Panchatantra Moral Story in Hindi
मूर्ख बंदर
एक घना जंगल था। वहां एक बंदर रहता था। बंदर बहुत ही आलसी था। वह कभी भी भोजन की तलाश में नहीं जाता था। एक दिन हाथी केला खा रहा था तो बंदर हाथी के पास जाता है और उससे केला छीनकर खा लेता है जिस पर हाथी गुस्सा होकर बंदर से कहता है, “तुम्हे शर्म नहीं आती मेरा भोजन छीनकर खाने के लिए। एक तो भोजन नहीं ढूंढते हो और ऊपर से मेरा भोजन छीनते हो।” यह कहकर हाथी बंदर पर गुस्सा होता है। इस पर बंदर जवाब देता है, “अरे दोस्त क्यों इतना गुस्सा होते हो? आगे से तुम्हारा भोजन मैं नहीं छीनूँगा।” यह कहकर बंदर वहां से चला जाता है।
कुछ देर बाद बंदर को रास्ते में एक खरगोश मिलता है। खरगोश गाजर खा रहा था। बंदर गाजर को देखता है और खरगोश से वह छीन लेता है। खरगोश कहता है, “तुम्हे बिलकुल शर्म नहीं आती, मैं कितनी मुश्किल से एक गाजर लेकर आया था और तुमने इसे छीन लिया। खुद तो अपना खाना लाते नहीं हो और दुसरो का खाना छीनते रहते हो।” यह बात बंदर सुनकर वहां से चला गया।
अगले दिन, शेर कुछ फल छुपाकर रख रहा था। बंदर यह देख लेता है और शेर के फल चुरा लेता है। यह बात जानकर शेर को बहुत गुस्सा आता है। बंदर तब तक वहां से भाग जाता है। रास्ते में बंदर को एक आम का पेड़ दीखता है। आम के पेड़ को देखकर बंदर मन ही मन सोचता है, “अरे बाह कितना बड़ा आम का पेड़! अगर मैं इन आमो को तोड़ लूँ तो बहुत दिनों तक मुझे भोजन ढूँढने की जरुरत नहीं पड़ेगी। और इसकी बजह से मैं किसी का भोजन नहीं चुराऊँगा और न ही मुझे किसी की डाट सुननी पड़ेगी।” यह सोचकर बंदर कुल्हाड़ी लेकर आम के पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है।
आम के पेड़ पर बैठकर बंदर जिस डाली पर बैठा था उसी डाली को काटने लगता है। इतने में उधर से खरगोश आता है। वह बंदर को देखकर उससे कहता है, “अरे दोस्त यह तुम क्या कर रहे हो? जिस डाली पर बैठे हो उसी को काट रहे हो।” बंदर खरगोश की बात नहीं सुनता और उससे कहता है, “तुम मुझे मत समझाओ। चलो जाओ यहाँ से।”
कुछ देर बाद वहां हाथी आता है और बंदर से कहता है, “अरे दोस्त तुम यह क्या बेफ़कूफी कर रहे हो? ऐसे तो तुम गिर जाओगे।” इस पर बंदर ने कहा, “मेरा भोजन मैं खुद ढूंढ रहा हो? इससे तुम लोगों को क्या मतलब? मैं किसी की बात नहीं सुनने वाला।” थोड़ी देर में शेर भी वहां आता है। शेर भी बंदर को समझाने की कोशिश करता है लेकिन तब तक डाली कट चूका होता है और बंदर धड़ाम से निचे गिर चूका होता है। तभी शेर बंदर को देखकर कहता है, “देखा बेब्कुफ़, हम तुम्हे समझा रहे थे लेकिन तुम नहीं माने इसलिए तुम गिर पड़े। भोजन मेहनत से मिलता है बेब्कुफ़ हरकतों से नहीं।” उस दिन से बंदर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने भोजन के लिए खुद मेहनत करना शुरू किया।
इस कहानी से सीख, Moral of The Story:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है की किसी बेब्कुफ़ को समझाने का मतलब दिवार पर सर मारना होता है।
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