शक्ति की दस विद्याओं में से तीसरी महाविद्या है माता छिन्नमस्ता। आज इस लेख में हम जानेंगे क्यों भगवती ने अपने ही सर को काटकर अपने हाथ में ले और छिन्नमस्ता रूप को धारण किया।
माँ छिन्नमस्ता देवी की कहानी
एक बार माँ पार्वती अपनी सखी जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने के लिए गई। स्नान के पश्चात उन सबको बहुत जोर से भूख लगने लगी। उस समय माता की सखियों ने उनसे कुछ भोजन करने के लिए माँगा और देवी ने उन्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए कहा। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद सखियों ने जब उन्हें फिरसे भोजन के लिए निवेदन किया तब देवी ने उनसे कुछ देर और प्रतीक्षा करने के लिए कहा।
इस पर सखियों ने देवी से विनम्रवानी से कहा, “माँ तो अपने शिशुओं को भूख लगने पर अविलबं भोजन प्रदान करती है आप हमारी उपेक्षा क्यों कर रही हैं माता।” अपने सखियों की मधुर वचन सुनकर दयामय देवी ने अपने खड्ग (तलवार) से अपना ही सर काट दिया और कटा हुआ सर देवी के बाई हाथ में आ गिरा और उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं बहने लगी।
उन्होंने दो धाराओं को अपनी दो सखियों की ओर प्रवाहित कर दिया जिसे पीते हुए दोनों प्रसन्न होने लगी और तीसरी धारा को देवी स्वयं पान करने लगी। तभी से देवी छिन्नमस्ता नाम से प्रसिद्ध हैं।
Chinnamasta Devi Story in Hindi
छिन्नमस्ता रूप का महत्व
इस रूप में माता दूसरे के भूख को शांत करने के लिए अपने ही सर को काट देती है। इससे यह पता चलता है कि मा के भीतर परोपकार और त्याग भावना बहुत ज़्यादा है।
दूसरी बात , माता अपनी सर को काटने के पश्चात भी जीवित हैं यह अपने आप में पूर्ण अंतर्मुखी साधना का संकेत है। जब कोई साधक अंतर्मुखी हो जाता है तो वह शरीर की सीमाओं से ऊपर उठ जाता है, वह शरीर से परे हो जाता है। वह अपने दिव्य स्वरुप को अनुभव करने लगता है।
तो दोस्तों, यह थी माँ छिन्नमस्ता की कहानी और उनके रूप का रहस्य। उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख “माँ छिन्नमस्ता की कहानी | Chinnamasta Devi Story in Hindi” जरूर अच्छी लगी होगी अगर अच्छा लगे तो कमेंट करके जरूर बताएं और हमारे इस ब्लॉग को भी जरूर सब्सक्राइब करें।
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