बदले की आग Hindi Story of Revenge Fire
बदले की आग
एक राजा के पास कुंतीनी नामक एक चिड़िया थी। वह बहुत ही भद्र और बुद्धिमान थी। राजा उसी चिड़िया के दुयारा दूसरे राजाओं के पास संदेश भिजवाया करता था। कुंतीनी के सेवा से राजा अत्यन्त संतुष्ट और प्रसन्न था। राजा के अच्छे व्यवहार से कुंतीनी भी अति प्रसन्न थी।
एक बार कुंतीनी के दो चूजे हुए जिन्हे वह बड़े लाड़-दुलार से अपने घोसले में बड़ा करने लगी। एक दिन राजा को किसी दूसरे राज्य में अपना संदेश भेजना था। उसने कुंतीनी को बुलाया। कुंतीनी ने कहा, “हे महाराज, मेरे दो बच्चे बहुत ही छोटे हैं। वे अभी उड़ भी नहीं सकते। कौन उनकी रक्षा करेगा?”
राजा ने कुंतीनी से कहा, “तुम उनकी चिंता मत करो यह मुझपर छोड़ दो।” कुंतीनी चिंतामुक्त होकर चली गई।
कुंतीनी के जाने के बाद उसके घोंसले के पास राजा के बच्चे खेलने लगे और उन्होंने कुंतीनी के बच्चों को मार दिया। वापस आने पर कुंतीनी इस समाचार को पाकर बहुत दुःखी हुई। उसने हत्यारों के बारे में पता किया तो महल के सेवकों ने सच्चाई का बयान कर दिया। अपने बच्चों का बिछोह वह सह नहीं पा रही थी। कुंतीनी ने बच्चों की हत्या का बदला लेने का निश्चय किया पर ऊपर से वह शांत बनी रही और पहले की तरह ही अपना काम करती रही। राजा को कुछ भी संका नहीं हुई।
एक दिन राजा महल से बाहर गया हुआ था। राजा के पास एक अत्यन्त क्रूर पालतू शेर था। कुंतीनी राजा के बच्चों को लुभाकर क्रूर शेर के पास ले गई और उसने बच्चों पर हमला कर उन्हें खा लिया। कुंतीनी ने अपने बच्चों का बदला ले लिया। हालांकि अब वह भयभीत हो गई की राजा उसे मरवा देगा। इसलिए उसने महल छोड़ने का निश्चय किया पर पहले उसने राजा से मिलना आवश्यक समझा।
राजा के वापस लौटने पर वह उससे मिलने गई और बोली, “हे महाराज! आपकी बेरुखी के कारन मेरे बच्चों को आपके बच्चों ने मार डाला था और मेरे क्रोध के कारण ही आपके बच्चे मारे गए। आपके राज्य में सदा मुझे आदर-सत्कार मिला है पर अब मैंने यहाँ से जाने का निश्चय कर लिया है। कृपया मुझे जाने दे।”
राजा बुद्धिमान, विवेकशील और नैतिक गुणों से भरपूर था। उसने कुंतीनी से कहा, “यह एहसास होने पर कि एक गलती के कारण दूसरी गलती हो गई है, बिद्वेश का भाब समाप्त हो जाता है। इसलिए कुंतीनी, तुम्हे नहीं जाना चाहिए।
किन्तु कुंतीनी ने जोर देते हुए कहा, “मालिक, दोषी और पीड़ित कभी भी एक नहीं हो सकते। इसलिए मुझे यहाँ रहने की इच्छा नहीं है। मुझे जाना ही चाहिए।”
एक बार फिर राजा ने उसे समझाने का प्रयास करते हुए कहा, “कुंतीनी! दोषी और पीड़ित शर्तिया मिल सकते है, एक हो सकते हैं पर उसके लिए पिछला सारा बैर भुलाना होता है। मैं बस यही कहूंगा की तुम्हे नहीं जाना चाहिए।”
कुंतीनी ने उत्तर दिया, “मालिक! मेरा निर्णय पक्का है। मैं अब यहाँ नहीं रहूंगी।”
कुंतीनी ने राजा का अभिवादन किया और हिमालय पर्वत की ओर उड़ चली।
शिक्षा: रिश्ता विश्वास पर ही फलता-फूलता है।
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