आज पंचतंत्र की जो कहानी मैं आपको सुनाने वाली हूँ वह है “व्यापारी के बेटे की कहानी | Vyapari Ka Beta Story in Hindi”
व्यापारी के बेटे की कहानी
एक व्यापारी के बेटे ने 100 रूपए में एक किताब खरीदी। उसमे केवल एक वाक्य लिखा था,”आदमी को वही मिलना है, जो उसके भाग्य में लिखा होता है। व्यापारी अपने बेटे की मूर्खता पर बहुत क्रोधित हुआ और उसने उसे घर से निकाल दिया। लड़का दूसरे नगर चला गया और वहाँ उसने वहाँ एक नया नाम “प्राप्त” रखकर नया जीवन आरंभ कर दिया।
नगर की राजकुमारी चंद्रावती एक सुंदर एक सुंदर योध्या से प्रेम करती थी। उसने अपनी दासी से योध्या से मुलाकात का प्रवंध कराने को कहा। दासी ने चुपके से रात के समय योध्या को महल में आमंत्रित किया। उसने योध्या से कहा कि वह दीवार से रस्सी की सहायता से महल की दीवार पर चढ़ जाए।
योध्या की दिलचस्पी राजकुमारी से मिलने में थी नहीं, इसलिए उसने इन्कार कर दिया। इस बीच प्राप्त ने दीवार पर लटकी हुई रस्सी देख ली और उसे पकड़कर दीवार पर चढ़ गया। इस तरह वह सीधे राजकुमारी के शयन कक्ष में पहुँच गया।
राजकुमारी ने उसे ही योध्या समझ लिया और बोली, “हे सुंदर सिपाही, मैं तुमसे प्रेम करने लगी हूँ।” इस पर प्राप्त ने जवाब दिया, “आदमी को वही मिलता है, जो उसके भाग्य में लिखा होता है।” राजकुमारी को महसूस हुआ कि यह युवक वह योध्या नहीं है। उसने उसे चले जाने को कह दिया। प्राप्त महल से निकल गया और एक मन्दिर में सोने के लिए चला गया। वहीं पर नगर का मुखिया एक गोपनीय बैठक करने आया। उसने प्राप्त को सोने के लिए अपने घर भेज दिया।
जब प्राप्त मुखिया के घर पहुँचा तो उसकी बेटी विनयवती ने उसे अपना होने वाला पति समझ लिया और उससे विवाह की व्यवस्था करने लगी। दोनों की गाँठ बँधने से पहले विनयवती ने प्राप्त से कुछ कहने को कहा। प्राप्त ने आदमी के भाग्य के बारे में अपना पुराना कथन दुहरा दिया। उसकी बात सुनकर विनयवती नाराज हो गई और उसवे तुरंत वहाँ से जाने को कह दिया।
प्राप्त एक बार फिर सड़क पर आ गया। उसकी निगाह एक बारात पर पड़ी।, जिसमें एक हाथी पागल हो गया था और हर किसी पर हमला कर रहा था। दूल्हा अपनी बारात समेत वहाँ से डरकर भाग निकला। प्राप्त ने देखा कि वहाँ डरी-सहमी दुल्हन अकेली बैठी है। वह आगे बड़ा और बहादुरी के साथ हाथी को सँभाल लिया। इस बीच, सब कुछ शांत हो गया। दुल्हन का पिता भी बारात के साथ वहाँ लौटकर आ गया। उसकी बेटी ने उससे कहा, “इस वीर पुरुष ने मुझे पागल हाथी से बचाया है। मैं अब और किसी से नहीं, बल्कि इसी से विवाह करुँगी।”
शोरगुल सुनकर, राजकुमारी और राजा भी विवाह-स्थल पर पहुँच गए। मुखिया की बेटी भी वहाँ पहुँच गई और देखने लगी की वहाँ क्या हो रहा है। राजा ने प्राप्त से कहा कि वह पूरी बात निडर होकर बताए। प्राप्त ने हमेशा की तरह अपना भाग्य के बारे में कथन दुहरा दिया।
प्राप्त का वाक्य सुनकर राजकुमारी का माथा ठनका। मुखिया की बेटी को भी प्राप्त से हुई मुलाकात याद आ गई। राजा, मुखिया और व्यापारी, तीनों ने अपनी अपनी बेटियों का विवाह प्राप्त के साथ कर दिया। राजा ने उसे उपहार के रूप में एक हज़ार गाँव दे दिए। सबने यह बात मान ली कि जो भाग्य में लिखा है, उसे कोई नहीं बदल सकता।
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