कछुआ और खरगोश Turtle and Rabbit Moral Story in Hindi
कछुआ और खरगोश
एक जंगल में एक खरगोश और एक कछुआ रहते थे। खरगोश को बड़ा घमंड था की वह तेज दौड़ सकता है। वह कछुए के धीमी चाल को देखकर खिल्ली उडाता था।
असेही एक दिन खरगोश ने कहा, “क्यों कछुआ काका, क्या तुम मेरे साथ दौड़ लगाओगे?” कछुआ बोला, “क्यों नहीं।” खरगोश ने कहा, “हम दोनों में जो जीतेगा उसे बढ़िया इनाम मिलेगा।’ कछुआ बोला, “ठीक है।”
अब इस दौड़ को देखने के लिए जंगल के सारे जानवर बड़ी उत्सुकता के साथ वहाँ पहुँचे। खरगोश ने कहा, “हम दोनों में से जो पहले उस दूर के पहाड़ी पर पहुँचेगा, समझो वह जीता।”
दौड़ शुरू हो गई। खरगोश तेज दौड़ने लगा। कछुआ धीरे-धीरे चलने लगा। खरगोश और तेज दौड़ने लगा। कछुआ वही धीरे-धीरे चलने लगा। अब इस तरह थोड़ी दूर जाने के बाद खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा। उसे कछुआ कही दिखाई नहीं दिया।
कछुए ने कहा, “यह कछुआ अभी नहीं आने वाला। चलो, थोड़ी देर आराम करले।” अब ऐसे आराम करते करते कछुए की आँख लग गई।
कछुआ धीरे-धीरे खरगोश के पास पहुँचा। और चुपचाप उसे पार कर चला गया। जब कुछ देर बाद खरगोश की आँख खुली, तो वह तेजी से पहाड़ी की ओर दौड़ने लगा। वहाँ पहुँचकर उसने कछुए को देखा और कहा, “दोस्त, तुम ही जीते मुझे माफ़ करो।”
कहानी से सीख, Moral of The Story:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी गर्भ नहीं करना चाहिए। क्यूंकि गर्भ का सिर हमेशा निचा होता है।
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Nice story
Thanks for share