इस कहानी का नाम है “जादुई सोने का कंगन” और यह कहानी है एक मुचि और एक ब्राह्मण के बारे मे।
जादुई सोने का कंगन
काशी साम्राज्य में एक मुचि रामदास रहता था। वह बहुत अच्छा इंसान था। अगर कोई भी उसके पास आता और मदद के लिए अनुरोध करता तो वह उनकी मदद जरूर करता। एक दिन रामदास रोज की तरह अपनी चीज़ो के साथ एक पेड़ के निचे बैठा हुआ था। बहुत देर से कोई नहीं आया था।
कुछ देर बाद एक ब्राह्मण दोपहर में उस रास्ते में आया और सिलाई के लिए रामदास को अपने जूते दिए। जूते के सिलाई करते हुए रामदास ने उससे पूछा, “कहिए कहाँ से आ रहे है आप? यहाँ क्यों आए?” तो वह पंडित बोला, “मैं कावेरी नदी के तट से आ रहा हूँ। गंगा नदी में स्नान करूँगा।”
रामदास ने हैरानी से कहा,”आपके कावेरी नदी में पानी नहीं है क्या? सिर्फ स्नान करने के लिए इतनी दूर!” ब्राह्मण आश्चर्यचकित गया और कहा, “आश्चर्य की बात है! तुम काशी साम्राज्य में पवित्र गंगा नदी के तट पर रहते हो और इस तरह बात कर रहे हो। गंगा के शक्ति के बारे में नहीं जानते?”
रामदास ने कहा, “नहीं। और न ही कभी स्नान किया है।” यह सुन उस ब्राह्मण को रामदास पर दया आ गई और उसने गंगा नदी के महानता उसे समझाई। फिर उसने रामदास से कहा, “तुम गंगा नदी के पास रहते हो और तुमने गंगा नदी में स्नान नहीं किया इसलिए तुम्हारा जीवन व्यर्थ है।”
रामदास ने कहा, “अगर हमारा ह्रदय पवित्र है तो तट का पानी भी पवित्र है।” इतना कहते हुए रामदास ने जूते की सिलाई पूरी कर दी और ब्राह्मण से एक विनती की, “क्या आप मुझपर एक ऐसान करेंगे?” ब्राह्मण बोला, “हाँ जरूर।” रामदास ने कहा, “मेरे जीवन का तीन चोताही हिस्सा इसी स्थान पर गुजर गया है, पता नहीं गंगा नदी देखने का भाग्य मिलेगा या नहीं। जब आप स्नान करे तो मेरी तरफ से यह सुपारी गंगा को भेट कर दे।” इतना कहकर रामदास ने एक सुपारी निकाली और उस ब्राह्मण को दे दी। ब्राह्मण ने उस सुपारी को लिया और चला गया।
गंगा नदी में पवित्र स्नान करते हुए ब्राह्मण ने कहा, “प्रिय देवी गंगा, यह आपके लिए रामदास द्वारा दिया गया प्रसाद है।” यह कहकर ब्राह्मण ने उस सुपारी को नदी के प्रबाह में छोड़ दिया। अचानक नदी के पानी से एक खूबसूरत हाथ निकला। नोह् प्रकार के रत्नों से जड़ी एक सोने की चुड़ी उस हाथ में चमक रही थी। उस हाथ ने चुड़ी ब्राह्मण को दे दी। तब उस ब्राह्मण को एक आवाज सुनाई दी, “इस चुड़ी को रामदास को मेरी तरफ से भेट में देना।” यह सुनकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया और उस चूड़ी को लेकर किनारे आया।
चुड़ी को देखते ही उसके मन में लालच आ गया और मन ही मन सोचा, “जब तब मैं न बताऊँ उस मुचि को कैसे पता चलेगा कि देवी गंगा ने उसके सुपारी के बदले में सोने की चुड़ी दी है? उसके पास जाकर यह चुड़ी देना मूर्खता होगी। लेकिन अगर मैं इस कीमती चुड़ी को कहीं बेचता हूँ तो मुझे राजा के पहरेदार पकड़ सकते हैं इसलिए चुड़ी को अपने साथ ले जाता हूँ और इसे उपहार में राजा को दे दूँ।” ऐसा सोचते हुए ब्राह्मण राजा के महल में गया और ब्राह्मण ने सीधे राजा को आशीर्वाद दिया और वह सोने की चुड़ी राजा को भेट करि।
उस चुड़ी को देखकर राजा और सभाकक्ष में मौजूत सभी लोग हैरान हो गए। महल के मंत्रियों ने उस चुड़ी की जाँच की और कहा ,”यह चुड़ी तो स्वर्ग की लगती है। यह पृथ्वी पर नहीं मिल सकती।” यह सुनकर राजा को बड़ी ख़ुशी हुई और उसने उस चुड़ी को रानी को दे दिया। रानी को चुड़ी बहुत पसंद आई और उसे हाथ में पहन लिया और राजा से कहा, “मुझे इस चुड़ी की दूसरी जोड़ी चाहिए तभी इसके सुंदरता का पता लगेगा।”
रानी की बात सुनकर ब्राह्मण चिंतित हो गया और उसके पसीने छूटने लगे। यह देखकर राजा ने कहा, “यदि आप शाम तक चुड़ी की एक और जोड़ी नहीं लाते हैं तो मैं मानूँगा आपने इस चुड़ी को चुराया है।” राजा के इस तरह कहने पर ब्राह्मण और घबरा गया। तब ब्राह्मण ने कहा कि वह शाम तक दूसरी चुड़ी लाने का प्रयास करेगा।” यह कहकर ब्राह्मण वहाँ से चला गया।
राजा ने उस ब्राह्मण का पीछा करने और उस पर नजर रखने के लिए दो सैनिक भेजे। ब्राह्मण सीधे रामदास के पास गया और उसे सब कुछ कहा और उससे जान बचाने का अनुरोध किया। तब रामदास ने अपनी आँखें बंद कर ली और देवी गंगा से ब्राह्मण को बचाने की पार्थना की। उसने अपना हाथ पीछे रखा लकड़ी के टब में डाला और उसमें से दूसरी चूड़ी निकाली। वहाँ के लोगों के इस आश्चर्य को होते देखा और हैरान रह गए।
ब्राह्मण ने रामदास को धन्यवाद दिया और उस चूड़ी को लेकर राजा के पास गया। पहरेदारों ने राजा को सारी बात पहले ही बता दी थी। वह रामदास की भक्ति से बेहद प्रभावित हुआ और उसे सम्मानित किया।
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