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पंचतंत्र की कहानी | मुर्ख साधु और ठग | Foolish Monk and Swindler Story in Hindi

पंचतंत्र की कहानी | मुर्ख साधु और ठग | Foolish Monk and Swindler Story in Hindi

Posted on December 6, 2020

Foolish Monk and Swindler Panchatantra Story in Hindi

 

मुर्ख साधु और ठग 

बस्ती से बहुत दूर एक आश्रम में एक साधु रहता था। अपने सुभचिंतकों और शिष्यों से मिलने वाले कपड़ों और अन्य सामानों को बेचकर उसने बहुत सारा धन इकट्ठा कर लिया था। उसे हमेशा अपने धन की सुरक्षा की चिंता लगी रहती थी। उसे किसी पर विश्वास नहीं था, इसलिए वह अपना सारा धन एक थैले में रखता था और जहाँ भी जाता, उस थैले को हमेशा अपने साथ ले जाता था।

 

एक पुराने ठग की निगाह एक बार साधु के थैले पर पड़ गई और वह समझ गया कि उसमें कोई मूल्यवान वस्तु है। उसने थैला चुराने की योजना शुरू कर दी।

 

ठग साधु के पास पहुँचा और उसके पैरों पर गिरकर बोला, “हे विदयजन, मुझे सारे सांसारिक बंधनों से मुक्ति का रास्ता दिखाने की कृपा करें।” उसकी विनम्रता से प्रसन्न होकर साधु कहने लगा ,”पुत्र, मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लेता हूँ, लेकिन तुम मेरे आश्रम में प्रवेश मत करना क्यूंकि साधु किसी के साथ नहीं रहता। आरंभ में तुम्हें मेरे आश्रम के द्वार पर बनी कुटिया में ही रहना होगा।”

 

ठग ने साधु के सामने वचन दिया कि वह हमेशा उसके आदेश का पालन करेगा और उसका अक्षरसः पालन करेगा। उसने साधु की हर आवश्यकता का ख्याल रखकर उसे प्रसन्न करना शुरू कर दिया। कई दिन हो गए लेकिन ठग अपनी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था। साधु अपने थैले को पल भर के लिए अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देता था।

 

एक दिन साधु का एक शिष्य आया और उसने साधु को अपने गाँव में अपने बेटे का जनेऊ संस्कार करने के लिए आमंत्रित किया। साधु ने उसका आमंत्रण स्वीकार किया और ठग को अपने साथ लेकर शिष्य के गाँव चल पड़ा।

 

रास्ते में, गुरु-शिष्य को नदी पार करनी थी। नदी में स्नान करने के बाद साधु ने धन से भरा अपना थैला अपने साथ लाई रजाई में छिपा दिया। इसके बाद वह अपने शिष्य से बोला, “मैं लघुशंका के लिए जा रहा हूँ। मैं इस पवित्र रजाई को यहीं छोड़े जा रहा हूँ।” जैसे ही गुरु वहाँ से गया, ठग ने वह थैला उठा लिया और भाग गया।

 

साधु अपने शिष्य पर भरोसा करने लगा था, इसलिए वह दो बकरों की भयंकर लड़ाई देखने में लीन हो गया। दोनों बकरों के बहते खून का स्वाद चखने के लिए वहाँ एक सियार आ पहुँचा। सियार जल्द ही दोनों बकरों के बीच फँस गया और मर गया। सियार के बारे में सोचते हुए साधु वापस लौटा। वहाँ पर अपने शिष्य को न पाकर वह डर गया। वह चिल्लाने लगा, “अरे, चालाक! यह तूने क्या किया? मैंने तो सब कुछ गवाँ दिया।” कुछ देर ठग की तलाश करने के प्रयास करने के बाद साधु आश्रम लौट आया।

 

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