इस लेख में आज जो कहानी मैं आप सबको बताने वाली हूँ उसका नाम है “मुर्ख मछुआरा (Murkh Machuara Hindi Story), तो चलिए सुनते हैं इस कहानी को।
मुर्ख मछुआरा
Murkh Machuara Hindi Story
एक समय की बात है, किसी गाँव में रमेश नाम का एक मछुआरा अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था। रमेश का परिवार बहुत गरीब था और उनका अपना गुजारा करने के लिए मछलियां पकड़ने पर निर्भर होना पड़ता था।
रमेश के गाँव के निकट ही एक बहुत बड़ा और खूबसूरत तालाब था। वहाँ दूर-दूर से लोग मछलियां पकड़ने आते और मछलियों का व्यापार करते। इसी प्रकार रमेश भी रोज सात से आठ मछलियां पकड़ता और बाजार में जाकर बेचता। इससे उसके परिवार का गुजारा चल जाता और इससे उसका परिवार भी संतुष्ट था।
रमेश जिस बाजार में मछलियां बेचता वहाँ बहुत दूर-दूर से लोग आते और व्यापार करते। यह बाजार भी रमेश के घर के निकट ही था। एक दिन बाजार में मछलियां बेचते वक्त रमेश ने अपने दोस्त को बड़ी मछली बेचते देखा, जिसका उसे बहुत अच्छा दाम मिला। यह सब देख रमेश ने मन ही मन सोचा, “मैं यह छोटी-छोटी मछलियां पकड़कर इतना नहीं कमा पाता और इसने एक ही बड़ी मछली पकड़कर इतना कमा लिया। मैं भी कल से बड़ी मछली पकड़ूँगा और उसका अच्छा दाम लूँगा।” इस प्रकार रमेश ने मन ही मन थान लिया कि वह बड़ी मछलियां ही पकड़ेगा और उसी से बड़ा व्यापारी बनेगा।
अगले ही दिन रमेश तालाब के किनारे मछली पकड़ने लगा और मछली पकड़ने का एक बड़ा सा जाल पानी में फेंक दिया। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे जाल में कुछ महसूस हुआ तो उसने जाल निकालके देखा। उसे बहुत सारी छोटी-छोटी मछलियां मिली। तब रमेश ने सोचा, “अभी तो पूरा दिन पड़ा है और वैसे भी एक ही तो मछली पकड़नी है।” यह सोचकर रमेश ने फिरसे जाल बिछा दिया और इंतज़ार किया।
इंतज़ार करते-करते अब दो पहर का समय हो चूका था और सूरज सर पर था कि तभी उसे जाल में कुछ भारी-भारी सा लगा और रमेश ने ख़ुशी-ख़ुशी जाल निकाला और देखा फिर वहीं छोटी मछलियां थी उसमें। इस पर रमेश ने कहा, “एक ही तो मछली पकड़नी है। कुछ ही देर में बिक जाएगी। एक बार फिर डालता हूँ जाल। इस बार तो मिल ही जाएगी बड़ी मछली।”
रमेश ने फिर तालाब में जाल डाला और फिर इंतज़ार किया। अब इंतज़ार करते-करते दो पहर से शाम हो गई थी और शाम से रात। ;लेकिन जाल में कुछ नहीं आया और रमेश और उसके परिवार को उस दिन भूखा रहना पड़ा।
इस कहानी से सीख, Moral of The Story:
इस कहानी हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में जो मिलता है, जितना मिलता है उसमें खुश रहना चाहिए। अपनी मूर्खता के कारन उसे खोना नहीं चाहिए क्यूंकि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है।
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