Dealer of Intelligence Story in Hindi
बुद्धि का सौदागर
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक लड़का रहता था। गांव में उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं था परंतु वह बहुत बुद्धिमान था। अपने पिता से उसने काम की कई बातें सीखी थी। एक दिन उसके दिमाग में एक अद्भुत विचार आया।उसने शहर जाने की ठान ली। शहर जाकर उसने एक सस्ती सी दुकान किराए पर ली। दुकान के बाहर एक बोर्ड लगाया जिसमे लिखा था बुद्धि का सौदागर, यहाँ बुद्धि बिकती है।
लड़के के दुकान के आसपास कई तरह के दुकाने थी फल, सब्जिया, कपडे, जेबर असेही कई तरह की दुकान। सारे दुकानदार उस लड़के की खिल्ली उड़ाते मगर लड़का उन बातों की कोई परवा नहीं करता था। वह दिनभर आते जाते ग्राहकों को आवाज लगाता। काफी दिन बीत गए लेकिन बुद्धि के सौदागर के दुकान पर एक भी ग्राहक नहीं आया।
लड़का दुकान बंध करने की सोच ही रहा था की एक धनी सेठ का मुर्ख लड़का उधर से निकला। उसे समझ नहीं आया की यह कैसी दुकान है। उसने सोचा, “मेरे पिता हमेशा मुझे निर्बुद्धि और मुर्ख कहते है क्यों न कुछ बुद्धि खरीद लू।” यह सोचकर उसने सौदागर से कहा, “एक सेर का कितना पैसा लोगे?’
लड़के ने कहा, “मैं बुद्धि किस्म के हिसाब से बेचता हूँ। मेरे पास तरह तरह की बुद्धि है। आपको कैसी बुद्धि चाहिए?”
सेठ के लड़के ने कहा, “ठीक है एक पैसे में जिस तरह की बुद्धि आए दे दो।”
सौदागर लड़के ने कागज की एक पर्ची निकाली और सेठ के बेटे को दे दी। उस पर्ची पर लिखा था ‘जब दो झगड़ रहे हो तो वहां खड़े होकर उन्हें देखना बुद्धिमानी नहीं है।”
सेठ का बेटा ख़ुशी ख़ुशी घर पहुंचा और अपने पिता को कागज की पर्ची देते हुए बोला, “देखिए पिताजी मैं एक पैसे में अक्ल खरीदकर लाया हूँ।”
सेठ ने पर्ची पढ़ी और बोले, “मुर्ख, एक पैसे में यह क्या लाया है? यह बात तो सभी जानते है। तुमने मेरा एक पैसा डुबो दिया।”
फिर सेठ बाजार गया और उस लड़के को बुरा भला कहते हुए बोला, “लोगो को ठगते हुए तुम्हे शर्म नहीं आती? मेरा एक पैसा वापस करो।”
सौदागर लड़के ने कहा, “पैसा क्यों वापस करूँ? माल दिया है पैसा लिया है।”
सेठ ने कहा, “ठीक है यह लो अपना कागज का फटा टुकड़ा, जिसे माल कह रहे हो। नहीं चाहिए हमें तुम्हारा माल। यह लो…
सौदागर ने कहा, “पर्ची नहीं मेरी सीख वापस करो। अगर पैसा वापस चाहिए तो आपको एक कागज पर लिखकर देना होगा की आपका बेटा कभी भी मेरी सीख का प्रयोग नहीं करेगा।”
बात बन गई। दोनों पक्ष मान गए। सेठ ने कागज पर हस्ताक्षर किए और अपना पैसा वापस लेकरप्रसन्न हो गया।
समय बीतता गया .उस राज्य के राजा की दो रानिया थी। एक दिन दोनों रानियों की दासिया बाजार गई और उनका झगड़ा हो गया। बात सीधे लड़ाई तक पहुंच गई। वही सेठ का बेटा भी खड़ा था। सारे लोग वहां से चले गए लेकिन सेठ का बेटा वही उनका लड़ाई देखता रहा। फिर दोनों दासियों ने उसे अपना गबाह बना लिया। झगड़े की बात राजा रानियों तक पहुंची ,दोनों रानियों ने लड़के से कहा की वह उनके पक्ष में गबाही दे। सेठ और उसके बेटे के होश उड़ गए।
फिर सेठ और उसका बेटा सहायता के लिए बुद्धि के सौदागर के पास गए और बोले, “हमें किसी तरह बचा लीजिए।”
सौदागर ने कहा, “ठीक है लेकिन मैं 500 रुपए लूंगा।”
सेठ ने बुद्धि के सौदागर को 500 रूपए दे दिए।
बुद्धि के सौदागए ने उपाय बताया, “देखो जब गबाही देने के लिए बुलाए जाए तो पागल की तरह व्यवहार करना।”
सेठ के बेटे ने वही किया। राजा ने उसे पागल समझकर निकाल दिया। इसी तरह की एक दो घटनाएं और हो गई। बुद्धि के सौदागर की बातें राजा के कान में भी पड़े। राजा ने उसे बुलवाया और पूछा, “सुना है तुम बुद्धि बेचते हो! क्या तुम्हारे पास बेचने के लिए और बुद्धि है।”
सौदागर ने कहा, “जी हुजूर आपके काम की तो बहुत है लेकिन 1 लाख रूपए।”
राजा ने कहा, “तुम्हे 1 लाख रूपए ही दिए जायेंगे।”
सौदागर ने एक पर्ची राजा को दे दी। पर्ची पर कुछ लिखा था। राजा ने पढ़ा “कुछ भी करने से पहले कुछ सोच लेना चाहिए।” राजा को यह बात बहुत पसंद आई। उसने अपने तकिये के ऊपर, पर्दो पर, अपने कक्ष की दीवारों पर, अपने बर्तनो पर इस बात को लिखवा दिया जिससे वह इस बहुमूल्य वाक्य को कभी न भूले और न ही कोई और भूल सके।
एक बार राजा बीमार पड़ गया। राजा के एक मंत्री ने वैद्य के साथ मिलकर षड़यंत्र रचा और राजा की दवा में बिष मिला दिया। दवा का पेयाला राजा ने मुँह के मुख के पास रखा था की उस पेयाले के कुछ शब्दों पर उसकी नजर पड़ी “कुछ भी करने से पहले खूब सोच लेना चाहिए” . राजा ने पेयाला निचे रखा और दवा को देखकर सोच में डूब गया की पीयू या नहीं।
वैद्य और मंत्री को लगा की उनका भांडा फुट गया है। वह दोनों राजा से क्षमा मांगने लगे और कहा, “महाराज हमें माफ़ कर दीजिए हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई।”
राजा ने सिपाहियों को बुलवाकर दोनों को कारागार में डलवा दिया। बुद्धि के सौदागर को उन्होंने अपना मंत्री बनाया और इनाम में खूब सारा धन दिया।
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