दोस्तों आज मैं आपको जो कहानी (The Homecoming Hindi Story) सुनाने वाली हूँ उस कहानी को हम सभी में से किसी ने सुनी होगी तो किसी ने नहीं सुनी होगी और इस कहानी का नाम है घरवापसी जो रबिंद्रनाथ टैगोर की लोकप्रिय कहानियों में से एक है।
The Homecoming Hindi Story By Rabindranath Tagore
फटिक, एक 14 साल का बच्चा जो की पुरे गांव में सबसे सरारती था लेकिन फिर भी लोक उससे बहुत प्यार करते थे और अपने दोस्तों का तो लीडर हुआ करता था वह।
एक दिन, खेल खेल में फटिक अपने दोस्तों को कहता है, “देखो, यह बड़ी सी लकड़ी देख रह हो न, इस लकड़ी को इस पेड़ के मालिक ने काटा है अगर हम इस लकड़ी को उठाकर नदी में फेक दे तो फिर इसका मालिक इसे ढूंढते ढूंढते पागल हो जाएगा, फिर देखना कितना मजा आता है।”
फटिक की बात मानकर सारे बच्चे मिलकर लकड़ी को धक्का देने लगते है जिससे की लकड़ी नदी में गिर जाए। उसी समय फटिक का छोटा भाई माखन वहां आ जाता है और उस लकड़ी पर बैठ जाता है। फटिक उसे समझाता है, ‘माखन उतर जा तुझे चोट लग जाएगी।” पर माखन उसकी बात नहीं मानता है।
फिर फटिक अपने दोस्तों को कहता है, “चलो इस माखन को भी इस लकड़ी के साथ नदी में फेक देते है।”
इसी तरह खेल-खेल में माखन नदी में गिर जाता है और उसे चोट लग जाता है। माखन रोते-रोते अपने घर चला जाता है। थोड़ी देर तक अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद जब फटिक अपने घर जाता है तब देखता है की उसकी माँ बहुत गुस्से में है और उससे सवाल कर रही है।
फटिक की माँ उससे कहती है, “फटिक तूने फिरसे माखन को मारा है न?”
फटिक कहता है, “नहीं मैंने इसे नहीं मारा, वह तो खेल-खेल में लग गया था।”
माखन बोलता है, “नहीं इसी ने मुझे मारा है।”
तब फटिक गुस्से में माखन को मारने के लिए आगे आता है की तब तक उसकी माँ बीच में आ जाती है। फटिक गुस्से में अपनी माँ को भी धक्का दे देता है।
तब उसकी माँ कहती है, “तेरी सरारते तो दिन के दिन बढ़ती ही जा रही है, आज तो तूने मुझे भी धक्का दे दिया।
यह सब नोखझोक चलती रहती है की तभी बाहर से आवाज आती है, “घर पर कोई है?”
फटिक की माँ जैसे ही बाहर जाती है तो कहती है, “अरे! विशम्भर भइआ… आप कब आए?”
तब फटिक की माँ जोर से आवाज लगाकर कहती है, “फटिक…. माखन…. देखो कौन आए है तुम्हारे मामा!”
दोनों बच्चे दौड़कर जाते है और अपने मामा को प्रणाम करते है। दोनों बच्चे बहुत खुश होते है की उनके मामा उनसे मिलने के लिए आए है।
एक दिन, दोनों बच्चो को पढ़ता हुआ देखकर उनके मामा फटिक के माँ से सवाल करते है, “पढाई कैसे चल रहा है दोनों की?”
तब उनकी माँ कहती है, “मेरा माखन तो पढ़ने में अच्छा है और रोज पाठशाला भी जाता है पर यह फटिक, न पाठशाला जाता और न ही घर में पढाई करता है और माखन घर में पढ़ने बैठता है तो उसे पढ़ने भी नहीं देता है।”
तब उनके मामा सोचते है, “मेरी विधवा बहन इतनी गरीबी में दो बच्चो का खर्चा कैसे उठा पाती है? अगर मैं फटिक को अपने साथ ले जाऊं तो बच्चो की अच्छी परवरिश भी हो सकती है।”
यह सोचते-सोचते अचानक उसके मामा फटिक से कहते है, “फटिक! तू मेरे साथ कलकत्ता चलेगा?”
यह बात सुनकर उसकी माँ खुश हो जाती और फटिक से कहती है, ” फटिक तू जाएगा मामा के साथ?”
फटिक झट से हाँ कह देता है क्यूंकि उसे बचपन से ही कलकत्ता जाने का, वहां रहना का, घूमने का बहुत इच्छा थी।
फटिक के मामा कहते है, “मैं तेरा वहां जाकर अच्छे से स्कूल में दाखिला करवा दूंगा। तू वहां पढ़ना ठीक है। वहां तेरी मामी है, तेरे भाई है और तुझे माँ की भी याद नहीं आएगी।’
अगले दिन जब फटिक कलकत्ता जाने ते लिए तैयार था तब फिशिंग रॉड, पतंग और आज तक उसने जितनी भी चीजे जुगाड़ी हो सब उठाकर माखन को दे देता है और उससे कहता है, “ले! यह सब तू रखले, तू खेलने इससे ठीक है। मुझे वहां बहुत कुछ मिल जाएगा खेलने के लिए इसलिए यह सब तू रखले।”
फटिक की माँ उसे समझाते हुए कहती है, “बेटा! अच्छे बच्चे की तरह रहना, मामी को ज्यादा परेशान मत करना, उनकी सारी बातें मानना और अच्छे से पढाई करना।’
अपनी आँखों में ढेर सारी सपने लिए फटिक अपने गांव से कलकत्ता की ओर रवाना होता है।
कलकत्ता पहुंचकर वह बड़ी-बड़ी आंखे करके इधर-उधर देखता रहता और बोलता है, “मामा! कलकत्ता तो बहुत जगह है, बिलकुल सपने जैसा।”
घर पहुंचते ही उसके मामा कहते है, “देखो मैं किसी ले आया! यह है फटिक, कितना बड़ा हो गया है न? आज से यह हमारे साथ ही रहेगा।’
तब उसकी मामी कहती है, “हाँ हाँ! घर नहीं धर्मशाला है। तीन बच्चो का तो आपसे चलता नहीं अव इसे भी उठा ले आए हो। यह एक जंगली है हम सरीफो की सोसाइटी में नहीं रह सकता। देखना यह कितनी जल्दी वापिस जाता है।”
फटिक को अपनी मामी की बात का बुरा लगता है पर वह हंसकर टाल देता है। अगले दिन, फटिक के मामा उसे स्कूल में दाखिला करवा देते है। उसके लिए नए किताबे, नए खिलोने, नए कपडे लेकर आते है जिसे देखकर फटिक बहुत खुश हो जाता है पर फटिक की यह ख़ुशी ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रहती। फटिक की मामी की बातें दिन व दिन बढते ही जा रहे थे। हर बात पर उसे नीचर दिखाना, हर बात पर उसे जंगली कहना और यहाँ तक की अपने बच्चो को भी फटिक के साथ खेलने के लिए मना किया हुआ था। फटिक, जो बहुत ही खुश मिजाज और एक हंसमुख लड़का था, दिन व दिन गुमसुम और बहुत ही शांत होता जा रहा था जैसे लग रहा था की वह अंदर ही अंदर घुट रहा है।
वह शहर में आ तो गया था लेकिन अव उसका दाम घुटने लगा था। उसे वहां बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था अव उसे अपनी माँ के पास वापस जाना था, अपने गांव जाना था, वहां जाकर रहना था पहले की तरह। फटिक सोचता है की उसके मामाजी उन्हें यहां ले आए थे तो क्यों न वह उन्ही से बात करें तो वह उसे फिरसे अपने माँ के पास छोड़कर आएंगे।
फटिक अपने मामा से कहता है, “मामा मुझे मेरी माँ की बहुत याद आ रही है , आप मुझे फिरसे मेरे गांव छोड़कर आए।”
फटिक के मामा फटिक से कहता है, “क्यों बेटा? तुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है? यहाँ तेरे मामी है, तेरे भाई है।”
फटिक कहता है, “नहीं मुझे मेरे गांव जाना है अपनी माँ के पास।”
तब फटिक के मामा उसे समझाते हुए कहते है, “अच्छा ठीक है, अभी रुक जा। अक्टूबर महीने में दुर्गा पूजा की छुट्टी पढ़ने वाली है तू तब चले जाना ठीक है।”
फटिक के भीतर जैसे जान में जान आई पर दुर्गा पूजा को अभी दो महीने बाकि थे। फटिक दुर्गा पूजा आने की दिन गिनने लगता है की कब दुर्गा पूजा आए, कब मामा को छुट्टी मिले और वह अपनी माँ के पास चले जाए।
इसी तरह परेशान रहने की बजह से फटिक से उसकी किताब गुम हो जाती है। फटिक को अपने स्कूल में रोज डॉट पढ़ने लगी। दूसरे बच्चो के सामने उसका मजाक बनता। टीचर से उसे रोज मार पड़ती। फटिक सोचता है की क्यों न वह यह बात अपनी मामी को बताए सायद वह उसकी कुछ मदद करदे। फटिक बहुत हिम्मत जुटाकर अपनी मामी को सब बात बताता है।
तब उसकी मामी उसपर चिल्लाते हुए कहती है, “क्यों? कहाँ घुमाया किताब। अव तू महीने में दस बार किताब गुमायेगा तो हम दस बार तुझे खरीदकर देंगे? पैसे का पेड़ लगा रखा है क्या?”
फटिक की मामी उसे बहुत कुछ सुना देती है इतना ही नहीं फटिक की मामी ने फटिक पर हाथ भी उठाई थी। फटिक उस दिन बहुत रोता है। उसे बहुत तकलीफ होता है। उस दिन फटिक फैसला कर लेता है की बस बहुत हुआ अव मुझे यहाँ नहीं रहना है, मुझे अपने गांव जाना है। कुछ भी करके कल मैं गांव जाऊँगा।
फटिक को उस वक़्त तेज बुखार भी रहता है पर वह घर से निकल जाता है। वह कहाँ जाएगा? कैसे जाएगा? कुछ नहीं पता बस वह निकल गया घर से। फटिक को घर में न पाकर उसके मामा बहुत घबड़ा जाते है। अगल बगल ढूंढने पर जब फटिक नहीं मिलता है तब उसके मामा जाकर पुलिस स्टेशन में कम्प्लेन करके आते है।
तब उसकी मामी उसके मामा को कहती है, “लो अव भुगतो। बहुत शौख से उठाकर ले आए थे न। यह जंगल जंगली जंगल में ही बसते है शहर में नहीं। लो अव ढूंढो। ढूंढते ही रह जाओगे। जब से आया है हमारी जिंदगी को नर्क से भी बत्तर बना दिया है इस लड़के ने।”
तब फटिक के मामा जवाब देते हुए कहते है, “क्यों? तुम्हे क्यों तकलीफ हो रही है? तुम्हारे लिए तो अच्छा ही हुआ। वह बच्चा अंदर ही अंदर इतना घुटता रहा तुम्हे दिखा नहीं? तुमने तो हमारे बच्चो को उसके साथ खेलने के लिए मना किया हुआ था अव क्यों अफ़सोस कर रही हो। सही कहा तुमने, फटिक को यहाँ लाना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी। मैंने क्या सोचा था और क्या हो गया। मैंने सोचा था की फटिक को यहाँ लाकर एक अच्छी परवरिश दूंगा पर बेचारा अंदर ही अंदर घुटता रहा। पता नहीं किस मुसीबत में होगा? कहाँ होगा?”
शाम को एक हवलदार फटिक को लेकर आता है। फटिक के कपडे बिलकुल भीगे हुए थे। हवलदार से पूछने पर कहा की फटिक गंगा पार करके अपने घर जाने की कोशिश कर रहा था। फटिक के मामा देखते है की फटिक के आंखे बिलकुल लाल थी और उसका शरीर बिलकुल तप रहा था। फटिक के मामा जल्द से डॉक्टर को बुलाते है।
डॉक्टर आकर फटिक का इलाज करते है और यह कहता है की फटिक को मलेरिआ हो गई है और वह बस कुछ दिनों का ही मेहमान है। फटिक तब भी अपने माँ को ही ढूंढता है।
तब उसके मामा कहते है, “बेटा, तेरी माँ जल्दी ही आएगी तू बिलकुल परेशान मत हो।”
फटिक की माँ रोते हुए आती है और उसे अपने गोद में ले लेती है।
तब फटिक अपनी माँ से कहता है, “माँ मुझे छुट्टी मिल गई है, मैं जा रहा हूँ।” ऐसा कहने के बाद फटिक की आंखे बंध हो जाती है।
उसकी माँ कहती है, “बेटा, एक बार उठजा बेटा हम तुझे लेने के लिए आए है। तू अपनी माँ की बात नहीं मानेगा।”
उसकी माँ यह सब कहती रहती है और रोती रहती है पर फटिक वह कहाँ उठने वाला था वह तो हमेशा हमेशा के लिए सो चूका है। फटिक इस दुनिया को छोड़कर जा चूका था।
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