अच्छा मित्र
Hindi Story of A Good Friend
बहुत पहले की बात है, भगवान बुद्ध का एक समर्पित शिष्य था। उसका एक मित्र था। एक बार दोनों मित्रों ने पूर्व दिशा की ओर समुद्री जहाज से जाने का निश्चय किया। मित्र की पत्नी ने शिष्य से अपनी पति का ख्याल रखने का अनुरोध किया। शिष्य ने उसे अश्वस्थ किया।
एक सप्ताह पश्चात बंदरगाह से समुद्री जहाज ने अपनी यात्रा शुरू करी। एक दिन समुद्र के बीच तूफान आया और जहाज उसमें फंसकर डूब गया। एक लकड़ी के पटरे के सहारे किसी प्रकार तैरते हुए दोनों मित्र एक सूने द्वीप पर पहुंचे। भूख से बेहाल मित्र ने तुरंत कुछ पक्षियों को मारकर पकाया और बुद्ध के शिष्य को भी खाने के लिए दिया।
उसने मना करते हुए कहा, “नहीं, बहुत बहुत धन्यवाद। मैं ठीक हूँ।” अपने मन में फिर उसने सोचा, “इस निर्जन स्थान पर पवित्र मंत्र पर ध्यान लगाने के अतिरिक्त और कुछ भी करने के लिए नहीं है।” ऐसा सोचकर उसने ध्यान लगाकर मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया।
उसके ध्यान लगाते ही उस द्वीप पर रहने वाले एक नाग राज ने खुद को एक समुद्री जहाज में बदल लिया। उस जहाज में सात कीमती चीजें थीं। नीलम के बने तीन मस्तूल, सोने के बने तख्ते और लंगर तथा चांदी की रस्सियाँ थीं। समुद्र की आत्मा खेबनहार थी। वह जहाज की छत से पुकार रही थी, “भारत के लिए कोई यात्री?”
शिष्य ने उत्तर दिया, “हाँ, हम लोग वहीं से तो हैं।”
खेबनहार ने कहा, “फिर जहाज पर आ जाओ।”
शिष्य ने उस खूबसूरत जहाज पर चढ़कर अपने मित्र को आवाज लगाई। पर समुद्र की आत्मा ने उसे रोकते हुए कहा, “तुम आ सकते हो पर वह नहीं।”
आश्चर्यजनक शिष्य ने पूछा, “पर क्यों नहीं?”
खेबेनहार ने कहा, “वह अपने जीबन में पवित्रता का अनुसरण नहीं करता है। मैं यह जहाज मात्रा तुम्हारे लिए लाया हूँ, उसके लिए नहीं।”
शिष्य ने उत्तर दिया, “वैसी स्तिथि में, जितने भी दान-पुण्य मैंने किए है, जो भी मेरे गुण और अच्छाइयाँ हैं, उनके सारे फल मैं अपने मित्र को देता हूँ।”
समुद्री आत्मा ने कहा, “ठीक है, मैं अब तुम दोनों को जहाज पर ले चल सकता हूँ।”
समुद्री जहाज दोनों व्यक्तियों को लेकर चला। पहले समुद्र और फिर गंगा नदी के ऊपर से होते हुए उन्हें सुरक्षित उनके घर पहुँचा दिया। समुद्री आत्मा ने अपनी जादुई शक्ति से दोनों के लिए खूब धन-सम्पत्ति उत्पन्न कर दी। फिर आकाशवाणी हुई जिसे वहाँ उपस्थित सभी ने सुना, “सदा अच्छे और बुद्ध की संगती करो। यदि यह व्यक्ति इस धर्मात्मा शिष्य की संगती में नहीं होता तो समुद्र के बीच में ही बिलीन हो गया होता।” अंत में समुद्री आत्मा, नागराज को अपने साथ लेकर लौट गई।
शिक्षा: सदा मित्र के रूप में अच्छों की संगती करें।
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