो दुकान थी और न ही स्कूल और पानी के लिए भी लोगों को 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।

 

ऐसे में छोटे से छोटे जरूरतों के लिए वहाँ के लोगों को गाँव और कस्बे के बीच का एक पूरा पहाड़ पार करना पड़ता था या फिर पहाड़ के किनारे-किनारे से चलकर लगभग -70 किलोमीटर का चक्कर लगाते हुए उस कस्बे तक पहुँचना होता था।

 

गरीबी की बजह से दशरथ छोटी उम्र में ही घर से भागकर धनबाद की कोयलों ककी खान में काम करने लगी। कुछ सालो तक काम करने के बाद वह फिरसे अपने घर लौट आए और फागुनी नाम की एक लड़की से शादी कर ली। दशरथ का परिवार गरीब तो था लेकिन बहुत खुश था और फागुनी जिसे दशरथ प्यार से फगुनिया बुलाते थे वह तो उनकी जान थी बिलकुल वैसे ही जैसे शाहजहान की मुमताज। लेकिन उनके खुशियों को जल्द ही नजर लग गई क्यूंकि वक्त को सायद कुछ और ही मंजूर था।

 

लकड़ी काट रहे अपने पति दशरथ के लिए खाना ले जाते समय फागुनी का पैर फिसला और वह पहाड़ो से गिर गई जिससे वह बहुत ही जख्मी हो गई और अगले कुछ घंटो में उसकी मौत हो गई। अगर फागुनी को तुरंत हस्पताल ले जाया गया होता तो सायद वह बच जाती। लेकिन गेहलौर गाँव से तुरंत शहर के हॉस्पिटल ले जाना संभव नहीं था। क्यूंकि उनके गाँव और शहर के बीच एक विशाल पहाड़ था और पहाड़ के रास्ते से शहर की दुरी बहुत ज़्यादा थे।

 

यह घटना दशरथ माँझी के दिल पर चोट कर गई आखिर उनकी मोहब्बत ने उसका साथ जो छोड़ दिया था, जिसे वह सबसे ज़्यादा चाहती थी। कुछ दिनों तक दुंखी रहने के बाद दशरथ ने संकल्प लिया कि वह इस विशाल पहाड़ को काटकर बीचो -बीच रास्ता निकालेंगे, जिससे किसी और की मोहब्बत उसका साथ न छोड़े।

 

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उसके बाद से वह पुरे 22 साल लगे रहे। न दिन देखा और न रात, न धुप देखी न चैव, न शर्दी न बरसात बस लगे रहे। वहाँ न कोई पीठ ठोकने वाला था न साबासि देने वाला उल्टे गाँव वाले उनका मजाक उड़ाया करते। परिवार के लोगों ने भी साथ छोड़ दिया था। लेकिन कहते हैं न संघर्ष में आदमी अकेला होता है.. सफलता में दुनिया उसकी साथ होती है..जिस-जिस पर यह जग हँसा हैं उसी ने इतिहास रचा है। और यही सच हुआ। दशरथ ने अपने अकेले के दम पर केवल एक हतोड़ा और एक छेनी की मदद से 360 फिट लंबी 30 फिट चौड़ी 25 फिट ऊँचे पहाड़ का सीना चीर दिया और बदला ले लिया उस पहाड़ से जिसने उसके फगुनिया को उससे छीना था।

 

अब गेहलौर और वजीरगंज की दुरी पहले 60 किलोमीटर होती थी लेकिन अब सिर्फ 10 किलोमीटर होती है। बच्चो का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब सिर्फ 3 किलोमीटर रह गया है। पहले हस्पताल पहुचने में सारादिन लग जाता था उस हस्पताल में अब लोग सिर्फ आधे घंटे में पहुँच जाते हैं।

 

आज उस रास्ते को उस गाँव के अलावा 60 और गाँव इस्तेमाल करते हैं। जब दशरथ ने यह काम शुरू किया था तो लोग उन्हें पागल कहते थे और मजाक भी उड़ाते थे कि अकेला तू क्या कर लेगा? लेकिन हमें एक बात ध्यान रखना चाहिए कि जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी उसी काम को करने में हैं जिसे लोग कहते हैं कि आप नहीं कर सकते। और साथ ही साथ सफल होने के लिए संयोग बहुत जरुरी है क्यूंकि जिंदगी की एक-दो साल नहीं पुरे 22 साल का कठोर मेहनत करने के बाद दशरथ ने इस पहाड़ के गुरुर को तोडा था।

 

दशरथ माँझी का कहना था कि अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ भी आता था उसी के दम पर वह मेहनत करते रहें। उनका यही मंत्र था कि अपने धुन में लगे रहो और अपना काम करते रहो। चीजे मिले या न मिले उसकी पर्वा मत करो क्यूंकि हर रात के बाद दिन तो आता ही हैं।

 

उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा की क्षेत्र में पद्मश्री के लिए उनके नाम का प्रस्ताव रखा। और साथ ही साथ दशरथ माँझी के नाम पर पक्की सड़क और हॉस्पिटल के निर्माण का वादा किया।

 

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तो दोस्तों यह थी दशरथ माँझी यानि माउंटेन मैन की सच्ची कहानी। अगर आपको यह कहानी “दशरथ माँझी: एक माउंटेन मैन की सच्ची कहानी | Mountain Man Real Story in Hindi” अच्छी लगी तो निचे कमेंट करके हमें जरूर बताएं और इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरूर करें।

 

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