Mata Lakhsmi Story in Hindi
हिंदू धर्म में कुल तेतीस कोटि देवी-देवता बताए गए है जिनके बारे में धार्मिक शास्त्रों और ग्रंथो में बर्णन मिलता है। इन्ही में से एक है धन की देवी लक्ष्मी। कहा जाता है जीवन में आने वाला सारा धन माता लक्ष्मी जी की कृपया से ही आता है मगर क्या आप जानते है की सबको धन प्रदान करने वाली माता लक्ष्मी का अवतरण कैसे हुआ था? तो अगर आप जानना चाहते है की माता लक्ष्मी का जन्म और उनका विवाह कैसे हुआ था तो फिर माता लक्ष्मी से जुडी इस कहानी को जरूर पढ़े।
माता लक्ष्मी जी की कहानी
माता लक्ष्मी के जन्म को लेकर पुराणों में दो कथाएं मिलती है। पहली कथा, भृगुऋषि की पत्नी ख्याति से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ था। वह सभी शुभ लक्षणों से युक्त थी इसलिए उसका नाम लक्ष्मी रखा गया। जैसे जैसे वह बड़ी हुई तो लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के गुणों के बारे में सुना और उनकी भक्ति में लीन हो गए।
लक्ष्मी नारायण को पति स्वरुप पाने के लिए समुद्र तट पर कठोर तप करने लगी। कई हजार बर्ष बीत गए। एक दिन इंद्रदेव लक्ष्मी की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु का रूप धारण कर आए और लक्ष्मी से वरदान मांगने के लिए कहा। इसपर लक्ष्मी ने उनसे अपने विश्वरूप दर्शन कराने का निवेदन किया। इसपर इंद्र वहां से लज्जित होकर लौट आए। अंत में भगवान विष्णु खुद प्रकट हुए और देवी लक्ष्मी को अपने विश्वरूप का दर्शन कराया। इसके बाद भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को उनके इच्छा अनुसार अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
दूसरी कथा, एक बार महर्षि दुर्भासा एक वन में गए। वहां किसी ने उनको एक दिव्य माला भेट की। भेट लेकर वह वहां से चल पड़े की तभी रास्ते में इंद्र मिले जो एक हाथी पर विराजमान थे। महर्षि दुर्भासा ने वह दिव्य माला इंद्र को दे दी। इंद्र ने उसे अपने हाथी के सिर में डाल दिया। उस हाथी ने दिव्य माला को अपने पेरो से कुचल दिया। यह देखकर महर्षि दुर्भासा क्रोधित हो गए और इंद्र को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया।
श्राप के प्रभाब से इंद्र के हाथो से देवलोक चला गया। राक्षसों ने देवलोक पर कब्ज़ा कर लिया और देवता परेशान हो गए जिसके बाद सभी लोग भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने सभी देवताओ को समुद्र मंथन करने के लिए कहा लेकिन इसके लिए उन्हें राक्षसों की आवश्यकता थी। तब नारद राक्षसों के पास गए और उन्हें अमृत का लालच देकर समुद्र मंथन के लिए मना लिया। यह समुद्र मंथन कछुए की पीठ और एक नाग के दुयारा किया गया था।
उस समुद्र मंथन से एक एक करके 14 रत्न निकले। उन्ही 14 रत्नों में से एक थी माता लक्ष्मी। माँ लक्ष्मी की एक हाथ में कलस था और दूसरा हाथ मुद्रा से भरा हुआ था। समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के बाद माँ लक्ष्मी ने विष्णु को पति के रूप में वरन कर लिया। जिस दिन माँ लक्ष्मी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थी वह दिन फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा का था। इसी कारन से हर साल फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष को माँ लक्ष्मी के जन्म जन्म दिवस यानि लक्ष्मी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
तो दोस्तों आपको माता लक्ष्मी जी यह कहानी “माता लक्ष्मी कैसे बनी विष्णु जी की पत्नी | Mata Lakhsmi Story in Hindi” कैसी लगी कमेंट के जरिए अपना विचार हमसे जरूर शेयर करें और इसी तरह और भी पौराणिक कहानियां पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को सब्सक्राइब करें।
यह भी पढ़े: भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी?
Hello dosto, mera nam sonali hai or main is blog kahanikidunia.com par sabhi tarah ki kahaniya post karti hun. mujhe kahaniya padhna bohut accha lagta hai or sabko sunane ka bhi isliye main dusro ke sath bhi apni kahaniya is blog ke jariye sabse share karti hun.