Hindi Story of A Wise Son
बुद्धिमान पुत्र
बशिष्ठ का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। माँ की मृत्यु के बाद वह अपने पिता की सेवा तन-मन-धन से करने लगा। कुछ बर्षों के बाद उसके पिता ने उसका विवाह करवा दिया। विवाह के पश्चात बसिष्ठ की पत्नी ने अपने पिता तथा ससुर का भली-भाँति ख्याल रखा पर समय के अंतराल में उसे ससुर बोझ लगने लगी। उसने अपने पति के मन में पिता के बिरुद्ध नफरत पैदा करने हेतु उसके कान भरना शुरू कर दिया।
एक दिन अबसर पाकर वह पति से बोली, “प्रिय, देखिए अपने पिता की करतूत … वे अब उत्पाती और निष्ठुर बन गए हैं। प्रतिदिन मुझसे लड़ते रहते हैं। बिना बात मुझ पर नाराज होते रहते हैं। मैं अब और साथ नहीं रह सकती। उन्हें कब्रिस्तान ले जाकर मार डालिए और किसी गड्ढे में दफभा दीजिए।”
पहले तो बशिष्ठ ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया पर उसके पीछे पड़ जाने पर एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, “प्रिय, किसी व्यक्ति की हत्या आसान नहीं है और फिर अपने ही पिता के प्रति मैं ऐसा अपराध कैसे कर सकता हूँ।”
पत्नी ने कहा, “आप चिंता मत करें। मैं उपाय बताऊँगी।” कुछ बिचारती हुई और फिर से पत्नी बोली, “आप पिता जी से जाकर अनुरोध करिए की वह आपके साथ पड़ोस के गांव चले जहाँ एक व्यक्ति के पास आपका कुछ पैसा बकाया है। बैलगाड़ी से कल सुबह-सुबह प्रस्थान करिए। रास्ते में आने वाले कब्रिस्तान पर रुकिए और जैसा पहले मैंने कहा था वैसा करिए।”
बशिष्ठ का पुत्र सात बर्ष का था। वह अत्यन्त बुद्धिमान था। अपनी माँ की बातें सुनकर उसने सोचा, “मेरी माँ पापिनी है। दादा जी की हत्या करने के लिए वह मेरे पिता को बाध्य कर रही है। मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा।”
उस रात वह बालक अपने दादा जी के साथ सोया। अगली सुबह निर्धारित समय पर बशिष्ठ ने बैलगाड़ी तैयार करी और अपने पिता जी को साथ चलने के लिए बुलाया। बालक ने रोते हुए कहा, “पिता जी, आप मुझे छोड़कर मत जाइए। मुझे भी साथ ले चलिए अन्यथा मैं आप दोनों को नहीं जाने दूंगा।”
बशिष्ठ ने उसे बहुत समझाया पर बालक की जिद के सामने हार गया। फिर पत्नी ने उसे साथ ले जाने की अनुमति यह कहकर दी की पिता जी को कब्रिस्तान ले जाते समय बालक को सोता हुआ बैलगाड़ी में छोड़ दिया जाए।
बशिष्ठ, उसके पिता और पुत्र तीनों बैलगाड़ी में सवार होकर चल दिए। रास्ते में बालक ने सोने का बहाना बनाया। कब्रिस्तान के पास बैलगाड़ी रोककर बशिष्ठ निचे उतरा। फिर कुदाली लेकर निश्चित स्थान पर गड्ढा खोदने लगा।
आवाज सुनकर बालक उठकर पिता के पास आया और पूछा, “पिताजी, आप इस स्थान पर गड्ढा क्यों खोद रहे हैं?”
बशिष्ठ ने उत्तर दिया, “पुत्र, तुम्हारे दादा बहुत बृद्ध और कमजोर हो गए हैं। उन्हें कई प्रकार की बिमारियों ने घेर रखा है। वह तुम्हारी माँ से सदा लड़ते रहते है। रोज-रोज की यातना से मैं तंग आ गया हूँ। आज उन्हें मैं यहाँ दफना दूंगा।
बशिष्ठ का पुत्र अबसर की तलाश में था ही। उसने अपने पिता के हाथ से कुदाल छीना और एक दूसरा गड्ढा उस गड्ढे के बगल में खोदने लगा।
बशिष्ठ ने पूछा, “पुत्र, तुम गड्ढा क्यों खोद रहे हो?”
पुत्र ने उत्तर दिया, “”पिताजी, मैं परिवार की परंपरा का पालन कर रहा हूँ। जब आप बृद्ध और बीमार होकर कमजोर हो जाएंगे, मेरी पत्नी से लड़ाई करेंगे तब मैं भी आपको बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा और आपको इस गड्ढे में दफ़न कर दूंगा।”
बालक की बात सुनकर बशिष्ठ ने कहा, “हे पुत्र, तुमने मेरी आँखे खोल दी हैं। तुम्हारी माँ के बहकावे में आकर मैं यह कठोर दुष्कृत्य करने जा रहा था। मैं तुमसे वादा करता हूँ की ऐसा अपराध करने का कभी सोचूंगा भी नहीं। मैं तुम्हारे दादा और अपने पिताजी का अच्छे से ख्याल रखूंगा। चलो अब हम घर चले।”
जब बशिष्ठ की पत्नी ने तीनों को घर वापस आता देखा तो वह रुष्ठ होते हुए बोली, “तो तुम इस बुड्ढे को वापस ले आए हो?”
बशिष्ठ ने उसे एक जोरदार थप्पड़ मारा और घर से बाहर निकाल दिया। पर उसके बुद्धिमान पुत्र ने किसी प्रकार अपने अपने पिता को मनाकर माँ को घर से निकालने से रोक लिया। उसने अपने पिता तथा ससुर से अपनी करनी के लिए क्षमा माँगी और एक बिनम्र, शांत और निष्ठाबान गृहिणी बनकर रहने लगी।
शिक्षा: एक बालक व्यस्क से भी अधिक बुद्धिमान हो सकता है।
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