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हंस का त्याग | Hindi Story of Swan's Sacrifice

हंस का त्याग | Hindi Story of Swan’s Sacrifice

Posted on October 1, 2020

इस कहानी का नाम है “हंस का त्याग | Hindi Story of Swan’s Sacrifice” उम्मीद करते हैं आपको कहानी पसंद आएगी।

 

हंस का त्याग 

 Hindi Story of Swan’s Sacrifice

एक राजा के महल के उद्दान में एक बहुत ही सुंदर सरोवर था जिसमें कमल खिला करते थे। सरोवर होने के कारण उद्दान सदा पक्षियों से भरा रहता था। एक शिकारी भी प्रतिदिन वहां आता था। पक्षियों को अपने जाल में फँसाता और उन्हें बाजार में बेचकर अपनी आजीविका चलाता था। एक बार उस कमल के सरोवर में कुछ सुनहरे हंस आए। ख़ुशी-ख़ुशी वहां खा पीकर वे वापस अपने घर चले गए। वहां उन्होंने हंस प्रमुख से जाकर कहा, “श्रीमान! शहर के पास एक कमल का सरोवर है। वहां खूब भोजन है। हमें नियमित रूप से वहां जाना चाहिए।”

 

उनके सरदार ने उन्हें होशियार करते हुए कहा, “नहीं मित्रों! शहर के समीप सदा खतरा रहता है। हमें वहां नहीं जाना चाहिए ”
शेष हंसों के हठ करने पर हंस प्रमुख ने कहा, “यदि तुम सबकी इतनी ही इच्छा है तो चलो चलें।”

 

सुनहरे हंस एक झुंड में कमल से भरे सरोवर की ओर उड़ चले। शिकारी ने वहां पहले से ही जाल बिछा रखा था। हंस प्रमुख का पैर जाल में फँस गया। उसने अपने पैर को छुड़ाने की बहुत चेष्टा करी पर छुड़ा नहीं पाया। पैर से खून बहने लगा और वह दर्द से छटपटाने लगा। अपने दर्द को सहते हुए उसने सोचा, “यदि अभी मैंने अपने साथियों को बता दिया की मैं फैंस गया हूँ तो वे सब भय से आक्रान्त होकर बिना दाना चुगे ही उड़ जाएँगे।”

 

हंसो के दाना चुग लेने पर हंस प्रमुख ने उन्हें आवाज दी। आवाज सुनकर सभी हंस होशियार हो गए और और अपनी जान बचाने के लिए उड़ गए। उनमें से एक बुद्धिमान हंस ने सोचा, “देखता हूँ, की हमारे प्रमुख साथ हैं की नहीं।” शीघ्रता से वह उड़ता हुआ अपने झुंड के आगे पहुँचा। हंस प्रमुख को वहां न पाकर उन्हें झुंड के बीच में ढूँढा। प्रमुख को वहां भी न पाकर वह समझ गया की अवश्य ही वह जाल में फँस गया हैं। वापस मुड़कर शीघ्रता से उड़ता हुआ वह कमल सरोवर पहुँचा जहाँ उसने हंस प्रमुख को संकट में पाया।

 

बुद्धिमान हंस वहीं उतरा और सांत्वना देते हुए प्रमुख से बोला, “श्रीमान! चिंता न करें। आपको इस जाल से निकाल के लिए मैं आत्म-बलिदान दे दूंगा।”

 

हंस प्रमुख ने उत्तर दिया, “मित्र, दूसरे हंस बिना मेरी ओर देखते हुए उड़ते जा रहे हैं। तुम भी उनके साथ जाओ। मेरी चिंता मत करो। जाल में फँसे हुए पक्षी की सहायता कोई नहीं कर सकता है।”

 

दूसरे हंस ने प्रत्युत्तर उत्तर दिया, “मैंने सुख के दिनों में सदा आपकी सेवा करी है। मैं अभी आपको कैसे छोड़ सकता हूँ? मैं जाऊँ या न जाऊँ, दोनों ही स्तिथियों में मैं अजर-अमर तो नहीं हो जाऊँगा। मैं आपका भक्त हूँ और ऐसी अवस्था में मैं आपको अकेला नहीं छोड़ूँगा।”

 

हंस प्रमुख ने कहा, “प्रिय मित्र, तुम सही हो। संकट काल में अपने मित्र को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। सज्जनों के लिए न्यायसंगत है।”

 

दोनों हंस आपस में बात कर रहे थे तभी शिकारी वहां आ पहुँचा। दोनों शिकारी को देखकर चुप हो गए। शिकारी ने देखा की एक हंस जाल में फँसा हुआ है और दूसरा मुक्त है। उसने सोचा, “यह मुक्त हंस यहाँ क्यों बैठा है?” उसने हंस से पूछा, “जाल में बंद हंस तो उड़ नहीं सकता है पर तुम अपनी रक्षा करते हुए क्यों नहीं उड़ गए? तुम तो जाल में भी नहीं हो…तुम्हारा उस हंस से क्या कोई संबंध है?”

 

हंस ने उत्तर दिया, “हे शिकारी! यह हंस हमारा मुखिया है। मेरा परम मित्र है। जबतक मैं जीवित हूँ इसे नहीं छोड़ सकता।”
तथापि शिकारी ने दूसरे हंस से कहा, “तुम मुक्त हो, मैंने तुम्हे पकड़ा नहीं है। तुम जाओं और प्रसन्नतापूर्वक रहो।” पर हंस ने कहा, “मित्र के बिना अपनी स्वतंत्रता की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ। यदि आपकी इच्छा हो तो आप मुझे पकड़ ले पर उन्हें छोड़ दें। हम दोनों उम्र और आकार में समान हैं आप घाटे में नहीं रहेंगे।”

 

हंस की त्याग की भावना से शिकारी अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसने हंस प्रमुख को जाल से आजाद कर गले लगा लिया। उसके पैर के जख्मों को पानी से धोया। शिकारी की दवा और प्रेम से शीघ्र ही उसके घाव हो गए। हंसो के प्रमुख ने शिकारी से पूछा, “मित्र, तुम जाल क्यों डालते हो?” शिकारी ने उत्तर दिया, “पैसे के लिए।”

 

हंस प्रमुख ने उसे सलाह देते हुए कहा, “यदि ऐसी बात है तो तुम हमें राजा के पास ले चलो। राजा से मैं तुम्हे ढेर सारे पैसे दिलाऊँगा।”

 

शिकारी ने मना करते हुए कहा, “में राजा के पास नहीं जाना चाहता हूँ। राजा सनकी होते हैं। वे या तो तुम्हे खेल दिखाने के लिए रखेंगे या फिर मार कर खा लेंगे।

 

हंस प्रमुख ने उसे समझाते हुए कहा, “मित्रडरो मत। राजा समझदार और न्याय-परायण भी होते है। तुम कृपया हमें राजा के पास ले चलो।”

 

शिकारी ने उन्हें अपने कंधे पर उन्हें थैले में लटकाया और राजा के पास ले चला। उसने राजा को सुनहरे हंस दिखलाए जिन्हे देखकर राजा हर्षित हुआ। रत्न जटित आसन पर हंसो के प्रमुख को बैठाया और सुनहरी चौकीपर दूसरे हंस को बैठाया। सुनहरे बर्तनों में स्वादिष्ट भोजन परोशगय। शिकारी को नहला-भुला कर अच्छे कपडे पहनाने की राजा ने आज्ञा दी। शिकारी के साथ शाही ब्यबहार किया गया और उसे कीमती आभुषणों से सजाया गया। राजा ने उसे कीमती उपहार देकर विदा किया। दोनों सुनहरे हंसो को कुछ दिनों तक ससम्मान महल में राजा ने रखा और फिर उन्हें भी विदा कर दिया। वे वापस अपने साथीयों के साथ चले गए।

 

शिक्षा: साहस और त्याग सदा पुरस्कृत करता है।

 

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